*काश दर्द के ज़ुबान होती*
काश दर्द के ज़ुबान होती ,बिन कहे कहती सुनती,
रूह की सहेली ही सही हर पल साथ ही रहती ।
अकेली खामोश तन्हाइयों भरी लंबी रात ,
खुद से खुद की अनकही , अन देखी मुलाकात ।
खुद से ही कहते सुनते कब गुजर जाती रात,
तन ,मन का दर्द घुल मिल जाते एक साथ ।
खुद ही बिखरना ,खुद को ही समेटना अपने पास,
आंसुओं से भी ना बुझती अंतर की प्यास ।
यही तो है सबकी जिंदगी का फलसफा,
बड़ा अकेला ही पाता है खुद को हरदफा।