shabd-logo

ग़ज़ल

25 अक्टूबर 2015

133 बार देखा गया 133
featured image

कर खुदाया खैर अब कुर्वत नही

इश्क़ करने से हमें फुर्सत नही


सारी दुनिया धुल रही है चादरे

लेकिनअपने ज़हन के तोहमद नही


आज फिर उजड़ा हुआ घर बस गया

जोड़ ले दिल को है ये हिम्मत नही


हम बिछड़कर मिल गए फिर से तो क्या

जो जलाये थे मिले वो खत नही


प्यार से मांगो हमारी जान हाज़िर 

डर से मेरा सर झुके आदत नही


क्या कमाया है जहां में क्या कहे 

इश्क़ से बढ़कर कोई दौलत नही 


           सुशांत मिश्र

27 अक्टूबर 2015

वर्तिका

वर्तिका

इश्क़ का अफ़साना लिए खूबसूरत ग़ज़ल, बधाई!

26 अक्टूबर 2015

5
रचनाएँ
sushantmishra7
0.0
सुशान्त मिश्र
1

तारे और सितारे

21 अक्टूबर 2015
0
6
5

मेरे बचपन में, सम्पूर्ण गगन में छाये रहते थे तारे जिन्हें देखते ताकते गिनते रहते थे हम कभी किसान के हल जैसे कभी कवि की कलम जैसे तो कभी प्रश्नचिह्न बनकर असलियत बताते जिन्दगी की और न जाने कितने चित्र दिखाते थे तारे फिर अकिंचन मुझे आराम देने के लिए भेज देते थे प्यारी सी निंदिया रानी को हम सो

2

तारे और सितारे

22 अक्टूबर 2015
0
1
0

मेरे बचपन में, सम्पूर्ण गगन में छाये रहते थे तारे जिन्हें देखते ताकते गिनते रहते थे हम कभी किसान के हल जैसे कभी कवि की कलम जैसे तो कभी प्रश्नचिह्न बनकर असलियत बताते जिन्दगी की और न जाने कितने चित्र दिखाते थे तारे फिर अकिंचन मुझे आराम देने के लिए भेज देते थे प्यारी सी निंदिया रानी को हम सो

3

तुम्हारे बग़ैर ।..

22 अक्टूबर 2015
0
2
2

सुनो ज़रा,,,, एक छोटी सी दास्ताँ अधूरी है ठहरो तो सुन भी लो न जाने क्या क्या अधूरा है तुम्हारे बग़ैर.... सचमुच मैं मेरा मन मेरी तन्हाई बस इतना सा ही रह गया सिमट कर मेरा जहाँ तुम्हारे बगैर.... सुनो तो और भी बहुत कुछ टूटे पत्तों की तरह रह गया सूखकर बिखरकर तुम्हारे बगैर.... सुन भी लो अध

4

ग़ज़ल

25 अक्टूबर 2015
0
2
2

कर खुदाया खैर अब कुर्वत नही इश्क़ करने से हमें फुर्सत नही सारी दुनिया धुल रही है चादरेलेकिनअपने ज़हन के तोहमद नही आज फिर उजड़ा हुआ घर बस गया जोड़ ले दिल को है ये हिम्मत नही हम बिछड़कर मिल गए फिर से तो क्या जो जलाये थे मिले वो खत नही प्यार से मांगो हमारी जान हाज़िर  डर से मेरा सर झुके आदत नही क्या कमाया

5

मुक्तक

25 अक्टूबर 2015
0
2
2

लिहाफ़ों से ढके चेहरों को मैं पहचानता कैसे  मोहब्बत तो हक़ीक़त है फ़साना मानता कैसे  तेरी शोहरत तेरा ये इश्क़ और ये जिश्म ही तो है, मैं कुछ भी दे नही सकता मैं सबकुछ मांगता कैसे                          सुशांत मिश्र  

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए