देशभर में आश्विन के महीने में देवी की पूजा की जाती है. देश के अलग-अलग क्षेत्रों में देवी के पूजा के विधि-विधान भी अलग होते हैं.
कहीं पर पूरे निरामिष (शाकाहारी) तरीके से पूजी जाती हैं आदिशक्ति, तो कहीं पर आमिष (मांसाहारी) तरीके से. श्रद्धा के तौर-तरीके अलग-अलग. कोई नौ दिनों तक कठिन व्रत करता है, तो कोई नृत्य करके देवी को प्रसन्न करता है.
पर इन्हीं रीति-रिवाज़ों में से कुछ ऐसी भी रीतियां हैं, जो सभ्य समाज के अनुकूल नहीं है. तमिलनाडु के मदुरई में एक मंदिर में देवी की पूजा की रीति, सभ्यता की हद से परे मालूम होती है. Times Now के अनुसार, इस मंदिर में 7 ऐसी लड़कियों को 15 दिनों तक मंदिर में ही रखा जाता है, जिनका मासिक शुरू ना हुआ हो.
इस दौरान इन लड़कियों को देवी की तरह ही सजाया जाता है, लेकिन इनके शरीर के ऊपरी भाग पर कोई वस्त्र नहीं होता, सिर्फ़ ज़ेवर होते हैं. इस दौरान इन कन्याओं के साथ एक पुरुष पंडित रहता है.
जब इस अजीब के रिवाज़ की ख़बरें बाहर आने लगीं, तो स्थानीय अधिकारियों ने हस्तक्षेप किया और लड़कियों को ऊपरी हिस्सा ढकने का आदेश दिया.
मदुरई के कलेक्टर ने इस बात का आश्वासन दिया कि लड़कियों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाएगी, पर देवी पूजन के इस अजीब से रिवाज़ को बंद करने के कोई संकेत नहीं दिए. कलेक्टर साहब का कहना है कि वर्षों पुरानी इस प्रथा पर रोक लगाना अनुचित होगा. पूजा के इस प्रथा में लगभग 60 गांवों के लोग सम्मिलित होते हैं.
वहीं Daily Mail की रिपोर्ट्स में इस घटना का एक अलग ही पहलू सामने आया. इस रिपोर्ट के मुताबिक, National Human Rights Commission ने सोमवार को इस घटना से जुड़ी रिपोर्ट जमा की. उस रिपोर्ट की मानें, तो इस प्रथा में लड़कियों को नववधू की तरह सजाया जाता है और बाद में उनके कपड़े उतार दिये जाते हैं. इसके बाद उन्हें जबरन सेक्स वर्क में धकेल दिया जाता है. ये एक तरह की देवदासी प्रथा है, जिसे 1988 में बैन कर दिया गया था.
कमिशन की रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि इन कन्याओं को अपने परिवारों से अलग कर दिया जाता है. वहां के लोग इन्हें मथाम्मा कहते हैं. इन्हें किसी तरह की शिक्षा-दीक्षा भी नहीं दी जाती.
मदुरई ज़िले ने इस रिपोर्ट में छपी सभी बातों को सिरे से नकार दिया है.
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