**नीलवर्णी कान्हा तेरी शरणागत **
पग पग पर ठोकर खाई ,जग ने नूतन रीत सिखाई ,
उपजी मन में मनो कामना ,शरणागत हूँ मुझे थामना ।
जीवन है कठिन पहेली ,जाने कितनी ऋतुएं झेली,
त्याग सुख दुख का विचार ,खड़ी हूँ आकुल तेरे द्वार ।
प्रभु!कुछ ऐसा कर दो,मन में रच दो भाव वृन्दावन,
अन्तरचक्षु तृप्त रहें नित ,दर्शन पाऊँ तेरा मनभावन ।
भीतर भावों की कालिंदी ,तेरा नाम ही सोना चाँदी,
झूठे सकल रत्न जवाहर ,माया के है मात्र ये अनुचर ।
रूप ,यौवन ,ऐश्वर्य ,आयु,उड़ जाते ज्यों झोंका वायु,
प्रभुदे दे दो मीरा सा मन ,नाचूँ नित्य हो आनंद मग्न ।
एकनिष्ठ जैसे सखा सुदामा ,तुमने स्वयं जिनको थामा,
विप्र सुदामा सा दीन हीन ,तेरे चिंतन में रहूँ तल्लीन ।
ब्रज के जैसे गोप ,गोपियाँ,आनंद रस लीन सखियाँ,
नित्य रहे मेरा मन मोहित ,तेरी मेघ सी सुंदर मूरत।
कान्हा नीलवर्णी ,मयूर पंख से मुकुट सुशोभित,
पीताम्बर धारी तेरी वंशी की धुन ,मन प्राण रहें भावित!!