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मेरी गजल :1 से 10 सुशील यादव

20 दिसम्बर 2024

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 1.... 

Mutdaarik
musamman mahzoz

faa'ilun faa'ilun faa'ilun fe' 

212 212 212 2  

## 

खून के छींटे है पथ्थरो में 

ढूढ़ते दाग है खंजरो में 

मांगना खैरियत जान की तुम 

जब मची लूट चारागरों में 

कारवां रोकना पड़ गया है 

कुछ थके कुछ गुमे कंजरो में 

मूक झूठी गवाही नहीं ये  

बोलते लोग हैं कटघरों में  

खेल नेता अभी यू दिखाया  

खलबली सी मची जादूगरों में  

तुम जरा गर कहो खास बनते  

हम रहे चूकते खास अवसरों में 

सुशील यादव  

  

हज़ज मुसम्मन सालिम 

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन 

1222 1222 1222 1222 

## 

मैं तुझसे मिलने का, कोई बहाना ढूढ लेता हूँ  

घने जंगल गड़ा- भूला, खजाना ढूंढ लेता हूँ 

सितम – जुल्मों बनी, तेरी गली, लेकिन जुदा हो के  

नसीबो में लिखा ,अपना ,खजाना ढूंढ लेता हूँ 

न भाये है,हमें तारीफ के, पल से गुजरना भी 

शराफ़त से झुकाने सर, बहाना ढूंढ लेता हूँ 

अगर नजदीक आ ,जाना दूर था, तुमको क़िसी काऱण 

वजह पूछे बिना भी मैं, फसाना ढूंढ लेता हूँ 

अगर मानिंद करवट, वक्त बदले ,कहीं किस्मत  

मै पेचो ख़म में, कतरन- खत पुराना ढूंढ लेता हूँ 

मुझें बेकार समझे, भूल बैठे, तुम भले लोगो 

कदर पाने, कहीं महफिल, ठिकाना ढूंढ लेता हूँ 

छिपाओ लाख, बादल- बिजलियां ,खुशबुओं को तुम भी 

हकीकत कहते जुमलों में, ज़माना ढूंढ लेता हूँ 

सुशील यादव 

  
 

  

हज़ज मुसद्दस सालिम
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन 1222=1222=1222 

जब हमें...... 

बस हमें थूक के चाटना आ गया 

दूर तक प्यार को बांटना आ गया 

जानते थे सभी नासमझ एक दिन 

आज कुनबा हमे साधना आ गया  

रस्सियां भी अकड की जली आप की  

यूं विरोधी हमे बांधना आ गया 

झाकता क्यूँ बसर धर्म की आड़
से  

छेद दर छेद सब ढापना आ गया  

दर्जियो के सिले शर्ट की हैसियत 

अब गला आस्ती काटना आ गया 

लाख रोड़े बिछे हो अगर सामने  

पर्वतों को कठिन लांघना आ गया  

ठान लो जिद में करना सभी काम
तो  

साथ देने छिपा सरगना आ गया  

*  
 

  

१२२२ १२२२ १२२२  

हया के परदे में पर यूँ क़तर देगा  

वो आग़ाजे मुहब्बत की खबर देगा 

किसी दरवाजे दम ना हौसला टूटे  

लिखा है तो , बुला हाथो हुनर देगा 

मुझे भी टूट कर आया बिखरना जो  

किसी दिन देख लेना हमको घर देगा  

खतावारो हमी पर टूट बरसो तुम  

गुनहगारों से बचने को नजर देगा  

मेरे हक़ फैसला करना जरा वाजिब  

कहीं राहत मुसाफिर सा अगर देगा  

#
 

मतदारक मुसम्मन मज़ाल
फ़ाइलात फ़ाइलुन फ़ाइलात फ़ाइलुन 2121 212 2121 212 

  

@@    

मुझे
 भी आता रोना बेबसी का  

बहुत कम है तजुर्बा जिंदगी का 

बुलंदी पे उसी के रंग देखे 

वहीँ तो वास्ता था रौशनी का 

सलीका भी नजाकत से भरा था 

तरीका आजमाना सादगी का 

थे
 उखड़े पाँव उनके थी थकी चाल 

रहा भय
 जिन्दगी भर तीरगी का 

नहीं लौटा   वहाँ जाकर कोई भी   

पता किसको है   गुजरे आदमी का     

  
 

  

हज़ज मुसद्दस सालिम
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन 1222=1222=1222 

  

आओ तुम भी मेरे दिल का कबाड़ देखलो  

हाल क़्या है क्यों ये बस्ती उजाड़ देख लो 

फिर रहा हूँ दस्त सहरा बेजुबान दर ब दर  

पीठ जख्म का गजब है पहाड़ देख लो  

तुम नहीं मिली कहीं ख्वाब में मुझे हुजुर  

नागवार कैद हैं दिल तिहाड़ देख लो 

शेर लापता हुए जंगलो से इन दिनों  

नेता की नुमाइशी ये दहाड़ देख लो 

आज टूट कर
तुझे चाहने की है खुशी 

आजमा के आप ये भी जुगाड़ देख लो ## 

सुशील यादव  

  
 

  

मुझे तुमने सिखाया है बिखरना जी 

जहाँ सीखा तू ने सजना सवरना जी 

कभी जादू कहाँ चलती निगाहों की 

अभी आया तुझे हर बात अखरना जी 

हमी कायल अदाओं के रहे हरदम 

हमी अफसोस छोड़े बैठे डरना जी 

नदी बहती किनारों को बहा जाती 

कभी देखो किनारों मूक झरना जी 

जिसे है सादगी थोड़ी शराफत भी 

वो जाने कब वादों से मुकरना जी
 

  

फूल खुशबू कहां है चमक के लिए 

होश वाले लड़े है नमक के लिए  

वक़्त भी ये जहर नफ़रतों घोलता 

बोलने तुम लगे बस सनक के लिए 

आज मायूस ने याद कैसे किया  

दर्द छलका हो मीठी कसक के लिए 

एक हमको तुम्ही दस्तको ढूढ़ते  

लोग तो लापता हैं शफक के लिए 

कहने को क़्या बचा पास मेरे यहाँ  

कातिलों इस नगर में रमक़ के लिए  

रहगुजर बैठ कर देखना तुम कभी  

आस मिटती कहां इक झलक के लिए 

जो नसीहत पिया बैठ कर मैकदे  

खैर हम क्या मनाएं शतक के लिए 

## 

  

शफक = क्षितिज की लाली  

रमक़ = रही सही जान, थोड़ी सी जिंदगी  

#

मौसम.... 

मेरे चाहने से कब बदला है मौसम 

तेरे कहने पे जो चलता है मौसम 

घुटने - घुटने पानी जब नावें चलती 

ठहरा - ठहरा तब तो लगता है मौसम 

नदिया बीच भंवर मेँ फँस कर ये जाना 

खुद भी कैसे रह लेता तन्हा मौसम 

एक दूजे की हम पूछ परख क्या
रखते  

तिरपाल तले हो कुनबा सूखा मौसम  

सालों साल भटका जाने कहाँ कहाँ  

कुछ तिलस्मी, फिल्मी गोया मौसम  

सुशील यादव  

न्यू आदर्श नगर,जोन 1 स्ट्रीट
3 A 

 दुर्ग छत्तीसगढ़ 

मोबाईल :7000226712 

  
 

  

10 

2122 2122 2122 

जिन्दगी में अँधेरा ..... 

ये थका सा काफिला कब तक चलेगा  

करवटों का  सिलसिला कब तक चलेगा 

 # 

कौन जाने लापता मंजिल कहाँ पे 

और उखड़ा रास्ता कब तक चलेगा 

 # 

आप चल लेते अँधेरे , मन के माफिक  

आपका ये फैसला कब तक चलेगा 

 # 

कोई तो तुम रौशनी के ख्वाब देखो  

या खुदा ये बद्दुआ कब तक चलेगा 

 # 

छोड़ दो अब तो हिदायत रात जीना 

बारहा हर मश्वरा कब तक चलेगा 

 # 

थक चुकी है अब यहाँ ताकत जि स्मानी  

कातिलो से सामना कब तक चलेगा 

 # 

बिन बुलाए आ खड़ी हो मौत बेजा  

एक तरफा हादसा कब तक चलेगा 

 # 

रहनुमाओ खौफ मत पैदा करो अब  

पुश्तो जारी मामला कब तक चलेगा 

 # 

सामने मीजान मेरे इश्क का कर  

मुझ पे सारा जलजला कब तक चलेगा 

@@ 

सुशील यादव  

न्यू आदर्श नगर,जोन 1 स्ट्रीट
3 A दुर्ग छत्तीसगढ़ 

मोबाईल :7000226712
 

  11 

रमल मुसद्दस महज़ूफ़ 

फ़ाएलातुन फ़ाएलातुन फ़ाइलुन 

21222122212 

एक बन के वो फरिश्ता आया था  

या अदावत साथ रिश्ता आया था 

देखना टकसाल का हो जादू गर  

मेरे हिस्से खोटा सिक्का आया था 

सोच आउट हूँ उभरती मन ही मन  

पर वहीं, किस्मत का छक्का आया था  

सादगी का तेरी कायल जो हूँ अब  

जिंदगी का छोड़ लम्हा आया था  

दुश्मनी हो बीच जुम्मन अलगू सी 

जद _गजब कानून किस्सा आया था  

  

  

  
 

   

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अधरों की अबीर ...

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बहर-ए-हिन्दी मुतकारिब इसरम मक़बूज़ महज़ूफ़ फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन 2222222222 अधरों की अबीर ... # कोई मोहब्बत की तकदीर तो लिख दे हर जुबां पे हद मीठी खीर तो लिख दे # सबने माथे गाल पे क्या-

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