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*आत्म शक्ति को नहीं भाता हारना*

24 फरवरी 2022

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बात पुरानी मानो बीते युग की है कहानी ,
एक लहर सी आई, बह गया नदियों में पानी ,
बचपन के प्यारे से दिन थे कितने अनमोल ,
उम्र के इस पड़ाव पर मन ने दिया झरोखा खोल ।

विद्यालय में स्वतंत्रता दिवस उत्सव आयोजन ,
काव्य पाठ कर पाऊँ प्रशंसा बालमन का प्रयोजन,
राष्ट्र कवि दिनकर की कविता "मेरे नगपति मेरे विशाल "
मैं कंठस्थ करने का समय ना पाई निकाल ।

जब मंच से मेरी बारी पर पुकारा गया मेरा नाम ,
कंपित चरण चली मन की व्यग्रता को थाम,
हाथ में ले कागज का टुकड़ा ,पढ़ दी कविता ,
तालियां ना बजी बढ़ गई और आकुलता ।

कुछ दिनों में बात हो गई आई गई ,
रम गई संगियों संग खेल कूद ,पढ़ाई लिखाई,
कुछ दिनों बाद ही उपस्थित हुआ एक और अवसर,
 जिसने मेरे आत्म विश्वास को दिया साहस भर ।

विद्यालय में हर वर्ष मनती थी तुलसी जयंती ,
बड़े भाव विश्वास से तुलसी बाबा के विषय में सुनती ,
प्रारंभ हुआ प्रधानाचार्या का प्रारंभिक उदबोधन ,
देने बालकों को प्रेरणा ,कैसे सफल हो आयोजन ?

बात ही बात में ,बात कुछ ऐसी हुई ,
उनकी कही एक बात मन को चुभ गई ,
बोली सबके सामने मेरा नाम ले कर ,
नही बोलेगी कोई छात्रा ,कागज ले कर।

कुल जमा पंद्रह वर्ष की आयु में ऐसा लगा आघात,
मेरी सुप्त चेतना जाग उठी अकस्मात, 
मन ने कहा चल उठ कर कुछ ऐसा काम,
इस आयोजन में कमा ले प्रतिष्ठा और नाम।

जोश में भरकर नाम बोलने वालों में लिखवा दिया,
मन ही मन तुलसी बाबा को करबद्ध प्रणाम किया,
ज्यों ही मंच से पुकारा गया मेरा नाम ,
कंपित चरण,कंपित अधर किंतु मन को थाम।

प्रारंभ किया बोलना वाणी कुछ प्रकंपित,
स्वयं भाव ,विचारों ,शब्दों में बहने लगा तुलसी चरित,
बोलने लगी आत्मविश्वास संग अनवरत ,
देख रही प्रधानाचार्या मेरी ओर होकर चकित ।

टूटा क्रम जब सुनी तालियों की गड़गड़ाहट,
ना जाने कौन सी अज्ञात शक्ति की आहट ,
अक्सर करते हम अन देखी चुनौतियों का सामना ,
हमारे भीतर की शक्ति को नहीं भाता हारना !
                   Dr नीलम सिंह

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