*नारी तू नारायणी …*
आज़ विश्व मना रहा अंतराष्ट्रीय नारी दिवस ,
एक दिन नहीं बखान सकता नारी का यश ,
असीम है ब्रह्मांड में नारीत्व की गरिमा ,
वेद भी बखानते है मुक्त कंठ इसकी महिमा ।
वेद उवाच “यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमन्ते तत्र देवता ,
नर नारी संयोग से पूर्ण होती सृष्टि की सृजनता ,
हिमाचल दुहिता के बिना शिव शंकर अधूरे ,
रमा के बिना भी चक्रपाणि विष्णु कहाँ पूरे ?
देवासुर संग्राम में देवशक्ति जय को तरसती ,
जब तक ना उतरी मां चण्डिका मातृ शक्ति,
असुरों का करने रक्त पान देने अंतिम गति ,
शौर्य की गाथा लिखने ,युद्ध को देने परिणिति ।
धैर्य ,ज्ञान ,सहन शीलता ,सौंदर्य की प्रतिमूर्ति ,
सीता ,अनुसूया ,रुक्मिणी ,पद्मिनी महा सती ,
सुदीर्घ है महान गरिमामयी नारियों की गाथा ,
यशस्विनी ,पराक्रमी ,विजयिनी नारियों की कथा ।
जिस दिन बुझा देती हैं आंतरिक शक्ति की ज्वाल,
राह में स्त्री को फंसाने को फैल जाते माया जाल ,
सीता को मन भा गया विचरता स्वर्ण मृग ,
रावण कारागार में बहाते अश्रु सरिता युगल दृग।
स्त्री स्वाभिमान को ठेस पहुंचाता है शब्द अबला ,
प्रमाणित किया हर क्षेत्र में स्वयं को समर्थ सबला ,
ज्ञान विज्ञान ,षोडश कलाएं ,सैन्य क्षेत्र राजनीति ,
गौरवमयी नारी तू नारायणी चतुर महामति।
जिस दिन पहचान लेती है अनन्य आंतरिक शक्ति ,
पुरुषों के समकक्ष समर्थ और प्रति उत्पन्नमति ,
डट जाती रण में लक्ष्मी बाई अहिल्या दुर्गावती ,
बदल देती अपने शौर्य से इतिहास की गति ।
Dr नीलम सिंह