बहुत समय पहले की बात है, किशोरीपट्टनम नामक एक गांव में एक महान ऋषि का आश्रम था। इस आश्रम में ऋषि शिवानंद जी नामक ऋषि बसे थे। ऋषि शिवानंद जी का अपना एक पुत्र था जिसका नाम गणेश था। गणेश बचपन से ही अत्यंत बुद्धिमान थे और उनका ध्यान श्रीगणेश परमेश्वर की ओर बहुत आकर्षित था।
एक दिन गांव के लोगों ने निशानत्रण का आयोजन किया और आश्रम के बच्चों को इसमें भाग लेने के लिए आमंत्रित किया। इस प्रतियोगिता का विजेता बनने का अवसर था और विजेता को बड़ा पुरस्कार मिलेगा। गणेश भी इस प्रतियोगिता में भाग लेने का निर्णय लिया।
प्रतियोगिता के दिन, बच्चों को श्रीगणेश के मूर्ति के सामने एक गोलू पर प्रणाम करना था, और फिर उसे देवताओं के सबसे बुद्धिमान और ब्रह्मज्ञ ऋषि के पास लेजाना था।
गणेश ने अपने पिता के आशीर्वाद से उपायन किया और श्रीगणेश की मूर्ति पर प्रणाम किया। फिर उन्होंने अपनी बुद्धि और विवेक का प्रदर्शन किया और मूर्ति को ऋषि के पास पहुंचाया। ऋषि शिवानंद जी ने उनकी प्रतिभा को सराहा और उन्हें विजेता घोषित किया।
इस तरह, गणेश चतुर्थी का पर्व मनाया जाता है, जिसमें श्रीगणेश की पूजा और आराधना की जाती है। यह पर्व भगवान गणेश की जयंती के रूप में मनाया जाता है और लोग उनकी कृपा की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करते हैं।