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गीत - सूरज का सफर

5 जुलाई 2022

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 सूरज का सफर 
विधा - गीत
___गीतकार -भानु प्रताप सिंह सूरी
__________________________
वो नित पूरव से निकले, पश्चिम की ओर चला जाये। 
उसके जाने से आसमान का रंग सलोना ढल जाये। 
उसकी नज़रों के तेज़ से भर जाये प्रकाश हर प्राण में। 
सूरज का सफर है ये, किरणो के अद्भुत यान में।। 

सूरज की माता लाली, जब आँचल लाल हटाती है। 
तब बालक की दिव्य छटा पर्वत के पीछे मुस्काती है। 
फिर सुमन सवेरे नयन खोल, गालों पर रंग सजाते हैं। 
तब मोहकता की पाश में बंधकर, मधुकर गीत सुनाते हैं। 
आज हर इक प्राणी संतुष्ट है, प्रेम के संधान में। 
सूरज का सफर है ये, किरणो के अद्भुत यान में।। 

जब मध्य दिवस का सूरज अपनी शक्ति घोर दिखलाता है। 
तन की शक्ति तो क्या, आधी परछाई भी खा जाता है। 
जो विचलित न हों दलदल से, वो खिलते हैं सदा कमल से। 
 जो चलते शाहस संग में, पार लगे हर मुश्किल पल में। 
जेठ की दिन की गर्म दुपहरी, अनुभव भर दे ज्ञान में। 
सूरज का सफर है ये, किरणो के अद्भुत यान में।। 

मन में लिए अहम, जब सूरज जलधर के घर जाता है। 
पल भर में सम्पूर्ण उजाला, अंधियारे में रम जाता है। 
काला पड़ते ही, तन को आकाश सजाने लगता है। 
जब प्रकाश की ध्वजा निराली सहसा गिरने लगती है। 
चंदा के संग चाँदनी आकर, ध्वजा पकड़ने लगती है। 
बस कहती सूरज से इतना, क्या रखा है अभिमान में। 
सूरज का सफर है ये, किरणो के अद्भुत यान में ।।
  1. article-image_____________ भानु प्रताप सिंह सूरी

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