लिहाफ़ों से ढके चेहरों को मैं पहचानता कैसे
मोहब्बत तो हक़ीक़त है फ़साना मानता कैसे
तेरी शोहरत तेरा ये इश्क़ और ये जिश्म ही तो है,
मैं कुछ भी दे नही सकता मैं सबकुछ मांगता कैसे
सुशांत मिश्र
25 अक्टूबर 2015
लिहाफ़ों से ढके चेहरों को मैं पहचानता कैसे
मोहब्बत तो हक़ीक़त है फ़साना मानता कैसे
तेरी शोहरत तेरा ये इश्क़ और ये जिश्म ही तो है,
मैं कुछ भी दे नही सकता मैं सबकुछ मांगता कैसे
सुशांत मिश्र
धन्यवाद
27 अक्टूबर 2015