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गीता

27 नवम्बर 2015

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खुशी के चमन का बिगुल बजा
मेरे रग रग में कम्पन है सजी
मै आवारगी सा इन्तजार करने लगा
दिन ,साल लगने लगे थे
मेरा प्यार जुड़ने लगा था
खुशी के चमन का बिगुल जो बजा था

अविराम चलकर मंजिल जो पायी थी
वो मेरे बगल में कुछ निहार रही थी
बिछड़े लम्हों को चुन रही थी। पर
मेरा ध्यान जो भंग कर रही थी।
खुशी के चमन का बिगुल जो बजा था

उसके माथे पे ख़ुशी चमक रही है
बेताब दिल धड़कन बढ़ा रहा है
बड़ी भाभी भृकुटि चढ़ा रही है
बहुरिया क्या लायी ,हमको भूल बेठे।
तानो की बौछार बढ़ा रही है
ख़ुशी के चमन में बिगुल जो बजा था

ये गांव भी कितना निराला है
सब घूँघट की आड़ में रहते है
अपने से बड़ो को आदर निभाते है
और मै दीदार से वंचित रह जाता हु।
सूरज ढलने की राह में मै 
बच्चे टोली संग खेल लेता हु।
संध्या का चेहरा देख दिल झूम उठा है
खुशी के चमन का बिगुल जो बजा था

सब संग बियालु करने लगे है
मेरा यार हमसे विपरीत घूँघट खोल रही है
हाथो से निवाला मुँह को प्रदान कर रही है
चाँदनी से चुनरिया चमक रही है
वो दूर से शोभायमान है
खुशी के चमन का बिगुल जो बजा था

लम्बी घड़ी बाद नीरवता फेली है
चाँदनी की चमक उजाले संग झूमी है
रूठे यार को मनाने में चुम्बन सजा है
चाँदनी बादल की ओठ में घिरी है
पूर्ण वातावरण नीरवता संग खेला है
खुशी के चमन का बिगुल जो बजा था

बड़ी भाभी बतियाने को आतुर है
पर वो शहर की हालात -ए-खबर पर रुकी है
मीठी वाणी से लाड़ लड़ा रही है
बिनोले से मक्खन तोड़ रही है
मै रोटी संग चबा रहा हु
हालात को हंसी में बदल रहा हु।
मै आकाश को निहार रहा हु
सूरज के अस्ताचल का चुपचाप मै इंतजार कर रहा हु।
चाँदनी को बादलो से मिलाने की आस लगी है
ख़ुशी के चमन में बिगुल जो बजा है
         -sou rayka

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