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गज़ल

21 जुलाई 2022

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जिसे निभा लिया वो ज़िंदगी का हिस्सा था
जो निभ सका नहीं वो ही तो मेरा अपना था
न एक इंच हाथ में वो आ सका मेरे
यूँ आसमान बहुत दूरियों में फैला था
मैं सारी उम्र की बरसात लिए बैठी थी
न पा सकी जिसे वो आब का इक क़तरा था

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