*फागुन की ऋतु आई *
फागुन मास ,वसंत मन मोहक,मादक ऋतु छाई ,
मानो रंग रंगीली चुनरी ओढे ले रही धरा अंगड़ाई ।
शिशिर प्रकंपित अवनि अब तक बैठी ओढ रजाई,
बहने लगी पवन बासंती ,हर उपवन ने शोभा पाई।
जाग्रत हुए सब वृक्ष लताएं ,तुलसी जी ठिठुराई ,
छोड़ कर अपनी लाल चुनरिया, नव पल्लव सरसाई ।
नव ऋतु के छाते ही, होली की आहट आई ,
पापड़ , बड़ियां सूखेंगे भर भर कर चारपाई ।
दहके अंगारों से रक्तवर्ण फूलों से लदे पलाश वन,
टेसू के जोगिया रंग रंजित प्रेमी युगलों के मन ।
एक तान,एक लय झूमेंगे राधा कृष्ण मुरारी ,
राधा थामे रंग कमोरी कान्हा कर पिचकारी।
बैठे श्याम सखाओं संग ,चलो सखा सब बरसाने ,
खीजेंगी गोपियां ,राधिका ,देंगी मीठे मीठे ताने ।
उड़ेगा ब्रज में प्रेम रंग ,सृष्टि झूमेगी आनंद मग्न ,
जड़ीभूत मन जागे , आत्मा परमात्मा महा मिलन ।
dr नीलम सिंह