"फैसला "
शाम गहराने लगी थी और नीलेश का कुछ अता- पता नहीं था ।
हां, नीलेश ......
वहीं नीलेश जिसके इंतजार में नीलिमा ना जाने कितनी देर से,कितने घंटों से वहीं एक जगह पर खड़ी थी ।
आज उसी के साथ जाने के लिए,अपना सबकुछ छोड़कर ..... सपनों का नया आशियां बनाने के लिए ।
इस गहराती शाम के साथ ही उसके मन के भाव भी गहराने लगे थे और उसे डर के साथ-साथ ही अपने घर की भी याद आने लगी थी ।
अपने माता-पिता का चेहरा सामने आते ही तुरंत नीलिमा ने अपना फैसला बदल लिया और चल पड़ी वापस अपने सच्चे आशियाने की तरफ....
जहां पर पलकें बिछाए उसका अपना परिवार उसके घर लौटने का इंतजार कर रहा था ।
नीलिमा भी घर लौटते समय अपने मन को टटोल रही थी । कैसे चंद दिनों की बातों में ही वो किसी अजनबी के साथ जाने के लिए तैयार हो गई थी । वो जो आज अपने वादे पर मुकर गया था । दूसरे ही पल सोचती हैं चलों अच्छा ही हुआ जो समय रहते मुझे अक्ल आ गई, नहीं तो न जाने मेरा क्या होता ?
कैसे जीती मैं अपनों से दूर जाकर ?
नीलिमा की तंद्रा अपने दरवाजे के बाहर पहुंचकर ही भंग हुई,जब उसकी मां ने दरवाजा खोला ।
दरवाजा खुलते ही उसने दौड़कर अपनी मां को अपने गले से लगा लिया । ऐसे एकदम से मां की समझ में तो कुछ आया नहीं पर नीलिमा अपनी जिंदगी का सबसे बड़ा सबक सीख चुकी थी ।
उसने मन ही मन फैसला लिया कि आज के बाद वो किसी के बहकावे में नहीं आएगी और इन फेसबुकिया दोस्तों से भी दूर ही रहेगी ।
मुकेश दुहन "मुकू"