सुनो ज़रा,,,,
एक छोटी सी दास्ताँ
अधूरी है
ठहरो तो
सुन भी लो
न जाने क्या क्या
अधूरा है
तुम्हारे बग़ैर....
सचमुच
मैं
मेरा मन
मेरी तन्हाई
बस इतना सा ही
रह गया सिमट कर
मेरा जहाँ
तुम्हारे बगैर....
सुनो तो
और भी बहुत कुछ
टूटे पत्तों की तरह रह गया सूखकर
बिखरकर
तुम्हारे बगैर....
सुन भी लो
अधजगी रात
अज़नबी दिन
अधखुली आँखें
अधूरे ख़्वाब
और न ज़ाने क्या क्या
अधूरा है
तुम्हारे बगैर....
सुनो
खुली आँखों में
हिम्मत नहीं शायद
बन्द आँखों से भी
अश्क नहीं रुकते
ये कुछ कह रहें
शायद ये कि
आओ
लौट आओ
फिर से मेरी ज़िन्दगी में
सचमुच
बहुत कुछ अधूरा है
तुम्हारे बगैर.....
-सुशान्त मिश्र