कैसा अद्भुत अद्वितीय है निसर्ग का तारतम्य ,
अपने अपने नियमों में बंधा हर अवयव सुरम्य ।
पंच तत्त्वों का स्वयंसिद्ध अनुपम समावेश ,
जीवों के गमन आगमन का सतत नियम अशेष ।
अपनी धुरी पर घूमती धरा का मोहक सौंदर्य,
प्रदर्शित करता ऋतुओं के परिवर्तन का माधुर्य ।
सागर से उठता प्रचंडतम आलोड़न सीमाबद्ध ,
नभ में विचरते सूर्य ,चंद्र ,नक्षत्र दृढ़ नियम आबद्ध ।
षड ऋतुओं के आगमन में एक लयात्मकता ,
प्रकृति के कण कण में निहित अनुपम तारतम्यता ।
जलचर ,नभकर ,थलचर ,जड़ चेतन नियमाधीन ,
तथाकथित सभ्य मानव ही हो गया अनुशासन हीन ।
तोड़दी जब से मनुष्य ने पारम्परिक सभी मर्यादाएँ,
स्वयं आमंत्रित कर ली पग पग पर लाखों विपदाएँ ।
जोड़ लिए विनाश के घातक अस्त्रों के भंडार ,
शक्ति संचय कर भय दोहन का नीच व्यवहार ।
पाया रोग ,शोक ,महामारी ,रिश्तों में उत्पन्न जड़त्व ,
भूल बैठा जग संचालन करता है ईश्वरीय तत्त्व !