11
रमल मुसद्दस महज़ूफ़
फ़ाएलातुन फ़ाएलातुन फ़ाइलुन
21222122212
एक बन के वो फरिश्ता आया था
या अदावत साथ रिश्ता आया था
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देखना टकसाल का हो जादू गर
मेरे हिस्से खोटा सिक्का आया था
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सोच आउट हूँ उभरती मन ही मन
पर वहीं, किस्मत का छक्का आया था
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सादगी का तेरी कायल जो हूँ अब
जिंदगी का छोड़ लम्हा आया था
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दुश्मनी हो बीच जुम्मन अलगू सी
जद _गजब कानून किस्सा आया था
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12….
29.4.24.
हज़ज
मुसद्दस महज़ूफ़
मुफ़ाईलुन
मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन
1222 1222 122
पुराना वो समय पत्थर कहाँ है
मुझे जो लूट ले रहबर कहाँ है
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दुआ होती बुजर्गों की यहाँ भी
बता दो अब वही गौहर कहाँ है
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बहुत कमजोर सयकल का ये पहिया
बता अब सोच कर पं चर कहाँ है
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फकीरों की सुनो आसान राहें
गये-बीते दिनो मंजर कहाँ है
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अनारकली झुका दे सल्तनत को
सितम ढाने बचा अकबर कहाँ है
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चुना हमने सियासत आदमी खूब
भरोसा उसपे भी बेहतर कहाँ है
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मुझी पे आज इल्जामे कतल है
खबर फैला रहा खंजर कहाँ है
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सुशील यादव
न्यू आदर्श नगर दुर्ग
13......
मुज़ारे मुसम्मन अख़रब
मफ़ऊल फ़ाएलातुन मफ़ऊल फ़ाएलातुन
221 2122 221 2122
हम इंतिज़ाम सारे का सारा रखते आए
पर ध्यान आज केवल तुम्हारा रखते आए
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तुम राह पर जहाँ काँटे को बिखेरती हो
हम बस क़दम वहीं पर दोबारा रखते आए
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ख़ामोशी लग सका अंदाजा कभी उसे क्या
आँधी के डर से हम नाहक नारा रखते आए
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कुछ इश्तहार जिसको तुमने पढ़ा नहीं था
ख़बरों को भेजने हम हरकारा रखते आए
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कमजोर नस हमारी गिन के रखो हजारो
हम नोक-नोक आगे गुब्बारा रखते आए
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14....
1222 1222 1222 Revised १४.3.२४.
तेरी याद ......
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परेशानी के मै कितने सबब रखता
तेरी यादों को रोशन भी ,गजब रखता
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रही हरदम खयालों में जहाँ शामिल
जुदा हो तुझसे खुश मै , खुद को कब रखता
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कभी जाता नहीं मंदिर शिवालय में
हिफाजत से छिपा के,अपना रब रखता
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तुझे पाने कभी नाकाम कोशिश की
कहूँ क्या खास कुछ गिन के खरब रखता
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जमाने भर की रौनक से सजी महफिल
वहाँ पर पांव भी मै बा_ अदब रखता
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सुशील 2.7.23
15....
Revised on 15.3.24
बहर-ए-हिन्दी मुतकारिब मुसम्मन मुज़ाफ़
फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़े
22 22 22 22 22 22 22 2
मैं सपनो का ताना बाना यूं अकेले बुना करता हूँ
मंदिर का करता सजदा मस्जिद भी पूजा करता हूँ
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जिस दिन मिलती फुरसत मुझको दुनिया के कोलाहल से
राम रहीम की बस्ती में अलगू जुम्मन ढूँढा करता हूँ
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जब जब बादल में मुझको गंध बारूदी मिल जाती है
घर आगन में छिप कर पहरों पहरों रोया करता हूँ
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जितने गहरे मै उतरा रखवाले मजहब के उतर न पाते
बस सुलह की गहराई से मै मोती साफ चुना करता हूँ
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आओ अपना उतारें हम भी ओढ़ा पहना हुआ नकाब
मेरी शकल से तुम हो वाकिफ किस दिन मै छुपा करता हूँ
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खौफ जदा हैं साथी उलझे कल के सवालों से
प्रश्नों के उत्तर न जानो अक्सर यही सुना करता हूँ
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16....
हज़ज मुसम्मन मक़बूज़ मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन
मुफ़ाइलुन
1212121212121212
चलो वहां चलें जहाँ जमीन- आसमा न हो
कदम- कदम पे हक़ मिले, जिधर कि हम जुबा न हो
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हमारे पास, है दफन रियासतों की खूबियाँ
तुम्हे नजर भले नहीं, दिखे ये खूबियाँ न हो
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पुलों से हम गुजर गए ,बचा करीब फासला
पता सभी को चल गया, रकीब जानता न हो
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ये शहर दे रहा, कि मुफ्त में इलाज ,को दवा
बिमारियों है सैकड़ों, कोई इसे लिया न हो
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अजब ये हाल देख लो बड़े कमाल देख लो
नवाज लो खुदा बना जिसे वो पूजता न हो
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गुजर गई हाँ दहशतों वो रात भी थके- डरे
वो सामने लगा हमे जरा थका - डरा न हो
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खरोंच देख आदमी गिरा जो खून देख के
जरा सी चोट की खता चुनाव जानता न हो
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धुआ- धुँआ उठा यहाँ, किसे कहें सजा मिले
बिछा के बारुदी सुरंग, कोई चला गया न हो
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17....
22 22 22 22 22 2
मांगता उसी को रब से, पर नहीं मिलता
ढूढ़ता कहीं उस सा दीगर नहीं मिलता
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ये शह्र की तब्दीली बेजुबा सा जंगल
नुमाइशी चाहें अजगर नहीं मिलता
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यकीन बंद आखों कैसे कर लें
भरोसे का चारागर नहीं मिलता
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एहतियात से मगरूर रखा दिल
संग दिल में अब पत्थर नहीं मिलता
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हुआ है हमसे ही अब खपा साया
अँधेरे में वो आकर नहीं मिलता
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18...
फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़े
22 22 22 22 22
2
बिना लक्ष्य जाने, हम पतवार लिए हैं
हम गन्धारी कुल में, अवतार लिए हैं
ईमान नहीं बिकता, जिनका दिल्ली में
सडको पर, फुटपाथी बाजार लिए हैं
हाशिये पे जो , लिख दी है ,भूख गरीबी
आगामी कल का वो अखबार लिए हैं
अहिंसा पूजने वाले किताबो चले गए
जो लोग बचे, हाथों तलवार लिए हैं
हर खतरा आहट घंटी सुन लेते पर
सीमा पर लड़ने का संस्कार लिए हैं
19...
सगीर
मुसतफ़इलुन फ़ाएलातुन मुसतफ़इलुन
2212 2122 2212
अब रास्ता ये पुरखतर लगता नहीं
इस पुल कहीं पहले सा डर लगता नहीं
तुम जो नहीं रहती नहीं कटता सफर
दिल से जुड़ा कोई रहगुजर लगता नहीं
कब उखडा मौसम का बसंती मशवरा
पैगाम कहने रुके पतझर लगता नहीं
हो डूबते इंसा को तिनको की गरज
मिल जाए राहत की खबर लगता नहीं
बुझना कहीं अब आग का तय तो करो
फिर दूध में उबले जहर लगता नहीं
दिन कोई खैरातों की खातिर तुम रखो
मुफलिस की रातें दर ब दर लगता नहीं
20....
मुशाकिल मुसद्दस सालिम
फ़ाएलातुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
2122 1222 1222
घुल रहा
अब जहर बेहाल जिन्दगी में
गिनता हूँ जुगनुओ को रात चांदनी में
तुम गए वक्त ने करवट लिया भी खूब
हाल क्या पूछते भटके हैं बेबसी में
हिज्र में हम मोहब्बत आपसी भूले
अब सजा मांगते हर ख्वाब सादगी में
एक खत रेत पर हमने लिखा तुमको
क्या पता पढ़ के समझा खाक क्या नदी ने
आ चलें लौट कर माहौल देखें हम
कुछ मिलेगा हमे आती हुई सदी में