"पहले हम अंग्रेजो के गुलाम थे
और आज हम अंग्रेजी के गुलाम हैं"
ये ऊपर लिखी लाइन मेरी नहीं है इसे कहीं सुना था मैंने ,पर ये नीचे लिखी कहानी जीवन का सत्य है जिसे मैंने लिखा है 🙏🙏🙏समय निकाल कर अवश्य पढ़ें 🙏🙏😊😊और अपनी राय जरुर बताएं🙏🙏🙏
बस का दरवाजा खोलकर मैं बस में चढ़ी , और चढ़ते ही मैं मुस्कुराई ,कोई था सामने उसे देखकर ,और वो भी मुझे देखकर मुस्कुराई।मैं थोड़ा आगे बढ़ी और मैंने कहा नमस्ते दीदी ! और उन्होंने मुझे ऐसी तीक्ष्ण नजरों से देखा मानो मैंने कोई अपराध किया हो? हां जिनसे नमस्ते किया था मैंने वो कोई और नहीं मेरे विद्यालय में मुझसे एक कक्षा आगे पढ़ने वाली मेरी वरिष्ठ थी। मैं थोड़ा आगे बैठने के लिए बढ़ी तो मेरा ध्यान उन के मुख पे प्रसारित भावों पर गया, वो मुझे ऐसी तीक्ष्ण नजरों से देख रही थी जैसे एक अंग्रेजी सूट बूट से सज्जित व्यक्ति किसी अनपढ़ को देख रहा हो । मेरा चंचल मन ये जाने को व्याकुल हो उठा की आखिर एक क्षण में इनका ये भाव परिवर्तित क्यों हो गया ,और ये मुझे ऐसे क्यों देख रहीं हैं ,अंततः मैने उनसे ये प्रश्न कर ही लिया , थोड़ा ठिठोली करते हुए मैंने पूछा उनसे ,की दीदी आप मुझे ऐसी तीखी नजरों से क्यों देख रहीं हैं 😄😄और उनका जवाब सुनकर तो मानों एक पल को मैं सिहर गई थी , कहा उन्होंने कि सुना है तुम मास्टर्स करती हो वो भी साइंस से मैने कहा जी हां,तो फिर कहा उन्होंने की उसमे तो सब इंग्लिश में होता है न ? मैने फिर कहा हम्म्म...तो उन्होंने थोड़ा रौब जमाते हुए एक अपमानजनक जवाब दिया..... कि मैंने तो B.A. किया है पर फिर भी तुमसे अच्छी इंग्लिश बोलती हूं और तुम देखो मुझे "नमस्ते दीदी" कह रही हो ....वो भी आज के हाय,हेलो बेब्स वाले जमाने में ,, मैं थोड़ा मुस्कुराई पर और फिर मैंने भी उनसे दोगुना रौब जमा कर एक तीखा जवाब देते हुए कहा ....हम हिंदुस्तानी हैं और हमे हिंदी बोलने में लज्जा नहीं आती पर बात यहीं खत्म नहीं की मैंने फिर कहा कि दीदी .....सुनिए ....आज से पहले हम अंग्रेजों के गुलाम थे और आज हम अंग्रेजी के गुलाम हैं।
पढ़ने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद 🙏🙏😊😊😊