कर खुदाया खैर अब कुर्वत नही
इश्क़ करने से हमें फुर्सत नही
सारी दुनिया धुल रही है चादरे
लेकिनअपने ज़हन के तोहमद नही
आज फिर उजड़ा हुआ घर बस गया
जोड़ ले दिल को है ये हिम्मत नही
हम बिछड़कर मिल गए फिर से तो क्या
जो जलाये थे मिले वो खत नही
प्यार से मांगो हमारी जान हाज़िर
डर से मेरा सर झुके आदत नही
क्या कमाया है जहां में क्या कहे
इश्क़ से बढ़कर कोई दौलत नही
सुशांत मिश्र