चित्तौड़ के राणा रतन सिंह की प्रिय पत्नी,
दैवीय #सौंदर्य की स्वामिनी रानी पद्मिनी,
दैहिक से भी अधिक थी आंतरिक सुंदरता ,
सर्वश्रेष्ठ नारी रत्न , गुणवती , सतीत्व की दृढ़ता ।
दूर दूर तक फैल गई सौंदर्य की कीर्ति
दिल्ली के सुल्तान ने सुनी उड़ती उड़ती ,
अलाउद्दीन खिलजी था नर पिशाच कामी,
दयालुता मानवीय सद्गुणों का प्रतिगामी ।
सब कुछ छीन कर भोगने का फितूर ,
आत्म मुग्ध ,शक्ति के मद में चकनाचूर ,
उस काल में देश की अवस्था थी दयनीय ,
टुकड़ों में बंटी भारत की स्थिति शोचनीय ।
प्रथम अपनाई सुल्तान ने भेद नीति ,
राणा रतनसिंह के प्रति दिखलाई प्रीति,
यदि दूर से ही देख पाऊं रानी की छवि,
चला जाऊंगा देख कर दर्पण में प्रतिच्छवि ।
ऊपर वाले ने गढ़ा है जिसे यत्न पूर्वक,
देखना चाहता हूं मात्र वो छवि मोहक ,
प्रथम विरोध उपरांत राणा ने किया स्वीकार,
दूर दूर तक छल छिद्र का ना था विचार ।
शाही भोज उपरांत खिलजी ने किया दर्शन ,
अभूतपूर्व दैवीय #सौंदर्य छटा से शोभित दर्पण,
देखते ही रानी का रूप खिलजी हुआ मोहित,
किसी भी मूल्य पर प्राप्त करने को हुआ उद्धत ।
धोखे से कर लिया लिया राणा का अपहरण,
रूपसी, विदुषी नारी ने लिया रण का प्रण ,
सामंतो संग बनाई साहस पूर्ण रण नीति ,
सर्व प्रथम मुक्त हों बंदीगृह से चित्तौड़ पति ।
पूर्ण हुई योजना मिली रानी को सफलता,
चुप ना बैठेगा खिलजी, जानती चित्तौड़ की जनता ,
एक बड़ी सेना ले कर चढ़ आया सुल्तान ,
खूब लड़े सेनानी ,जब तक रहे देह में प्राण ।
अब आ गई बारी सतीत्व की रक्षा हेतु बलिदान ,
पूर्णश्रृंगार कर सखियों संग पद्मिनी ने दे दिए प्राण,
प्रज्वलित कर अग्निकुंड जौहर की ज्वाला ,
सुंदरी सतियों ने स्वयं को आहुति बना डाला ।
भारत के गौरव शाली इतिहास की अमरकथा ,
बन गया #सौंदर्य पद्मिनी के जीवन की व्यथा ,
कामी नरपशु के सामने ना किया समर्पण,
मान की रक्षा में लिया बलिदान का प्रण !!
Dr नीलम सिंह