*रिश्तों का संसार *
खूबसूरत #रिश्तों से महकता संसार ,
रिश्ते प्यार,वात्सल्य विश्वास के हजार ,
उर मेंअनुभूति के मानो अगम्य सागर ,
बहु मूल्य रत्नों से #रिश्तों का आगार ।
भोर की लालिमा मय उजास से
रिश्ते दो प्रहर के चमकीले प्रकाश से ,
मेले की भीड़ वाली चहल पहल से,
निशीथ निविड़ एकांत के वैकल्य से ।
मंदिरों के घंटो की ध्वनि से पावन ,
मस्जिद की गूँजती अज़ान मनभावन ,
वातावरण में पंछियों का कलरव गान ,
अथवा दूर कहीं आम्रवन में कोकिल तान ।
सहज निर्झरिणी सा बहता मातृत्व ,
नभ सा विस्तारित निः स्वार्थ पितृत्व,
कलाई पर राखी के धागे सा पावन ,
बहन भाई का प्रेम अद्भुत मन भावन ।
अग्निसाक्षी सप्तवचन,सात फेरे,
जन्म जन्मान्तरों के #रिश्ते सुनहरे ,
दो तन में निहित एकप्राण ,एकमन,
बातों ही बातों में बीत जाता कब जीवन ।
एक #रिश्ता इत्र की सुगंध सा महकता,
ना गिरने देता ,ना लज्जित होने देता ,
बहते आँसू कब हथेली में समा जाते ,
द्रौपदी की लाज बचाने कृष्ण दौड़े आते।
द्वारिकाधीश दीन हीन के पग पखारते
मित्र सुदामा के दैन्य पर सख्यत्व भाव सजाते,
मित्रता के #रिश्ते स्वार्थ और लालच से परे,
दिल के रिश्ते निःस्पृह, मासूम बहुत प्यारे !!
डॉ नीलम सिंह