shabd-logo

गीता

27 नवम्बर 2015

125 बार देखा गया 125
खुशी के चमन का बिगुल बजा
मेरे रग रग में कम्पन है सजी
मै आवारगी सा इन्तजार करने लगा
दिन ,साल लगने लगे थे
मेरा प्यार जुड़ने लगा था
खुशी के चमन का बिगुल जो बजा था

अविराम चलकर मंजिल जो पायी थी
वो मेरे बगल में कुछ निहार रही थी
बिछड़े लम्हों को चुन रही थी। पर
मेरा ध्यान जो भंग कर रही थी।
खुशी के चमन का बिगुल जो बजा था

उसके माथे पे ख़ुशी चमक रही है
बेताब दिल धड़कन बढ़ा रहा है
बड़ी भाभी भृकुटि चढ़ा रही है
बहुरिया क्या लायी ,हमको भूल बेठे।
तानो की बौछार बढ़ा रही है
ख़ुशी के चमन में बिगुल जो बजा था

ये गांव भी कितना निराला है
सब घूँघट की आड़ में रहते है
अपने से बड़ो को आदर निभाते है
और मै दीदार से वंचित रह जाता हु।
सूरज ढलने की राह में मै 
बच्चे टोली संग खेल लेता हु।
संध्या का चेहरा देख दिल झूम उठा है
खुशी के चमन का बिगुल जो बजा था

सब संग बियालु करने लगे है
मेरा यार हमसे विपरीत घूँघट खोल रही है
हाथो से निवाला मुँह को प्रदान कर रही है
चाँदनी से चुनरिया चमक रही है
वो दूर से शोभायमान है
खुशी के चमन का बिगुल जो बजा था

लम्बी घड़ी बाद नीरवता फेली है
चाँदनी की चमक उजाले संग झूमी है
रूठे यार को मनाने में चुम्बन सजा है
चाँदनी बादल की ओठ में घिरी है
पूर्ण वातावरण नीरवता संग खेला है
खुशी के चमन का बिगुल जो बजा था

बड़ी भाभी बतियाने को आतुर है
पर वो शहर की हालात -ए-खबर पर रुकी है
मीठी वाणी से लाड़ लड़ा रही है
बिनोले से मक्खन तोड़ रही है
मै रोटी संग चबा रहा हु
हालात को हंसी में बदल रहा हु।
मै आकाश को निहार रहा हु
सूरज के अस्ताचल का चुपचाप मै इंतजार कर रहा हु।
चाँदनी को बादलो से मिलाने की आस लगी है
ख़ुशी के चमन में बिगुल जो बजा है
         -sou rayka

सांवलराम की अन्य किताबें

1

नृत्यलज्जा

31 अक्टूबर 2015
0
4
0

एक नृत्य नमक की तोहींन कर बेठाहुस्न का रंग जो फीका सा लगने लगाकिस कदर वो भूल बेठीजानते हुए अनजान हुईलाज के गहने से बेख़ौफ़ हुईहै वो भूली अपने उसूलो कोऔर चढ़ाने लगी बनावटी रंगो कोअब कैसे करू तेरा दीदारतेरा जीवित दर्शन मरण सा लगामै लगा लगाने सब्र को गलेकभी तो सावन बरसेगान बरसा तो मै बरसाऊँगामै हर बाधा से

2

गीता

27 नवम्बर 2015
0
3
0

खुशी के चमन का बिगुल बजामेरे रग रग में कम्पन है सजीमै आवारगी सा इन्तजार करने लगादिन ,साल लगने लगे थेमेरा प्यार जुड़ने लगा थाखुशी के चमन का बिगुल जो बजा थाअविराम चलकर मंजिल जो पायी थीवो मेरे बगल में कुछ निहार रही थीबिछड़े लम्हों को चुन रही थी। परमेरा ध्यान जो भंग कर रही थी।खुशी के चमन का बिगुल जो बजा थ

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए