हर तरफ़ ग़म का तूफ़ान है, खुशियों का दीया बेजान है। शह्र में धूप आती नहीं, सूर्य गांवों का मेहमान है। आशिक़ी के मुहल्ले में अब, बेवफ़ाओं का गुणगान है। जब से बच्चे विदेशी हुवे, बाप को ख़ौफ़े-शमशान है। मौत के बाद मिलता सुकूं, जीते जी सब परेशान हैं। ( डॉ संजय दानी दुर्ग )
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