चेतना को सूर्य बना दो
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प्रभु मन की #ज्योति जला दो ,
मन को नभ सा विस्तारित ,
चेतना को सूर्य बना दो ।
जब भी किया आत्म निरीक्षण ,
'मैं 'के बिखरे जहाँ तहाँ कण ,
करती उसका नित्य समर्पण ,
आत्म समर्पण को स्वीकारो ,
गहन तिमिर में #ज्योति जला दो ,
चेतना को सूर्य बना दो ।
कोने कोने में तम बिखरा ,
बड़ा हठीला अहम है ठहरा ,
मिटता ही नही अंतर का अंधेरा ,
छाया रहता दुख का घेरा ,
मन के नभ में #ज्योति फैलादो,
चेतना को सूर्य बना दो ।
ना मैं योगी ,ना मैं तपस्वी ,
ना ज्ञानी ,ना ही मनस्वी ,
फिर भी करता है मन क्रंदन
मन ही मन चलता है रोदन ,
प्राची दिशि #ज्योति से भर दो,
चेतना को सूर्य बना दो ।
विषमय चिंतन से रिक्त करा दो,
जन्म मरण से मुक्त करा दो ,
तुम समर्थ हो श्याम सखा !
भव सागर को पार करा दो ,
मन को नभ सा विस्तारित ,
चेतना को सूर्य बना दो !!
डॉ नीलम सिंह