ओमप्रकाश क्षत्रिय
"प्रकाश"
काननवन में एक सियार
रहता था. उस का नाम था सेमलू. वह अपने साथियों में सब से तेज व चालाकी से दौड़ता
था. कोई उस की बराबरी नहीं कर पाता था. इस कारण उसे घमंड हो गया था,
" मै सियारों में सब से तेज व होशियार सियार हूँ."
उस ने अपने से तेज़
दौड़ने वाला जानवर नहीं देखा था. चूँकि वह घने वन में रहता था. जहाँ सियार से बड़ा
कोई जानवर नहीं रहता था. इस वजह से सेमलू समझता था कि वह सब से तेज़ धावक है.
एक बार की बात है.
गब्बरू घोड़ा रास्ता भटक कर काननवन के इस घने जंगल में आ गया. वह तालाब किनारे बैठ
कर आराम कर रहा था. सेमलू की निगाहें उस पर पड़ गई. उस ने इस तरह का जानवर पहली बार
जंगल में देखा था. वह उस के पास पहुंचा.
" नमस्कार भाई !"
" नमस्कार !"
आराम करते हुए गब्बरू ने कहा, "आप यहीं रहते हो ?"
" हाँ जी,
" सेमलू ने जवाब दिया, " मैं ने आप को पहचाना
नहीं ?"
" जी. मुझे गब्बरू कहते
हैं," उस ने जवाब दिया,
" मै घोड़ा प्रजाति का जानवर हूँ,"
गब्बरू
ने सेमलू की जिज्ञासा को ताड़ लिया था. वह समझ गया था कि इस जंगल में घोड़े नहीं
रहते हैं. इसलिए सेमलू उस के बारे में जानना चाहता है.
" यहाँ कैसे आए हो ?"
" मै रास्ता भटक गया हूँ,"गब्बरू बोला.
यह सुन कर सेमलू ने
सोचा कि गब्बरू जैसा मोताताज़ा जानवर चलफिर पाता भी होगा या नहीं ? इसलिए उस नस अपनी तेज
चाल बताते हुए पूछा , " क्या तुम दौड़भाग
भी लेते हो ?"
" क्यों भाई , यह क्यों पूछ रहे हो ?"
" ऐसे ही,"
सेमलू
अपनी तेज चाल के घमंड में चूर हो कर बोला,"
आप
का डीलडोल देख कर नहीं लगता है कि आप को दौड़ना आता भी होगा ?"
यह सुन कर गब्बरू समझ
गया कि सेमलू को अपनी तेज चाल पर घमंड हो गया है इसलिए उस ने जवाब दिया,
"भाई ! मुझे तो एक ही चाल आती है. सरपट दौड़ना."
यह सुन कर सेमलू हंसा,
" दौड़ना ! और तुम को . आता भी है या नहीं ? या यूँ ही फेंक रहे हो ?"
गब्बरू कुछ नहीं बोला.
सेमलू को लगा कि गब्बरू को दौड़ना नहीं आता है. इसलिए वह घमंड में सर उठा कर बोला,
" चलो ! दौड़ हो जाए. देख ले कि तुम दौड़ सकते हो कि नहीं ?"
" हाँ. मगर, मेरी एक शर्त है,"
गब्बरू
को जंगल से बाहर निकलना था. इसलिए उस ने शर्त रखी,
" हम जंगल से बाहर जाने वाले रास्ते की ओर दौड़ेंगे."
" मुझे मंजूर है,
" सेमलू ने उद्दंडता से कहा,
"चलो ! मेरे पीछे आ जाओ,"
कहते
हुए वह तेज़ी से दौड़ा.
आगेआगे सेमलू दौड़ रहा
था पीछेपीछे गब्बरू.
सेमलू पहले सीधा भागा.
गब्बरू उस के पीछेपीछे हो लिया. फिर वह तेजी से एक पेड़ के पीछे से घुमा. सीधा हो
गया. गब्बरू भी घूम गया. सेमलू फिर सीधा हो कर तिरछा भागा. गब्बरू ने भी वैसा ही
किया. अब सेमलू जोर से उछला. गब्बरू सीधा चलता रहा.
" कुछ इस तरह कुलाँचे
मारो," कहते हुए सेमलू उछला. मगर, गब्बरू को कुलाचे मरना
नहीं आता था. ओग केवल सेमलू के पीछे सीधा दौड़ता रहा.
" मेरे भाई , मुझे तो एक ही दौड़ आती
है. सरपट दौड़," गब्बरू ने पीछे दौड़ते
हुए कहा तो सेमलू घमंड से इतराते हुए बोला,
" यह मेरी लम्बी छलांग देखो. मै ऐसी कई दौड़ जानता हूँ." खाते
हुए सेमलू ने तेजी से दौड़ लगाईं.
गब्बरू पीछेपीछे सीधा
दौड़ता रहा. सेमलू को लगा कि गब्बरू थक गया होगा,
" क्या हुआ गब्बरू भाई ? थक गए हो तो रुक
जाए."
" नहीं भाई, दौड़ते चलो ."
सेमलू फिर दम लगा कर
दौड़ा. मगर , वह थक रहा था. उस ने गब्बरू से दोबारा पूछा,
" गब्बरू भाई ! थक गए हो तो रुक जाए."
" नहीं . सेमलू भाई.
दौड़ते चलो." गब्बरू अपनी मस्ती में दौड़े चले आ रहा था.
सेमलू दौड़तेदौड़ते थक
गया था. उसे चक्कर आने लगे थे. मगर , घमंड के कारण, वह अपनी हार स्वीकार
नहीं करना चाहता था. इसलिए दम साधे दौड़ता रहा. मगर, वह कब तक दौड़ता. चक्कर
खा कर गिर पड़ा.
" अरे भाई ! यह कौनसी दौड़
हैं ?"गब्बरू ने रुकते हुए पूछा.
सेमलू की जान पर बन आई
थी. वह घबरा गया था. चिढ कर बोला, " यहाँ मेरी जान निकल रही
है. तुम पूछ रहे हो कि यह कौनसी चाल है ?"
वह
बड़ी मुश्किल से बोल पाया था.
" नहीं भाई , तुम कह रहे थे कि मुझे
कई तरह की दौड़ आती है. इसलिए मै समझा कि यह भी कोई दौड़ होगी,"
मगर
सेमलू कुछ नहीं बोला. उस की सांसे जम कर चल रही थी. होंठ सुख रहे थे.जम कर प्यास
लग रही थी.
" भाई ! मेरा प्यास से दम निकल रहा है,” सेमलू ने घबरा कर गब्बरू से विनती की, “मुझे पानी पिला दो.या फिर इस जंगल से बाहर के तालाब पर पहुंचा
दो.यहाँ रहूँगा तो मर जाऊंगा.मै हार गया और तुम जित गए.”
गब्बरू को जंगल से बाहर जाना था. इसलिए उस
ने सेमलू को उठा के अपनी पीठ पर बैठा लिया. फिर उस के बताए रास्ते पर सरपट दौड़ाने
लगा, कुछ ही देर में वे जंगल के बाहर आ गए.
सेमलू गब्बरू की चाल देख चुका था. वह समझ
गया कि गब्बरू लम्बी रेस का घोडा है. यह बहुत तेज व लम्बा दौड़ता है. बी कारण उसे
यह बात समझ में आ गई थी कि उसे अपनी चाल पर घमंड नहीं करना चाहिए. चाल तो वही काम
आती है जो दूसरे के भले के लिए चली जाए. इस मायने में गब्बरू की चाल सब से बढ़िया
चाल है.
यदि आज गब्बरू ने उसे पीठ पर बैठा कर तेजी से दौड़ते हुए तालाब तक नहीं
पहुँचाया होता तो ओग प्यास से मर गया होता. इसलिए तब से सेमलू ने अपनी तेज चाल पर
घमंड करना छोड़ दिया.
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ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”
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