हिन्दू धर्म शास्त्रों और पुराणों में मूर्ति पूजा की प्रधानता है. किन्तु खंडित मूर्ति की पूजा करना वर्जित माना जाता हैं. क्योंकि खंडित मूर्ति की पूजा करने से उसका विपरीत फल प्राप्त होता है. इसीलिए किसी भी खंडित मूर्ति की पूजा नही की जाती है. यदि घर में कोई मूर्ति खंडित हो जाती है तो उसे नदी में प्रवाहित कर दिया जाता है. यदि मूर्ति में थोड़ी सी भी खरोंच आ जाती है तो उस मूर्ति की पूजा नही की जाती है.
किन्तु आपको जानकर आश्चर्य होगा की एक ऐसा शिवलिंग है जो खंडित होने के बाद भी आज तक पूजनीय हैं. यह शिवलिंग झारखंड के गोइलकेरा के महादेवशाल धाम मंदिर में स्थित है. इस शिवलिंग के बारे में कहा जाता है कि इसकी पूजा पिछले 150 सालों से इस तरह से खण्डित शिवलिंग के रूप में होती है. इस शिवलिंग के खण्डित होने के पीछे की कथा अनोखी हैं.
स्वतंत्रता के पूर्व जब लगभग 19वीं शताब्दी के मध्य झारखंड के गोइलकेरा क्षेत्र में रेल लाइन बिछाने का कार्य चल रहा था. रेल लाइन के कार्य हेतु खुदाई चल रही थी तो खुदाई के दौरान वहां से एक शिवलिंग निकला था. शिवलिंग निकलने पर मजदूरों ने आस्था के वशीभूत होकर खुदाई करना बंद कर दिया था. किन्तु उस समय उस कार्य को देखने वाले ब्रिटिश इंजीनियर ‘रॉबर्ट हेनरी’ ने शिवलिंग को एक पत्थर मात्र बताते हुए शिवलिंग पर प्रहार कर दिया जिससे फलस्वरूप शिवलिंग दो टुकड़ों में विभाजित हो गया. किन्तु जब वह इंजीनियर शाम घर जा रहा था तो रास्ते में ही उसकी मौत हो गई.
इस घटना से हतप्रभ होकर मजदूरों और ग्रामीणों ने रेलवे लाइन को वहां से बदल कर दूसरी तरफ करने की मांग की. किन्तु अंग्रेज अधिकारीयों ने उनकी मांग को अस्वीकार कर दिया. किन्तु जब मजदूरों ने कार्य करना बंद कर दिया तो अंग्रेजो ने मजदूरों के समक्ष झुककर रेलवे लाइन की दिशा को बदल दिया. और फिर दूसरी तरफ रेलवे लाइन का काम किया गया.
मजदूरों और ग्रामीणों ने उस मूर्ति के दोनों टुकडो को शिवलिंग के रूप में स्थापित किया. पहला टुकड़ा उसी जगह पर देवशाल मंदिर का निर्माण करके वहां पर गर्भगृह में स्थापित किया गया है. जबकि शिवलिंग का दूसरा टुकड़ा वहां से दो किलोमीटर दूर रतनबुर पहाड़ी पर देवी ‘माँ पाउडी’ के साथ स्थापित है, जहां पर शिवलिंग की नियमित रूप से पूजा होती हैं.
आज इस मन्दिर को भव्य रूप दे दिया गया है और बड़े धूमधाम से भक्त दर्शन करने के लिए आते है..
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