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हरि आँखो वाली पंखुड़ी

12 नवम्बर 2021

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ए हवलदार क्या करता है छोड़ ना । कब से इस कबूतर खाने में बंद कर रखा है तुझे भी पता है हमे ज्यादा देर तक यंहा नही रख सकता फिर क्यों हमारा धंधा खोटी करने का ;  "लॉकअप में बंद 10 -15 औरतों में से एक औरत ने अपने खिसके हुए पल्लू को और खिसकाते हुए कहा ।
जैसे ही हवलदार की नजरें औरत के सीने पर पड़ी तो अपने होठों पर जीभ फिराते हुए बेहूदगी से बोला - माया मेरी जान कौन कमबख्त तुझे यंहा रखना चाहता है तू इन सलाखों के लिए नही सिर्फ बिस्तर के लिए बनी है पर क्या करूँ जब तक बड़े साहब नही आ जाते तुम्हे यंहा रहना पड़ेगा ।   मेरे हाथ मे कुछ नही है ।
वो औरत मुह बनाते हुए अपने पल्लू से पूरे सीने को ढकते हुए बोली - हुंह जब तू यंहा से निकाल ही नही सकता तो मेरा दीदार भी नही कर सकता । 
हवलदार लार टपकाते हुए सलाखों के पास लपका - ऐसे तो ना कर मेरी जान यंहा तुझे चख नही सकता पर दीदार तो करा दे । भूल मत मैं तेरा परमानेंट कस्टमर हु ।
औरत मुह बनाते हुए - तेरे जैसे फोकटिये को कोई भूल भी नही सकता । वर्दी का रौब झाड़कर साला मुफ्त में मुह मारने आ जाता है । पर अब तेरी औकात पता चल गई है , जब तू हमे यंहा से निकालने की हिम्मत नही रखता तो तेरे से डरने की क्या जरूरत । अब आइयो कभी कोठे पर मैं भी देखती फोकट में तुझे कौन अंदर आने देता है ।
हवलदार सलाखों के बीच से औरत को पकड़ने को हुआ कि तभी पीछे से एक रौबदार आवाज आई -  क्या हो रहा यंहा ।
आवाज के साथ ही हवलदार के पैर जड़वत हो गए और उसकी घिघि बन्ध गयी । वो डरते डरते पलटा और सामने खड़े  SP साहब को देखकर उसने जल्दी से सैल्यूट किया । SP  को देखकर पूरा पुलिस स्टेशन हरकत में आ गया । SP  ने एक नजर सबको देखा और फिर उसी रौबदार आवाज में बोला - कौन है ये सब और यंहा क्या कर रही है ।
और  फिर उस हवलदार को जलती आंखों से देखता हुआ बोला - ये पुलिस स्टेशन है कोठा नही । 
हवलदार ने शरम से आंखे झुका ली तो SP ने एक बार फिर कड़क आवाज में कहा - ये सब यंहा क्या कर रही है।
SP को इतने गुस्से में देख  किसी की हिम्मत ही नही हो रही थी उन्हें कुछ भी कहने की । सब डरते हुए थूक गटक रहे थे पर जवाब तो देना था इसलिए एक हैड कॉन्स्टेबल ने हिम्मत की और आगे आते हुए   बोला - सर ये सब जमना बाई के कोठे से है । इनको कोठे का तो लाइसेंस मिला हुआ फिर भी ये लोग वक्त बे वक्त कंही ना कंही किसी ना किसी होटल में मिल ही जाती है तो आज भी ऐसे ही होटल में थी तो आशिष सर ने   छापा मारकर इन्हें गिरफ्तार कर लिया ।
Sp  थोड़ा गुस्से से - अब ये आशीष कँहा है ?
हैड कांस्टेबल - सर वो आशीष सर तो राउंड पर गए है ।
SP गुस्से से - अभी  के अभी आशीष को कॉल करके यंहा बुलाओ उसे कहो बाकी के राउंड बाद में पहले मुझे आकर रिपोर्ट करे ।
हैड कॉन्स्टेबल सैलूट करते हुए - जी सर ।
" SP गौरव सरावगी एक  25 - 26 साल का सांवली रंगत वाला हटा कट्टा नौजवान । गौरव पहले ही प्रयास में आईपीएस क्लियर करके दिल्ली में SP के पद पर कार्यरत था । गौरव एक नेक दिल , ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ पुलिस अधिकारी था उसके सीनियर तो यही कहते थे नया नया खून है एक बार उबाल मारकर अपने आप शांत हो जाएगा । लेकिन ये पद गौरव के लिए क्या मायने रखता था वो ही जनता था और शपथ ग्रहण के दिन उसने खुद से भी ये वादा किया था चाहे कुछ भी हो जाए इस पद की गरिमा पर कभी कोई आंच नही आने देगा और उसी वादे पर चलते हुए अपनी ड्यूटी उसने इतनी बहादुरी से की कि अब उसके एरिया में अपराध ना के बराबर रह गया था ।

आमतौर पर   उसे गुस्सा कम ही आता था वो उन नौजवानों में से नही था जो जवानी के जोश में उबलते फिरते है वो गुस्से से कम और दिमाग से तेज व्यक्तित्व वाला इंसान था लेकिन आज वो इन सेक्स वर्कर्स को देखकर ना जाने क्यू बिफर पड़ा ।   वो उनको एक नजर देखना भी पसन्द नही कर रहा था और ऊपर से वो सारी औरतें तेज तेज आवाज में बहुत ही भद्दी बातें कर रही थी उन्हें अपानी साड़ी के पल्लू का कोई होश नही था कि कँहा जा रहा है या वो जानबूझकर वँहा के मर्दों को उकसाने की कोशिश कर रही थी । गौरव का ये सब देखकर दिमाग खराब हो गया वो जल्द से जल्द इन सब से छुटकारा पाना चाहता था । उनको देखकर उसके कोई दबे हुए घाव हरे होने लगे थे । उन सब को इग्नोर करने के लिए गौरव ने अपने  केबिन में जाना ही ठीक समझा । उसने कुछ ही कदम बढ़ाए होंगे कि उसकी नजर अनायस ही उन औरतों में से  किसी एक कि दो जोड़ी आंखों पर पर टिक गई । उसे सिर्फ वो आंखे ही दिखाई दे रही थी क्योंकि वो किसी की ओट से गौरव को देख रही थी । गौरव के कदम अपनी जगह ही ठिठक गए । न जाने कैसा चुम्बकीय आकर्षण था उन आंखों में जो गौरव अपने कदम आगे बढ़ा ही नही पाया । हरी आंखे जो काजल से सनी हुई बेहद दिलकश लग रही थी साथ ही पलकें इतनी घनी की किसी को अभी अपना बना ले । अपनी पलकों को घना दिखाने के लिए  अभिनेत्रियां नकली आईलैशेज लगती है वैसी उसकी नेच्युरल थी । उन आंखों ने गौरव को अपनी तरफ देखता पाया तो घबराकर उसी  औरत की ओट में हो गयी । जो गौरव अब तक गुस्से में तिलमिला रहा था उसकी इस हरकत से न चाहते हुए भी मुस्कुरा उठा । लेकिन उसके छुपने से गौरव के मन मे ना जाने कैसी हूक उठी की वो उसे देखने के लिए बेताब हो गया । मन मे एक ख्याल ही आया " जिसकी आंखे इतनी नशीली , इतनी कातिलाना हो वो खुद ना जाने कैसी होगी । उसे देखने की चाहत गौरव में ऐसी जगी कि उसने अपने कदम वापस खींच लिए और केबिन में जाने की बजाय वंही किसी डेस्क पर एक फाइल देखने के बहाने बैठ गया और उसकी ओट से तिरछी नजर से सलाखों के उस पार उन आंखों को देखने की कोशिश करने लगा पर वो आंखे उसे वापस दिखी ही नही । काफी वक्त गुजर गया वँहा मौजूद हर औरत की बेहूदगी अभी भी चालू ही थी । वँहा की लेडी ऑफिसर्स ने उन्हें रोकने की कोशिश की पर वो कुछ देर शांत रहती और फिर वापस अपने उसी अवतार में आ जाती । उन पर हाथ उठाने को गौरव ने मना कर दिया था इसलिए वो कुछ ज्यादा ही आंखे मटका रही थी । पर जिन आंखों का गौरव को इंतजार था वो नही दिखी । गौरव मन ही मन बेचैनी से बोला - कितनी देर हो गयी । ऐसी कौनसी सुरंग बनी है इस लॉकअप में जो वो बाहर ही नही निकल रही । कब से छुपकर बैठी है उसे सफोकेशन नही जो रही क्या । 
गौरव परेशानी से अपने निचले होठ का कोना काटते हुए सोचने लगा कि तभी किसी ने उसे सैल्यूट किया गौरव का ध्यान उस तरफ गया तो उसका जूनियर आशीष खड़ा था।
आशीष - सॉरी सर वैट कराने के लिए पर आज का राउंड जरूरी था ।
गौरव की नजरें अभी भी लॉकअप पर टिकी थी - नो ,,,, नो इट्स ओके आशिष । मुझे खुशी है कि तुम अपना काम इतनी ईमानदारी से कर रहे हो ।
आशिष मुस्कुरा दिया लेकिन उसने गौरव का ध्यान अपनी और न पाकर आशिष ने उसकी नजरों का अनुसरण किया तो बोला - सर इन लोगों को कितना ही समझा लो जब लाइसेंस मिला हुआ है तो अपनी जगह पर ही धंधा करे ना । पर ये सुनती ही नही है कंही भी शुरू हो जाती है इसलिए आज धर ही लिया इन सबको । एक दो दिन जेल में रहेगी तो सारी अक्ल ठिकाने आ जाएगी ।
आशिष की बात से गौरव का ध्यान उन आंखों से हटा और एक बार फिर गुस्सा उस पर हावी होने लगा तो वो झटके से खड़ा हुआ और बोला - एक दो दिन ! मैं इन्हें अब एक पल और बर्दास्त नही कर सकता । जल्दी से चार्ज सीट तैयार करो और इन्हें मेरी नजरों से दूर करो समझे ।
आशिष उसके गुस्से में देख एक बार तो थोड़ा हैरान रह गया पर फिर बोला -  रिलेक्स सर ! क्या हो गया है आपको । मैं अभी इनका कोई ना कोई इंतजाम करता हूं बस आप शांत रहिये । 
गौरव का मन एक बार फिर  गुस्से से भर गया तो वो वँहा से जाने के लिए मुड़ा पर मुड़ते ही उसे एक बार फिर वो आंखे नजर आई । गौरव समझ गया कि वो जब जब गुस्सा करता है ये आंखे उस पर आकर टिक जाती है ।  वो आंखे गौरव को एक बार फिर अपनी तरफ देखता पाकर छुप गयी तो गौरव बड़बड़ा उठा - आह ! फिर से नही ये क्या लुक्का छुपी का खेल लगा रखा है । अभी जाकर देखता हूं आखिर ये है कौन ।
गौरव ने आशिष को बिना कुछ कहे लॉकअप की तरफ कदम बढ़ाया की तभी उसके कानों में किसी की आवाज पड़ी - राम राम साहेब ।
गौरव ने मुड़कर देखा तो एक मोटी सी औरत खड़ी पान चबा रही थी । हाथ और गले मे जैसे दुनियां भर का सोना पहन लिया हो । उसके साथ एक छिछोरी सी शक्ल का आदमी और एक शायद वकील खड़ा था जो अपने पहनावे और हाथ मे कागजों को लिए वकील होने की गवाही दे रहा था।
गौरव उनकी तरफ मुखातिब होकर - जी कहिए क्या सेवा कर सकता हूं ।
औरत बेशर्मी से हंसते हुए - हिहिहिहि क्या साहेब हम तो आपके गुलाम है मालिक से सेवा थोड़े ही कराएंगे । 
गौरव असमंजस में  देखने लगा तो आशिष आगे आकर बोला - सर ये जमाना बाई है  , ये जो लॉकअप में बंद है सब इसके ही कोठे पर काम करती है ।
गौरव ने एक नजर जमना बाई को देखा और चेयर पर बैठते हुए उसे भी बैठने का इशारा किया । जमना बाई बैठ गयी और वकील से लेकर कागज गौरव की तरफ बढ़ा दिए । गौरव ने कागज ले लिए और  अपने गुस्से को काबू में लाकर बेहद शांति से बोला - देखो जमना बाई  तुम्हारे पास कोठा चलाने का लाइसेंस है तो वंही तक अपने धंधे को सीमित रखो । मैं कोई भी काम एक रूल से करने में यकीन रखता हूँ । अगर अगली बार तुम्हारी ये वर्कर मुझे कंही भी दूसरी जगह दिखी   तो किसी भी कोर्ट के ऑर्डर में इतनी ताकत नही होगी कि इनको जेल से रिहा कर दे ।
जमना बाई पान चबाते हुए - क्या साहब धमकी दे रहे हो ।
गौरव उसकी तरफ घूरते हुए बोला - समझा रहा हूं ।
जमना बाई  नकली हंसी हंसते हुए - अरे आप तो गुस्सा हो गए । क्या साहेब जवानी में खून गर्म रहता है मानती हूं पर इसको ठंडा करने का इलाज भी सिर्फ मेरे पास है । आपको कभी हमारी तरफ आते नही देखा कभी तो सेवा का मौका दो । आपकी तबियत खुश ना करदी तो मेरा नाम भी जमना बाई नही ।
गौरव ने अपने सामने रखी टेबल पर हाथ दे मारा और उठते हुए बोला - ये खून इतना भी सस्ता नही जो कोई भी आकर ठंडा कर जाए । शांति से समझा रहा हु समझ लो   वरना मैं अपनी ड्यूटी को लेकर कितना सीरियस हु ये यंहा मौजूद किसी भी इंसान से पूछ सकती आप ।
जमना बाई थोड़ा सा सहम गई पर फिर भी अपनी ढिठाई नही छोड़ी - क्या साहब नई नई नोकरी है ना तभी इतना उछल रहे हो एक दो साल निकलेंगे तो आप भी दूसरे अफसरों की तरह मेरी चौखट पर लार गिराते मिलोगे ।
गौरव गुस्से से चिल्ला पड़ा - जमना बाई........!!! अपनी हद में रहो । 
जमना बाई भी उसकी लाल आंख देखकर सहम गयी और अपनी जगह से खड़ी हो गयी । गौरव उँगली दिखाते हुए जैसे ही बोलने को हुआ एक बार फिर उसकी नजर उन्ही हरि आंखों पर चली गयी जो अब डर और घबराहट से फड़फड़ा रही थी । उन आंखों को देखकर गौरव को अपने अंदर कुछ पिघलता सा महसूस हुआ तो उसने खुद को शांत किया और वापस अपनी जगह पर बैठ अपनी आईब्रो पर हाथ फिराते हुए बोला - देखो औरत जात हो    इसलिए इज्जत से कह रहा हु वरना  हमारी लेडी ऑफिसर्स  के हाथों में बहुत खुजली होती है अब तक तुम्हारी इन लड़कियों साथ साथ तुम्हारी शक्ल का नक्शा भी बिगड़ चुका होता ।
जमना बाई गौरव के तेवर देखकर अपने मन के तूफान को रोककर खड़ी हो गयी लेकिन हां गौरव का लहजा उसे जरूर खटक गया था ।  वंही गौरव का दिमाग भी खराब हो गया था इसलिए वो अब आशिष को कागजी कार्यवाही करने का कह अपने केबिन में चला गया । 
आशीष ने बिना किसी बात चीत के कागजी कार्यवाही की और जमना बाई को वार्निंग देकर सभी को छोड़ दिया । उनके कदमों की आवाज सुन गौरव खुद को रोक नही पाया और अपने केबिन के दरवाजे पर आकर खड़ा हो गया तभी उसकी नजर उस हरि आंखों वाली लड़की पर पड़ी । एक दम पतली सी कमर से बलखाती हुई चल रही थी । रंग इतना गौरा जैसे अभी मलाई  में से निकली हो । आंखे तो उसकी कातिलाना थी ही बाल इतने लंबे और घने की एड़ियों को छूने के लिए बेताब थे और होंठ इतने लाल जैसे अनार का दाना हो  अब होठ इतने लाल थे या लाली लगा रखी थी पता नही पर थे एक दम गुलाब की पंखुड़ी से । उसने  लहंगा पहना हुआ था ब्लाउज भी कमर से काफी ऊपर था तो कमर   पूरी दिख रही थी । इस वक्त वो इतनी मासूम और नाजुक दिख रही थी कि जैसे ही कोई हाथ लगाए तो बिखर जाए । अपने आँचल का उसे भी कोई होश नही था । इसलिए गौरव की नजर   जब उसके शरीर पर पड़ी तो उसने नजर हटा ली । उम्र से वो 15 या ज्यादा से ज्यादा 16 साल की ही होगी । इतनी कम उम्र की लड़की को इस काम मे देख गौरव के मन मे हलचल मच गयी । 
लड़की की नजर भी जब गौरव पर पड़ी तो उसने अपनी पलकें झुका ली गौरव को महसूस हुआ कि लडक़ी ने पलकें झुकाकर उसे भी उनमें कैद कर लिया हो वो लड़की तो जमना बाई के साथ चली गयी लेकिन गौरव की मन मे उथल पुथल मचा गयी ।
खैर काम करते करते रात के 9 बज गए तो  गौरव को घर जाने का ख्याल आया ।  वो अपने केबिन से निकला तो आशीष  पर नजर पड़ी । 
गौरव - आशिष ! तुम अभी तक गए नही ।
आशिष - आज आपके साथ जाने का मन था सर ।
गौरव हंस पड़ा - चलो चलते है ।
नाइट ड्यूटी वाले ऑफीसर्स ने अपनी ड्यूटी सम्भाल ली थी और गौरव आशिष के साथ बाहर आ गाड़ी में बैठ गया। आशिष ने गाड़ी स्टार्ट की और दौड़ा दी दिल्ली की सड़कों पर । गाड़ी में खामोशी पसरी थी जिसे दूर करने के लिए आशिष ने बात शुरू की - क्या बात है सर आज आप  पूरे दिन से खामोश है । जब से आपने उन वर्कर्स का सामना किया है आप बहुत शांत लग रहे है । पहले तो आपने उन पर गुस्सा किया और उसके बाद एक दम शांत। सब ठीक तो है ।
गौरव धीरे से - हम्म, सब ठीक है ।
आशिष समझ गया था कि गौरव बताना नही चाहता है इसलिए उसने गाड़ी की स्पीड थोड़ी तेज की और खामोशी से ड्राइव करने लगा । वंही गौरव आंख बंद कर सीट से सर लगाकर बैठ गया और ना चाहते हुए भी उसके दिमाग मे पुरानी यादें चलने लगी ।

गौरव 4 साल का था जब उसके पापा एक एक्सीडेंट में उनको छोड़ कर चले गए । सास ससुर ने उसकी माँ को ये कहकर घर से निकाल दिया कि वो उनके बेटे को खा गई । मायके में भी मां बाप नही थे सिर्फ भैया भाभी थे तो उन्होंने भी पल्ला झाड़ लिया  । उसकी मां गौरव के साथ दर दर भटकती रहती थी । ये समाज और रिश्तेदार जो आपकी जिंदगी के हर छोटे बड़े फैसले में अपनी टांग घुसता है उस वक्त मदद को कोई एक हाथ भी नही आया । ज्यादा पढ़ी लिखी ना होने पर घर घर जाकर झाड़ू पोछा करने लगी पर वँहा भी एक अकेली औरत को देखकर समाज के मर्द गिद्द की तरह मंडराते रहते । जंहा भी काम करने जाती उसके शरीर के साथ छेड़खानी जरूर होती तो आखिर में हारकर अपने बेटे को पढ़ा लिखाकर काबिल बनाने के लिए वो उस गन्दगी में उतर गई और गौरव को एक शेल्टर होम में छोड़कर खुद कोठे पर चली गयी ।  वँहा वो अपना जिस्म बेचकर अपने बेटे को पढ़ाने लिखाने लगी ।  कभी कभी गौरव से मिलने जरूर आती पर गौरव कितना भी रोये वो कभी उसे अपने साथ नही लेकर गयी । समय बीतता गया और गौरव 11 साल का हुआ तो उसकी माँ भी चल बसी । हर किसी के साथ समंध बनाने से अनेक बीमारियों से घिर गई थी वो और वो ही उनकी मृत्यु का कारण बनी । अपने बेटे को काबिल बनाने के लिए वो जिस दलदल में उतरी थी वो ही दलदल उसे बेटे के पैरों पर खड़ा होने से पहले ही निगल गया । 11 साल का गौरव अनाथ हो गया था और उसे समझ भी आ गया था उसकी माँ क्या काम करती थी । जब शेल्टर होम वालों को पता चला तो उसकी मरी हुई मा के काम के कारण उसे वँहा से निकाल दिया और एक बार फिर गौरव सड़क पर आ गया । पर ना जाने क्यों उसने हार नही मानी और चल पड़ा नई मंजिल की और । ना जाने कितने ही ढाबों ने बर्तन धोये । कितने ही गैराजों में गाड़ियां साफ की पर हार नही मानी और अपनी पढ़ाई जारी रखी  और आखिर में पहले ही एटेम्पट में आईपीएस ऑफिसर बन गया । गौरव एक दम शांत सा ही रहता था लेकिन जब भी किसी सेक्स वर्कर को देखता तो उसका दम घुटने लगता था क्योंकि मां याद आ जाती थी और वो खुद को गुस्सा करने से नही रोक पाता था । 

गौरव अभी भी अपनी सोच में गुम था तो आशिष ने उसे हिलाया । गौरव हड़बड़ाकर उठा तो देखा उसका घर आ गया है । आशिष उसको ऐसे देखकर - क्या हुआ सर सब ठीक तो है । 
गौरव ने अपने पूरे चेहरे पर हथेली फिरायी और बोला - हम्म ठीक हु मैं तुम चिंता मत करो ।
वो गाड़ी से उतरा और आशिष को बिना कुछ कहे ही गेट की तरफ बढ़ गया । आशिष उसे इस तरह बिना कुछ कहे जाते देख खुद में ही बड़बड़ाया - आज सर को हो क्या गया है । जब से यंहा आए है तब से आज पहली बार इनको इतना डिस्टर्ब देख रहा हूं । 
गौरव अंदर चला गया तो आशिष कुछ देर तक तो देखता रहा फिर वो भी अपने घर की तरफ बढ़ गया । गौरव अंदर आया घर की लाइट जलाई और जूते निकालकर सोफे पर सर टिकाकर आंख बंद कर बैठ गया । कुछ देर तक वैसे ही बैठा रहा जब राहत नही मिली तो अपने रूम में आया और यूनिफार्म निकाल नहाने चला गया । नहाने के बाद उसे कुछ अच्छा महसूस हो रहा था । वो किचन में आया तो खाना बनाने वाला खाना बनाकर जा चुका था पर उसका मन नही हुआ कुछ खाने का तो अपने लिए चाय बनाई और वापस अपने रूम में आ बालकनी में लगी चेयर पर बैठ गया । उसके हाथ मे नॉवेल था । गौरव की फेवरेट हॉबी थी पढ़ना पर आज उसका मन नॉवेल में भी नही लग रहा था । उसमे झल्लाकर नावेल बन्द कर दिया और धीमी आवाज में वंही पड़ा बूफर स्टार्ट कर दिया । 
बूफर ऑन होते ही गाना बजा : 

नैनों की तो बात नैना जाने हैं
सपनो के राज़ तो रैना जाने हैं
नैनों की तो बात नैना जाने हैं
सपनों के राज़ तो रैना जाने हैं

दिल की बातें धड़कन जाने हैं
जिसपे गुज़री वो कल जाने हैं
हम दीवाने हो गए हैं आपके
हम तो बस इतना जाने हैं

तू मेरा है सनम, तु ही मेरा हमदम
तेरे संग जीना अब सातों जनम
तू मेरा है सनम, तु ही मेरा हमदम
तेरे संग जीना अब सातों जनम।

गाने की लिरिक्स कानों में पड़ते ही गौरव को वो हरि आँखे एक बार फिर याद आने लगी और साथ ही याद आ गया इतनी कम उम्र में उसकी मासूमियत का इस तरह कुचले जाना ।



गाना सुनकर गौरव की आंखों के सामने वो हरि आंखे एक बार फिर आ गयी लेकिन साथ ही उसे याद आया इतनी सी उम्र में उसका ये काम करना । कँहा तो गौरव  मन की शांति के लिए गाने सुनने बैठा था और अब इन्ही गानों ने उसके मन मे और ज्यादा उथल पुथल मचा दी । जब उसे कुछ समझ नही आया तो उसने सोना ही बेहतर समझा पर बिस्तर पर लेटने से तो नींद नही आ जाती । आज उसे वो हरि आंखे क्या दिखी गौरव की नींद - चैन सुकून सब छीना जा चुका था और इसी वजह से गौरव रात भर करवटें बदलता रहा । अगले दिन गौरव सुबह जल्दी उठकर जॉगिंग के लिए चला गया लेकिन तब भी उसे वो आंखे बार बार याद आ रही थी । उस चेहरे की मासूमियत भी गौरव को अपनी तरफ खींच रही थी । वो अब इससे काफी ज्यादा परेशान हो गया था । घर आया तब तक घर मे काम करने वाले काका आ चुके थे उनको चाय का कहकर गौरव नहाने चला गया । नहाकर उसे कुछ अच्छा लगा तो तैयार होकर नीचे आया और चाय नाश्ता कर ड्यूटी पर चला गया । आज भी आशिष ही उसे लेने आया था तो रास्तेभर उससे बात कर  गौरव का मन कुछ हल्का हो गया था । पुलिस स्टेशन   में भी जब उसकी नजर लॉकअप पर पड़ी तो वो लड़की याद आ गयी जिससे उसके मन मे एक हुक सी उठी लेकिन वँहा उसने अपने काम को प्रायोरिटी देते हुए फाइलों में सर खफा लिया । गौरव कुछ पेंडिंग केसेज की फाइल देख ही रह था कि हेडकांस्टेबल ने एक लेटर लाकर उसकी डेस्क पर रखा । गौरव ने वो लेटर पढ़ा तो उसकी भौएं तन गयी क्योंकि लेटर में उसके सीनियर्स का ऑर्डर था कि आज के बाद जमना बाई के धंधे में  पुलीस की वजह से कोई दिक्कत नही आई चाहिए ।  जमना बाई जंहा चाहे, जैसे चाहे धंधा कर सकती है आज के बाद पुलिस को उनसे कोई लेना देना नही होना चाहिए। लेटर पढ़कर गौरव को जमना बाई से ज्यादा अपने सीनियर्स की हरकत खटकी । उसे खटका की  पुलिस वाले खुद ही इस वर्दी और कानून का मजाक बनाकर रखते है । गौरव को अपने सीनियर्स से घिन जरूर आ रही थी पर उसने दिमाग शांत रखा और कुछ सोचने लगा । काफी देर तक इस मामले के बारे में सोचता रहा उसके हाव भाव देखकर लग रहा था कि अपने दिमाग मे ही मामले की तहकीकात कर रहा है ; आखिरकार उसके चेहरे पर एक स्माइल आ गयी क्योंकि उसने सोच लिया था कि अब करना क्या है । गौरव ने आशिष को बुलाया और वो लेटर पढ़ाया तो आशिष ने उसे कहा - मैं इस लेटर का कारण नही समझ पा रहा हु सर । मतलब एक मामूली सी कोठे वाली के लिए इतने बड़े बड़े ऑफीसर्स का ऑर्डर अजीब है ना । 
गौरव अपनी जगह से खड़ा हो गया और   केबिन में चक्कर काटते हुए बोला - जिस्म का नशा हर नशे से घातक होता है आशिष और हमारे ऑफीसर्स उसी नशे में जकड़े हुए है । 
आशिष - तो इसमें लेटर भेजने की क्या जरूरत थी सर आज तक हमने ना जाने कितने ही कोठे वालों को पकड़ा है पर पहले तो  ऐसा नही हुआ ।
आशिष की बात से गौरव मुस्कुरा उठा और बोला - जवाब तो तुमने अपने सवाल में ही दे दिया है आशिष तो मुझसे क्या पूछते हो ।
आशीष को गौरव की बात बिल्कुल समझ मे नही आई वो सोचते हुए नाखून कुतरने लगा तो गौरव ने चेयर की तरफ इशारा किया और बोला - बैठो समझाता हु ।
आशिष चेयर पर बैठ गया तो गौरव भी उसके सामने डेस्क पर बैठते हुए बोला - आज तक तुमने ना जाने कितने सेक्स वर्कर्स को पकड़ा पर ऐसा कोई लेटर नही आया इसका एक सीधा मतलब तो यही निकलता है कि  जमना बाई की पहचान बड़े बड़े अफसरों से है पर एक पुलिस वाले कि नजर से देखो तो गौर करो आशिष हमने कल ही तो पकड़ा था और आज ही उन लोगों का लेटर आना । मतलब वो लोग किसी और चीज से डर रहे हैं । शायद इस कोठे में जिस्म के धंधे के अलावा भी कुछ होता है  और ये लोग नही चाहते कि वो सामने आए इसलिए इतनी हड़बड़ाहट दिखा रहे है ।
अब आशिष भी मुस्कुरा दिया - इन लोगों ने तो खुद ही अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार ली सर । मतलब हम तो सिर्फ उनको बाहर धंधा करने से रोक रहे थे ऐसी किसी भी बात पर हमारा ध्यान ही नही था ।
गौरव - बिल्कुल ! इसीलिए तो कहते है इंसान को कोई भी कदम उठाने से पहले उसके अच्छे और बुरे दोनों पहलुओं पर गौर कर लेना चाहिये ।
गौरव आशिष की तरफ देखकर बोला - इसकी तह तक जाने में मेरी मदद करोगे आशिष ?
आशिष उसकी नजरों में आत्मविश्वास से देखता हुआ बोला - ये भी कोई कहने की बात है । 
गौरव - इतनी जल्दी फैसला मत लो आशिष तुम खुद देख रहे हो कि इसमें कितने बड़े बड़े लोग शामिल है अगर उनकी नजरों में आ गए तो तुम सोच सकते हो तुम्हारे लिए कितने खतरे की बात है ।
आशिष के चेहरे से आत्मविश्वास बिल्कुल कम नही हुआ वो उसी लहजे में बोला - ये वर्दी किसी के तलवे चाटने के लिए नही पहनी है सर   । अपने देश की सेवा करने के लिए पहनी है और देश के लिए मरना भी पड़े तो कम है । शेर की खाल में छुपे इन भेडियों को उनकी असली औकात दिखाने के लिए मैं कुछ भी करूंगा सर आप बस ऑर्डर कीजिये ।
गौरव आशिष का कन्धा थपथपाते हुए बोला - मुझे तुम पर पूरा यकीन है आशिष लेकिन हमें कोई भी जल्दबाजी नही करनी है । हमे इन समाज के दीमकों को पकड़ने के लिए इनकी जड़ तक पहुंचना बहुत जरूरी है । 
आशिष ने सहमति में सर हिलाया और बोला - तो अब हमे करना क्या है सर । 
गौरव - मैंने कुछ सोचा है और ध्यान रहे इसकी खबर हम दोनों के अलावा यंहा के किसी भी कर्मचारी को नही लगनी चाहिए फिर चाहे वो कोई भी क्यू ना हो  क्यंकि कल मैने यंहा के हर शख्स की आंखों में वासना देखी है और मुझे पूरा यकीन है  ये लोग भी जमना बाई के कोठे पर जाते है तो हमे सम्भलकर रहना होगा । हम सबके सामने ऐसा बिहेव करेंगे जैसे कि हम जमना बाई  को जानते तक नही । वो या उसके यंहा काम करने वाली कोई भी लड़की क्या करती है  हमे उससे कोई मतलब नही होगा । जमना बाई को जो करना है  बेधड़क करने दो । उसे सोचने दो की हम ये लेटर पढ़कर डर गए और अपने हाथ इस मामले से खींच लिए है ।
आशीष - जी सर ऐसा ही होगा आप निश्चिन्त रहे ।
गौरव ने उसे अपने प्लान के बारे में समझाया और वापस भेज दिया । आशिष केबिन से निकलकर राउंड के बहाने गौरव का काम करने निकल गया । गौरव और आशिष ने सबकी नजरों से बचकर अपने अपने खबरियों को जमाना बाई के पीछे लगा दिया । दोनों के ही खबरी उनकी तरह तेज तर्रार थे इसलिए जल्दी ही वो लोग जमना बाई के बारे में खबरें निकालने में कामयाब रहे । छोटी से छोटी बात पता करवाई थी गौरव ने इसलिए पूरा 1 महीना लग गया उन्हें सारी जानकारी इकठ्ठा करने में । इस एक महीने में गौरव का सामना उन हरि आंखों से एक दिन भी नही हुआ पर वो आज भी उसके लिए उतना ही बेचैन था  जितना पहली बार देखने पर हुआ था । गौरव उस लड़की से मिलना चाहता था एक बार , पर उसकी गलियों में जाना उसे गवारा नही था और वो कभी उसके सामने आई नही । इस एक महीने में गौरव या किसी भी पुलिस वाले कि तरफ से जमना बाई को कोई परेशानी नही हुई तो उसने सोचा पुलिस उससे डर गई है वो जैसे चाहती वैसे बिना किसी रोक टोक के अपना धंधा करने लगी ।
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एक शाम गौरव किसी काम से होटेल में गया और काम निपटाकर होटेल के कॉरिडोर से निकलने लगा तो उसके कानों में पायल की छनकार गूंजी । गौरव पलटा तो हैरान रह गया क्योंकि वही हरि आंखों वाली लड़की लहंगे को कमर से पकड़ हल्का सा उठाकर उसकी तरफ दौड़ते हुए आ रही थी । उसके बाल भी खुले ही थे तो लहराकर चेहरे पर आ रहे थे । वो दौड़ते हुए बार बार पीछे मुड़कर देख रही थी शायद कोई उसके पीछे आ रहा था । थोड़ी घबराई और हुई सी , सहमी हुई सी बहुत ही दिलकश लग रही थी। गौरव उसको ऐसे डर से दौड़ते देख हैरान रह गया । वो लड़की दौड़ते दौड़ते जैसे ही गौरव के करीब से गुजरी गौरव ने उसकी कलाई पकड़ ली । वो लड़की झटके से रुक गयी और गौरव की तरफ मुड़ी तो उसके बाल फिर चेहरे पर आ गए । इस बला की खूबसूरत अप्सरा को इस तरह देख गौरव के दिल ने जैसे धड़कना ही बन्द कर दिया। वो तो जैसे उस खूबसूरत से चेहरे में खोकर रह गया उसकी तुन्द्रा लड़की की आवाज से टूटी - अरे हाथ छोड़ ! क्या कर रहा है । अरे वो आ जाएंगे छोड़ ना । देख अगर मैं पकड़ी गई तो तुझे भी नही छोडूंगी सोच ले । अरे छोड़ ।
गौरव की पकड़ उसकी कलाई से रत्ती भर भी ढीली नही हुई तो लड़की फिर बोली - देख मैं चलूंगी तेरे साथ पर अभी छोड़ दे । वो जमना बाई है ना उसी के कोठे पर काम करती हूं । तो आ जाना उधर । मैं मिल जाएगी तेरेको पर अभी छोड़ । 
गौरव तो जैसे उसके गौरे चेहरे और हरि आंखों के रूप जाल में मोहित हो गया उसे कुछ सुनाई ही नही दे रहा था।  उस लड़की ने देखा इस पर तो कोई असर ही नही हो रहा है तो अपना हाथ खींचने की कोशिश करने लगी । तभी उसके कानों में कुछ दौड़ते पदचापों की आवाज आई तो उसने आव देखा ना ताव गौरव को धक्का दिया और उसके मुह पर अपनी हथेली रखते हुए उसे दीवार से सटा दिया । धक्का लगने से सम्भलने के चक्कर मे गौरव का हाथ उस लड़की की खुली कमर पर चला गया । लड़की बार बार दीवार की ओट से देख रही थी तभी उसे वो लोग नजर आए जो उसका पीछा कर रहे थे । वो वापस दीवार के पीछे हो गयी । लड़की का एक हाथ गौरव के मुह पर था और दूसरा अभी भी गौरव के हाथ मे था । गौरव का दिल इतना जोर से धड़क रहा था कि पूछो मत । जिस लड़की ने उसे पिछले एक महीने से बेचैन कर रखा था वो इस तरह उसके सामने आएगी उसने नही सोचा था । जिन हरि आंखों को देखने के लिए  दिन रात बेचैन था वो इस वक्त उसके इतना करीब थी कि गौरव सांस नही ले पा रहा था । गौरव एक टक उसको देख रहा था और वो लड़की झुक - झुककर दीवार की ओट से बाहर देख रही थी । आखिर में जब उसे यकीन हो गया कि वो लोग वँहा से चले गए हैं तो उसने चैन की सांस ली और गौरव की तरफ पलटते हुए नाराजगी से बोली - तेरा दिमाग खराब है , कब से कह रही थी छोड़ छोड़ । पर नही तू तो मालिकाना हक समझ बैठा । किसी को मुझे फ्री में देखने की इजाजत नही है और तूने तो सीधा हाथ ही पकड़ लिया । हद है । अब बोल भी क्या मुह में दही जमा लिया है और ये क्या बटेर सी आंखे निकाल घूर रहा है नजर लगाएगा क्या । पर तु चिंता मत कर मुझे नजर नही लगेगी वो क्या है ना वाणी दीदी हर रोज मेरी नजर उतारकर काला टिका लगाती है ; ये देखो  । " कहते हुए लड़की ने अपने सीने की तरफ इशारा किया गौरव की नजर वँहा गयी तो देखा उसका सीना बिना आंचल के था और कुछ  ज्यादा ही नजर आ रहा है । गौरव ने झट से आंखे फेर ली ।  और थूक गटकने लगा ।
लड़की ने उसे ऐसे देखा तो बोली - अरे क्या हुआ नजर क्यु फेर ली । मैं तुझे सुंदर नही लगी क्या । बोल तो । अभी तो  बड़ा हाथ पकड़ रहा था और मुह से कुछ नही फूट रहा है । 
उसकी बातें सुन गौरव मन ही मन बोला - उफ्फ ! क्या है ये लड़की शक्ल से इतनी मासूम और बातें कितनी बेहूदगी भरी । हो गी भी क्यों नही, रहती भी तो उस गन्दगी में है ।
लड़की ने देखा गौरव कुछ बोल ही नही रह है तो इसे हिलाया । गौरव ने अभी भी नजरें फेर ही रखी थी उसने अपने मुह पर रखा  लड़की का हाथ झटक दिया और तेज तेज सांसे लेकर बोला - मुह पर हाथ रख बोलने को कहती हो पागल वागल हो क्या । 
लड़की को अब ख्याल आया तो झटके से थोड़ा पीछे हटी पर अगले ही पल गौरव के सीने से आ लगी । दरअसल गौरव का हाथ अभी भी उसकी कलाई में था जैसे ही झटके से पीछे हटी उसी गति से वापस खींची आई और गौरव के सीने से लग गयी । गौरव ने उसे दूर झटक दिया और हाथ भी छोड़ दिया ।
लड़की ने भी मुह बनाते हुए अपनी कलाई सहलाई और बोली - माफी मांगने वाली थी पर मैने तेरे मुह पर हाथ रखा तो तूने भी मेरी कलाई लाल कर दी पूरी ।  हिसाब बराबर ।
गौरव के कुछ कहने से पहले ही लड़की जाने को मुड़ी तो गौरव बोला - ठहरो ।
लड़की के कदम जगह ही रुक गए और वापस मुड़ते हुए बोली - देख खाली पीली मेरा टाइम खोटी मत कर समझा आगे ही बहुत देर हो गयी है । अगर ज्यादा ही रोकने का मन है तो जेब से पैसा निकाल और जमना बाई से परमिशन ले । जितनी देर कहेगा ठहर जाएगी मैं । 
उसकी बातों से गौरव का दिमाग झनझना गया - ए  लड़की हद में रहो , वरना ! 
लड़की - वरना क्या ? हम लोग कभी हद में नही रहते साहब धंधे वाली हु हद में रहूँगी तो पेट कैसे भरेगा ।
धंधे वाली हु सुनकर गौरव के मन मे अजीब सी टीस उठी - मुझे बात करनी है तुमसे ।
लड़की - जरूर पर अभी नही वो क्या है ना पहले ही लेट हो गयी हु और देर करूंगी तो रात को भूखा रहना पड़ेगा । कह तो रही हु जमना बाई के कोठे पर आ कीमत दे और लेकर जा मुझे  फिर बात क्या तू कहेगा वो करूंगी ।
गौरव जो खुद को शांत रखने की कोशिश कर रहा था गुस्से से बोला - मैंने कहा बात करनी है तो मतलब बात करनी है । मेरे सवालों का जवाब दिए बिना कंही नही जा सकती तुम । 
उसकी गुस्से भरी आवाज सुन जाने को मुड़ चुकी लड़की के कदम एक बार फिर जड़वत हो गए । उसकी गुस्से भरी आवाज उसको कुछ जानी पहचानी लगी तो उसने मुड़े बिना हल्के से सामने झुक सिर्फ मुंडी घुमाई और चेहरे पर गौर किया तो उसकी आंखे फैल गयी । मन ही मन बड़बड़ा उठी - हाय ये तो वही पुलिस वाला है जो उस दिन चिल्ला रहा था । जमना बाई को भी कैसे जवाब दे रहा था    फिर मेरी क्या औकात है । 
वो सीधी खड़ी हो गयी और आंखे जोर से भींचकर मुड़ गयी । गौरव को इस वक्त उसके चेहरे पर बिल्कुल वही मासूमियत नजर आ रही थी जो पहली बार देखने पर आई थी । घबराई हुई एक दम नाजुक कली सी लग रही थी । आंखे खोलो ; " गौरव ने कहा ।
लड़की ने डरते डरते आंखे खोली और होठों पर घबराहट से जीभ फिराने लगी । आज भी उसकी आंखें घबराहट से वैसे ही फड़फड़ा रही थी जैसे उस दिन लॉकअप में फड़फड़ा रही थी  साथ ही गौरव भी उस मृगनयनी सी आंखों में खुद को उलझा हुआ सा महसूस कर रहा था । 
गौरव अब आराम से बोला - कंही बैठकर बात करते है ।
लड़की तो अब अपनी अकड़ भूल ही गई थी तो चुप चाप सर झुकाकर गौरव के पीछे चली गयी । गौरव उसके साथ अपनी गाड़ी में आ बैठा । उसने गाड़ी स्टार्ट नही की वंही बैठ बातें शुरू की - तुम्हारा नाम क्या है ।
लड़की तपाक से बोली - कस्टमर्स के लिए छमियाँ और कोठे वालियों के लिए लाली ।
गौरव उसके जवाब से उसका मुह ताकता रह गया और बड़बड़ाया ये कैसा नाम है " छमियाँ " छि: ।
गौरव ने अगला सवाल  करने से पहले बेहद आराम से कहा - देखो तुम सहज रहो । मैं कुछ नही करने वाला ।
लड़की ने उसकी तरफ आंख उठाकर देखा तो गौरव एक बार फिर उन आंखों में खोने लगा था, उसे बोलता ना देख लड़की बोली - जवाब तो तब दूंगी ना जब तुम कुछ पूछोगे ; पहले ही कहा था तुम मुझे नजर नही लगा सकते मेरे काला टिका किया हुआ फिर क्यु घूर रहे हो ।
लड़की की बात से गौरव झेम्प सा गया पर अगले ही पल सम्भलते हुए उसकी तरफ झुका पर लड़की अपनी जगह से टस से मस नही हुई उसे अब इन सब की आदत लग चुकी थी । वो  इंतजार करने लगी गौरव क्या करता है। गौरव ने लड़की को छुए बिना बहुत ही सहजता से उसके लम्बे बाल आगे सीने पर कर दिए और हटते हुए बोला - जब तक यंहा हो ये बाल ऐसे ही रखना ।
लड़की धीरे से - ह्म्म्म।
गौरव उसे देखते हुए -  तुम ऐसे भाग क्यों रही थी और वो पीछा करने वाले लोग कौन थे । 
लड़की गुस्से और नाराजगी के मिले जुले भाव से बोली - कस्टमर ही थे साले । कमीने 2 का बोलकर लाये थे एक साथ 4 टूट पड़े ।  बहुत मुश्किल से छुटाकर भागी । वैसे तो बहुत पैसे वाले बनते है पर हमारा पैसा मारने में जरा सी शर्म नही आती ।
वो बोलते बोलते एक घुटना मोड़कर सीट पर रखते हुए गौरव की तरफ पलट कर बैठ गयी और बोलना जारी रखा - तुम्हे पता है मैं ना अपने कोठे की सबसे महंगी लड़की हु। क्योंकि मैं बहुत सुंदर हु ना । मैं सिर्फ बड़े बड़े लोगों के पास जाती हूं । ये भी कोई बड़े ही लोग थे पर जमना बाई को रुपए दो लोगों के ही दिए यंहा आई तो 4 लोग थे । साले भूखे कुत्तों की तरह टूट पड़े पर मुझे जमना बाई ने कह रखा है कभी नुकसान नही करने का तो बस भाग आई । और देखो कँहा तो 4 लोग फायदा उठाने वाले थे और अब किसी को भी नसीब नही हुआ ।
लड़की के बोलने के लहजे से पता चल रहा था मानो कितना ही बड़ा काम कर दिया लेकिन गौरव की आंखे गुस्से से लाल हो रही थी उसने अपने हाथ की मूठी कस ली । उसे उन आदमियों के साथ लड़की पर भी गुस्सा आ रहा था कि वो कैसे इतनी सहज रह सकती है इन सब बातों में पर गौरव ने अपने गुस्से को जल्द ही काबू में किया और 2 - 3 गहरी गहरी सांस छोड़कर खुद को नॉर्मल करते हुए बोला - कितने साल की हो तुम ।
लड़की सपाट लहजे से बोली - 16 
गौरव का अंदाजा सही निकला था वो लड़की उम्र में छोटी ही थी । गौरव एक बार फिर मुखातिब हुआ - तुम्हे बुरा नही लगता ये सब काम करने में ।
लड़की हंसते हुए - ये बुरा लगना होता क्या है ।
गौरव को उसकी बात समझ नही आई तो वो उसको समझाने के लहजे में बोली - देखो मैने होश संभाला तब से इस कोठे पर हु । मुझे कहते है कि मैं 1 साल की थी तभी कोई बेचकर चला गया अब कौन था पता नही, ना मैंने जानने की कोशिश की । जैसे जैसे बड़ी हुई थोड़ी बहुत समझ आई तो यही सब देखती थी अपने आस पास।  मुझे होश सम्भालते ही सजना सवरना और नाचना गाना सिखाया गया । जब मुझे तालीम ही इस चीज की मिली है तो मुझे क्या पता इस धंधे में किस चीज का बुरा लगना चाहिए । हां शुरू शुरू में दर्द हुआ था वो क्या है ना जब पहली बार कस्टमर आया था उस वक्त मेरा पहला ही महीना था पर उसे सब्र नही था मैं उसे बहुत सुंदर लगी इसलिए वो खुद को रोके नही पाया । मैं उस दिन बहुत रोई थी इसलिए हो सकता है उस दिन बुरा लगा हो पर फिर धीरे धीरे आदत हो गयी अब क्या बुरा क्या अच्छा मुझे नही पता मैं बस अपना काम करती हूं । अब हर कोई अपना पेट भरने के लिए काम करता है वैसे ही मैं करती हूं।
गौरव ने उसकी बात सुनी तो उसका मन अजीब सा हो गया लगा जैसे अंदर कुछ टूट रहा है । उस लड़की को पता ही नही था वो क्या कर रही है । बस उसे जैसा करने को कहा गया उसने किया और उन लोगों ने भी कैसे नरक में झोंक दिया था उसे और ना जाने वो कौन निर्दयी होगा जो पीरियड्स में भी अपनी हवस शांत करने से बाज नही आया ।
गौरव को इतना शांत देख लड़की बोली - क्या साहब ; कँहा खो गए । अरे जो पूछना है जल्दी जल्दी पूछो ना अगर लेट हो गयी तो जमना बाई खाना नही देगी ।
गौरव की तुन्द्रा उसकी आवाज से टूटी तो उसने कहा - तुमने सुबह से कुछ खाया ।
लड़की - हमे कोई खाने पर नही बुलाता सब लोग हमारा ही भोग लगाते है । सुबह से धंधे पर निकली हु कँहा से कुछ खाती ।
गौरव ने घड़ी देखी तो शाम के 6: 30 बज रहे थे । वो बुदबुदाया " ये सुबह से भूखी प्यासी लोगों की हवस शांत करने में लगी है किसी ने इसे खाना तक नही पूछा । गौरव अब विचलित होने लगा था । उसने लड़की से कहा - तुम यही रुकना कंही जाना मत मैं अभी आया बस  । वो कुछ कहती या समझ पाती इससे पहले गौरव गाड़ी से निकल गया । लड़की सोचती रह गयी आखिर गौरव चाहता क्या है । लगभग 15 मिनट बाद गौरव हाजिर था । उसके हाथ मे खाना , पानी की बोटल और एक जूस का डिब्बा था । अपनी इतनी फिक्र देखकर लड़की हैरान रह गयी । गौरव ने उसे सामान पकड़ाया और बोला - बातें होती रहेगी पर तुम पहले कुछ खा लो ।
लड़की कुछ पल तक देखती रही पर भूख इतनी जोर से लगी थी कि कुछ नही सुझा । उसने जल्दी से खाना लिया और टूट पड़ी उस पर । इडली - साम्भर और मसाला डोसा था । उसने एक बार भी गौरव से खाने का आग्रह नही किया । गौरव को भूख भी नही थी उसके चेहरे को देखकर लग रहा था जितना सन्तोष उसे उस लड़की को  खाते देख हो रहा था  शायद ही अपने खाने पर हुआ होगा।  वैसे भी गौरव पेट की आग जानता था उसने मां के जाने के बाद  कितनी ही रातें भूखे पेट निकाली । लड़की का तो पूरा ध्यान सिर्फ खाने पर था पर गौरव का उसके अब तक के कहे शब्दों पर । उसकी बातें सुन गौरव ने महसूस किया कि उसकी माँ को भी ऐसी ही परेशानियों से गुजरना पड़ा होगा । हां ये सच था कि गौरव भी उसकी तरफ बाकी मर्दों की तरह उसके  रूप- रंग  और उन खूबसूरत सी हरि आंखों की वजह से ही आकर्षित हुआ था पर उसकी बातें सुनकर वो उसके दर्द से भी जुड़ रहा था और ऐसा दर्द जिसका आभास उस लड़की की बजाय गौरव को था । हर गुजरते लम्हे के साथ लड़की गौरव के मन मे भी बस रही थी । गौरव उसे एक टक निहार ही रह था कि लड़की की डकार से उसकी तुन्द्रा टूटी वो पेट पर हाथ रख बोलने लगी - आह बहुत खा लिया मैने अब तो रात को खाने की जरूरत ही नही पड़ेगी ।
गौरव मुस्कुरा दिया तो वो डिब्बे से जूस पीती हुई बोली - ए साहब तू ना बहुत अच्छा है । पहला ऐसा आदमी मिला जिसने मेरी फिक्र की है । 
गौरव मुस्कुरा दिया तो वो फिर बोली - तू ना कोठे पर जरूर आना । मैं तेरी सेवा बहुत अच्छे से करूंगी चाहे तो पैसे भी मत देना मैं जमना बाई को समझा दूंगी । पर तेरा ना ऐसे ख्याल रखना अच्छा लगा तू जो कहेगा वो करूंगी तेरे लिए ।
उसकी बात गौरव को खंजर सी प्रतीत हुई उसने लड़की की गर्दन को पीछे से पकड़ा और खुद की तरफ खींचकर एक एक शब्द चबा चबा कर बोला - मुझे तुम्हारा तन नही मन चाहिए दोगी ; ह्म्म्म।
लड़की एक पल को तो सहम गयी फिर उसे हल्का सा धक्का देकर बोली -  क्या मजाक करता है तू भी । हमारे कोठे पर  एक वाणी दीदी है जो हमेशा कहती है तवायफों के सिर्फ तन होते है मन नही ।
गौरव उसके कहने भर से सिहर गया लेकिन उसकी निगाहों में देखते हुए बोला - एक दम किसी  फूल की पंखुड़ियों जैसी नाजुक हो पर बातें बिल्कुल अंगार सी करती हो । 
लड़की बिना किसी भाव से बोली - पर इस फूल के पीछे बहुत से भंवरे है समझा ।
गौरव ने उसकी बात पर ध्यान दिए बिना कहा - शादी का मतलब जानती हो ।
शादी के नाम से लड़की खुशी से बोली - हां ।
गौरव - अच्छा बताओ फिर , क्या होती है शादी ।
  लड़की - वही जिसमे बहुत अच्छा खाना होता है । लोग इक्कठे होते है । नाच गाना होता है । और हमे नाचने के बहुत से पैसे मिलते है ।
गौरव - बस यही है तुम्हारे लिए  शादी के मायने ।
लड़की - मेरे लिए तो शादी के मायने सिर्फ इतने है कि मैं नाचती हु और पैसे आते है बस ।
गौरव उसकी आँखों मे झांकते हुए बोला - इतनी भीड़ में वो दो लोग भी होते है जो अग्नि के सामने फेरे लेकर सारी जिंदगी एक दूसरे के नाम कर देते है । एक दूसरे का सुख दुख अपनाते है । तन से पहले जिनके मन मिलते है । चाहे कैसी भी स्तिथि क्यों ना हो एक दूसरे का हाथ नही छोड़ते। सिर्फ एक ही शख्श को अपना अब कुछ मान लेते है और उसके साथ चुनोतियों का सामना कर आगे बढ़ते है। जानती हो,  एक शादी ऐसी भी होती है ।
लड़की को कुछ समझ नही आया तो बोली - हो ! ऐसी भी शादी होती है ! मैंने तो आज तक नही देखी । पर एक ही इंसान के साथ कोई कैसे रह सकता है । मैं तो खुद दो दिन लगातार एक ही आदमी को अपने पास देखकर   ऊब जाती हूं ।
गौरव - वो इसलिए क्योंकि तुम्हारा पाला सिर्फ तन से खेलने वालों से पड़ा है किसी ने तुम्हारे मन को छुआ ही नही । जिस दिन कोई तुम्हारे मन को छू लेगा तुम खुद अपनी सारी जिंदगी उसके नाम कर दोगी फिर ना ही तुम उससे दूर जाना चाहोगी और ना ही वो तुम्हे ऊबाऊ लगेगा।
लड़की हंसते हुए - अभी तो मैने कहा मेरे पास मन नही सिर्फ तन है और उसके बहुत से दीवाने है , समझे साहब।
गौरव भी मुस्कुराते हुए बोला - मन सबके पास होता है तुम्हारे पास भी है पर हां तुम खुद उससे अनजान हो क्योंकि   आज तक सभी ने तुम्हारी पहचान सिर्फ तुम्हारे तन से करवाई मन से नही । पर चिंता मत करो बहुत जल्द तुम्हे एहसास होगा कि तुम्हारे पास एक बहुत ही साफ सुथरा खूबसूरत सा मन है । 
लड़की खामोशी से गौरव को देखने लगी तो गौरव बोला - अगर मैं तुम्हे हमेशा के लिए मेरे साथ ले जाऊं तो चलोगी ? 
लड़की बिना किसी भाव के  - हां पर जब तक मैं ऊब नही जाती तब तक ।
गौरव - तो वादा करता हूं तुम्हे जिंदगीभर नही ऊबने दूंगा। 
लड़की - पर मेरी रकम बहुत मोटी होगी क्योंकि मैं हमारे कोठे की सबसे महंगी लड़की हु और जमना बाई मुझे जाने भी नही देगी । अगर मैं हमेशा के लिए आई तो उसके बहुत से बड़े बड़े कस्टमर्स टूट जाएंगे और वो ऐसा नही होने देगी । 
गौरव अब सामने देखते हुए बोला - तुम अनमोल हो तुम्हारी कीमत तो ही नही सकती लेकिन फिर भी अगर मुझे चुकानी पड़ी तो मेरी नजर में तुम्हारी कीमत  एक चुटकी सिंदूर और मंगलसूत्र की है । और इनकी कीमत लगाने की औकात ना मेरी है और ना ही तुम्हारी उस जमना बाई की ।
लड़की को गौरव की बात बिल्कुल समझ नही आई । उसने आज तक इतनी अजीब सी बातें नही सुनी थी । उसे गौरव कोई सर फिरा लगने लगा था । और अब वो इस सरफिरे के पास एक पल भी नही रुकना चाहती थी तो बोली - अच्छा मुझे  देरी हो रही है अगर और अंधेरा हुआ तो जमना बाई बहुत डाँटेगी ।
गौरव ने बिना कुछ कहे गाड़ी स्टार्ट कर दी और होटल के पार्किंग से निकल गया । लड़की डर गई और बोली - दे,,,,देखो तुम भले ही पुलिस वाले हो ले,,,,,लेकिन मैं डरती नही हु । तुम बिना जमना बाई से ब,,,बात किये मुझे नही ले जा सकते । पहले बोल रही हु बिना पैसों के मैं कंही नही जाऊंगी । तुम अगर फफ्री में मेरे साथ कुछ भी करोगे तो जमना बाई तुम्हे छोड़ेगी नही बहुत खतरनाक है वो ।
गौरव उस पर बिल्कुल ध्यान नही दे रहा था । बस गाड़ी चलाते हुए धीरे से बुदबुदाया - इस जमना बाई को तो मैं ऐसा सबक सिखाऊंगा की याद रखेगी ।
लड़की काफी देर तक कुछ ना कुछ बोलती रही पर जब उसका ध्यान रास्ते की तरफ गया तो वो शांत हो गयी कभी हैरानी से रास्ते को देखती तो कभी गौरव को क्योंकि रास्ता उसके कोठे की तरफ जा रहा था । उसको चुप देख गौरव बोला - क्या हुआ अब कुछ नही बोलना । अभी तो बहुत बड़ - बड़ कर रही थी ।
लड़की तुनक कर बोली - तू इतना अजीब सा क्यु है । समझ मे ही नही आ रहा । बता देता कोठे पर ही लेकर जा रहा है तो कम से कम मैं अपना खून तो नही जलाती ।
गौरव ने कुछ नही कहा बस  चुप चाप गाड़ी चलाता रहा तो लड़की बोर होने लगी उसने इधर उधर देखा फिर म्यूजिक सिस्टम को देख उसे ऑन कर दिया । गाना चला : मेरे हाथ मे तेरा हाथ हो , सारी जन्नते मेरे साथ हो .....!!!
गाना गौरव को तो अच्छा लग रहा था पर लड़की का मुह बन गया - हुंह ये भी कोई गाना है ।
उसने चेंज कर दिया तो अबकी बार गाना लगा - यूँ तो प्रेमी पचहत्तर हमारे , तू लेजा कर सत्तर इशारे , दिल मेरा मुफ्त का ......!!!
लड़की तो सीट पर ही नाचने लगी पर ये गाना गौरव को अच्छा नही लगा  तो उसने गाना चेंज कर दिया और गाना बजा - ये मोह मोह के धागे तेरी उंगलियों से जा उलझे.....!!!
लड़की गौरव को घूरने लगी , उसे गाना बिल्कुल रास नही आया तो उसने गाना बदलने के लिए हाथ बढ़ाया पर वो बदल पाती इससे पहले गौरव ने उसका हाथ लपक कर पकड़ लिया और गियर पर रख अपनी उंगलियां उसकी उंगलियों से फसा ली । लड़की चिहुंक गयी ; घूरकर गौरव को देखने लगी पर गौरव ने उस पर ध्यान दिए बिना ही कहा - गाना नही बदलेगा यही रहेगा ।
लड़की मुह बनाकर - हां हां ठीक है तेरी गाड़ी है तो तू जो चाहे कर पर मेरा हाथ छोड़ समझा ।
गौरव ने हाथ नही छोड़ा बल्कि और ज्यादा कस लिया । लड़की सारे रास्ते हाथ छुड़ाने की कोशिश करती रही पर गौरव ने नहीं छोड़ा । गाड़ी का ब्रेक लगा तो लड़की ने देखा ये उसकी गली का ही चौराहा था । उसने गौरव की तरफ देखा और कहा - यंहा से तो कोठा बहुत दूर है अंदर तक चल ना ।
गौरव उसकी तरफ मुखातिब होकर प्यार से बोला - माफ करना पर यंहा से तुम्हे अकेले ही जाना होगा । इन गलियों में जाना मुझे गवारा नही लेकिन फिर भी एक दिन जरूर आऊंगा जिस दिन तुम्हे यंहा से ले जाना होगा ।
लड़की को गौरव की बात ज्यादा तो समझ नही आई बस इतना ही समझ पाई कि अब उसे यंहा से अकेले ही जाना है । गौरव ने उसका हाथ आजाद कर दिया । लड़की गाड़ी से उतरने को हुई तो गौरव बोला - सुनो!
लड़की अपनी जगह ही ठहर गयी । उसने गौरव को देखा तो गौरव उसकी आँखों को देखते हुए बोला - बहुत नाजुक हो तुम बिल्कुल किसी फूल की पंखुडी की तरह तो आज से कोई भी तुम्हारा नाम पूछे तो कहना पंखुडी ।
लड़की को अपने अंदर कुछ अजीब सा धड़कता सा महसूस हुआ । आज तक कभी ऐसा नही हुआ था । उसे अपने अंदर अलग सी कंपकंपी और गुदगुदी महसूस हुई । लड़की को पता नही चला पर हां ये उसका मन था जिसे पहली बार किसी ने छुआ था और इसका एहसास उस लड़की को भी नही था । उसे नही समझ आया कि अचानक उसके साथ हुआ क्या था । गौरव ने उसे खुद की तरफ देखते पाया तो आगे बढ़ा और उसके माथे पर होंठ रख दिये । लड़की की आंख अपने आप बन्द हो गयी और जो कभी नही हुआ वो आज हुआ उसकी आँखों के कोर गीले हो चुके थे इसका पता शायद लड़की को भी नही चला । गौरव उससे दूर हुआ और उसकी नम आँखे देख चेहरा थाम कर बोला - अकेले में आंख बंद कर इस पल को याद करना तुम्हें तुम्हारा मन  महसूस होगा और ये छुअन भी तन की जगह मन पर महसूस होगी ।
लड़की को गौरव की बात रत्ती भर समझ नही आई  पर वो कुछ कह भी नही पायी क्योंकि आज उसके अंदर उसे अलग ही हलचल महसूस हो रही थी जो उसने कभी महसूस नही की थी । वो गौरव के बारे में सोचते हुए किसी यंत्रचालित सी गाड़ी से उतर गई और अपनी गली की तरफ बढ़ गयी ।  जब तक आंखों से औझल नही हो गयी गौरव उसे  देखता रहा फिर गाड़ी को स्टार्ट कर आशिष को कॉल किया - हैलो आशिष !
आशिष - जी सर कहिए ।
गौरव - जमना बाई के खीलाफ जो भी सबूत हमे मिले है उसकी एक रिपोर्ट बनाकर मेरे घर पहुंचो । अब हमें प्लान को एग्जीक्यूट करने में वक्त नही लेना चाहिए ।
आशिष - जी सर मैं पहुंचता हु थोड़ी देर में ।
गौरव ने फोन कट किया और मन मे बोला - तुम्हे जल्द ही इस नरक से निकाल अपनी दुनियां में शामिल कर लूंगा मेरी पंखुडी । गौरव ने अपने घर आकर कपड़े बदले ही थे कि आशिष आ गया । गौरव ने दोनों के लिए चाय बनाई और आशीष के साथ अपनी बनाई गई रिपोर्ट जोड़कर नई रिपोर्ट तैयार की । उन दोनों के ही खबरियों ने उन्हें अच्छी जानकारी दी थी । इस नई रिपोर्ट ने इनके सामने जो जाहिर किया वो देख उनके होश उड़ गए । दरअसल जमना बाई के कोठे पर धंधे के साथ साथ अवैध रूप से लड़कियों के अंग भी बेचे जाते थे और इस काम में शहर का कमिश्नर भी शामिल था ।
आशिष हैरानी से - सर यंहा तो रक्षक ही भक्षक बनकर बैठे है ।
गौरव ये सब देख विचलित नही हुआ और बोला - अब इन लोगों को उनके असली ठिकाने पर पहुंचने का वक्त आ गया है ।
गौरव आशिष के साथ उन सबका पर्दाफास करने के लिए प्लान बनाने लगा । तो दूसरी और आज पहली बार वो लड़की (जो अब से पंखुडी है ) किसी की याद में बेचैनी से करवटें बदल रही तो और वो कोई और नही बल्कि गौरव था । उसे रह रहकर गौरव और उसकी उलझी हुई बातें याद आ रही थी । 
धीरे धीरे वो रात भी गुजर गई और अगले दिन से गौरव और आशिष अपने मिशन पर लग गए । सबसे पहले उन्होंने अपने एक खबरी की मदद ली जिसने इन दिनों जमना बाई के राइट हैंड भीखू से कुछ ज्यादा ही गहरी दोस्ती कर रखी थी और ये भी उसने गौरव के कहने पर ही किया । अपने खबरी की मदद से भीखू तक खबर पहुँचवाई की वो और उसका साथी जवान लड़कियों के अंगों की तलाश में है । पहले तो भीखू ने विश्वाश नही किया पर 50 लाख तक कि रकम मिलने का पता चलने पर लार टपकाते हुए गया । भीखू सोचकर तो गया था कि पार्टी की अच्छी तरह से जांचपड़ताल करेगा लेकिन जैसे ही वो उन लोगों से मिला पैसो की चमक से चुंधिया गया और आसानी से उनको जमना बाई के कोठे पर ले जाने को मान गया । गौरव और आशिष जो इस वक्त भेश  बदलकर उसके सामने अंगों के सौदागर बने बैठे थे अपनी कामयाबी पर मुस्कुरा उठे । भीखू बिना देर गवांए उन्हें जमना बाई के कोठे पर ले गया और जमना बाई ने भी पैसो के लालच में उनका बहुत अच्छे से स्वागत किया । भीखू को साथ देख जमना बाई को उन पर शक भी नही हुआ । वो लोग कुछ देर तक बैठे रहे इस बीच जमना बाई ने अपनी लड़कियों को उनके सामने नृत्य पेश करने को कहा । लड़कियों में पंखुडी भी शामिल थी । जिसे देख गौरव का दिल धड़क उठा । वो लड़कियां नाच कम रही थी और अंगों का प्रदर्शन ज्यादा कर रही थी । आशिष और गौरव दोनों को ही  ये सब देखना अच्छा नही लग रहा था लेकिन कंही शक ना हो जाए इसलिए चेहरे पर नकली स्माइल और हाथ मे जाम लिए वो ये सब देखने लगे । उनका नाच खत्म हुआ तो जमना बाई ने उन्हें कुछ वक्त अपनी लड़कियों के साथ गुजारने का आग्रह किया पर गौरव और आशीष दोनों ने ही मना कर दिया और कहा कि उन्हें जल्दी से जल्दी डील कर विदेश जाना है ।जमना बाई मान गयी । उसने सभी लड़कियों को कमरे में भेजा , जाते जाते पंखुडी ने एक नजर गौरव को देखा वो उसे कुछ जान पहचाना लगा पर भेष बदला होने पर पहचान नही पायी । गौरव ने इस वक्त उस पर ध्यान देना सही नही समझा । लड़कियों के अंदर जाते ही भीखू और जमना बाई उसे एक सीक्रेट रूम में ले गए जो एक बटन से दीवार  के खुलने पर नजर आया । वँहा जाकर देखा तो उनकी आंखें फेल गयी । अंगों को निकाल निकाल कर बेतरतीबी से लटका रखा था साथ ही कुछ डॉक्टर्स अभी भी दो लड़कियों के  अंगों को निकाल रहे थे । ये सब देख आशिष और गौरव का खून खोल गया । उन्होंने  गन निकाली और जमुना बाई की तरफ तान दी । जमना बाई शायद ऐसे हमलों के लिए तैयार रहती थी क्योंकि उसने एक इशारा किया और उसी रूम में छुपे उसके कुछ गुंडे वँहा आ गए । गौरव और आशिष के साथ उनकी हाथापाई हुई एक दो मारे भी गए पर आखिर में दोनों मिलकर सब पर भारी पड़े । कोठे में होते शोरगुल से लड़कियां बाहर आई तो एक नए कमरे को वँहा देख सब की आंखे फैल गयी और जब अंदर का नजारा देखा तो दहशत से भर गई । उनकी नजर जब अपनी साथ कि गायब हुई लड़कियों पर और उनके शरीर पर फैले खून पर गयी तो बेहद डर गई । ये अब समझ आया कि उनके कोठे से लड़कियां अचानक गायब कैसे हो जाती थी । सबको जमना बाई से घिन आने लगी थी । उन दो अनजान आदमियों को अकेले भीखू और उनके आदमियों से झूझते देख लड़कियां भी उनकी मदद के लिए आगे आ गयी और सबने मिलकर जमना बाई और उसके साथियों को चित कर दिया । इन सब मे एक पंखुडी थी जो डर से एक तरफ खड़ी थी वो अंदर का नजारा देख बुरी तरह दहल गयी थी । लड़कियों ने जब उन दोनों की तरफ असमंजस में देखा तो गौरव और आशिष ने अपने चेहरे से नकली दाढ़ी मुछ हटाई तो वो औरते या लड़कियां उन्हें पहचान गयी जो उस दिन लॉकअप में थी । सबने उनका धन्यवाद किया । गौरव ने आशिष की मदद से जमना बाई , उसके आदमियों के साथ साथ उन डॉक्टर्स को भी धर लिया था । सबको उस रूम से बाहर निकाल गौरव ने रूम बन्द कर दिया तब तक आशिष ने कुछ फोरेंसिक डॉक्टर्स  को और अपनी टीम को बुला लिया । गौरव की नजर अपनी तरफ देखती पंखुडी पर पड़ी जो डर से  कांपती हुई किसी आस में उसे देख रही थी । गौरव ने भी देर किए बिना उसकी तरफ बांहे फैला दी तो पंखुडी बिना एक पल गवांए दौड़ते हुए आई और उसके सीने से लग गयी । गौरव ने भी अपनी बांहे उस पर कस दी । आशिष के साथ साथ वँहा पर मौजूद हर इंसान उन्हें अचंभे से देख रहा था ।  गौरव ने महसूस किया पंखुडी की बाजुएं उस पर से ढीली पड़ रही है तो उसने उसे हटाकर देखना चाहा पर जैसे ही गौरव उससे दूर होने को हुआ वो बेहोशी की हालत में उसके हाथों में झूल गयी । गौरव को उसकी हालत पर बहुत दुख हुआ और उसने वापस उसे अपने सीने से लगा लिया । आशिष शायद अब तक गौरव की आंखों में एक पाक चाहत देख चुका था ।  गौरव ने उसे गोद मे उठाकर वंही मौजूद सोफे पर लिटा दिया और हाथ पकड़ बैठ गया । उन औरतों में से एक औरत जिसका नाम वाणी था वो ग्लास में पानी ले आई । गौरव ने ग्लास लिया और कुछ छींटे पंखुडी के मुह पर मारे और अगले ही पल उसने पलकों को फड़फड़ाते हुए खोल दिया। उसे होश में देख गौरव मुस्कुराते हुए बोला - तुम तो बहुत कमजोर निकली इतने से में डर गई ।
पंखुडी भी मुस्कुराते हुए बोली - और तू उम्मीद से ज्यादा बहादुर निकला ।
गौरव हंस पड़ा और जो हाथ पंखुडी की कैद में था उसे चूम लिया । वँहा मौजूद हर इंसान उनको देख हैरान था ।  
पंखुडी को आराम का कह गौरव अपने काम में लग गया । वो उस रूम में जाकर उसकी अच्छे से तलाशी लेने लगा ।थोड़ी देर में वँहा बाकी की पुलिसफोर्स और फोरेंसिक डॉक्टर्स आ गए थे । जो भी जमना बाई को जानते थे उसकी ऐसी हालत देख हैरान थे । आशिष की निगरानी में सबको पकड़ जेल में डाल दिया और गौरव वंही फरेंसिक डॉक्टर्स के साथ रुक गया । वँहा का सारा काम पूरा कर वो उन औरतों से मुखातिब हुआ । वँहा पंखुडी की उम्र की और उससे छोटी और  भी लडकिया थी जिन्हें देख गौरव का मन भर आया उसने सबके सर पर स्नेह भरा हाथ फेरा और उनको शेल्टर होम में भेजने का फैसला लिया । गौरव ने 18 साल से ऊपर की लड़कियां या औरतों से पूछा कि वो अब आगे क्या करने वाली है क्योंकि अब इस कोठे का लाइसेंस तो रद हो जाएगा । वो यंहा काम नही कर सकेंगी। उनमें से कुछ ऐसी थी जो इस धंधे को छोड़ना चाहती थी इसलिए गौरव ने उन्हें  काम दिलाने का आस्वासन दिया और जो इस धंधे को नही छोड़ना चाहती थी उन्होंने किसी दूसरे कोठे पर जाने का फैसला किया । उन सब से निपटकर गौरव पंखुडी की तरफ मुखातिब होकर बोला -  तो मैडम आप कँहा जाना पसंद करेंगी । 
पंखुडी इधर उधर देखते हुए धीरे से बोली - तेरे साथ ।
गौरव को सुन गया था पर जानबूझकर परेशान करते हुए बोला - क्या कहा फिर से कहो ।
इस बार पंखुडी थोड़ी गुस्से से बोली - कहा ना तेरे साथ सुनाई नही देता ।
पंखुडी के लहजे पर वाणी ने उसे डपट दिया तो गौरव ने हाथ दिखाकर कुछ भी कहने से मना कर दिया और पंखुडी की तरफ देखते हुए उसके दुपट्टे को  सर पर रख बोला - चलो ।
पंखुडी मुस्कुरा दी तो वाणी गौरव के सामने आई और बोली - माफ करना साहब इसे बोलने का सलीका नही है।  कुछ भी बोल देती है पर मन मे इसके कोई मैल नही है। मुझे आपकी आंखों में इसके लिए हवस नहीं चाहत दिखती है ।  इसे इस दुनियां से बहुत दूर ले जाइए साहब।  इस दुनियां की असली खूबसूरती से वाकिफ करवाइये । इसे तो लगता है कि दुनिया इस कोठे जैसी ही है ; इसमें इसकी भी गलती नही है  जब से होश संभाला अपने आस पास कोठे की ही दुनियां देखी । लेकिन अब आप इसे इसकी दुनियां से निकाल अपनी दुनियां में ले जाइए साहब ले जाइए ।
गौरव उनकी आंखों की नमी देखकर पंखुडी का हाथ पकड़ बोला - आप चिंता मत कीजिये मैं इस पर अब इस दुनिया का साया भी नही पड़ने दूंगा लेकिन हां मुझे बस एक हफ्ते का वक्त दीजिये । मैं इस सारे मामले को हैंडल कर लूं फिर शादी करके ही लेकर जाऊंगा । तब तक आप इसे मेरी अमानत के तौर पर अपने पास रखे। 
वाणी ने सहमति में सर हिला दिया तो गौरव ने उसे कुछ पैसे दिए और पंखुडी के लिए हर जरूरी सामान की खरीदारी करने को कहा । 
वाणी ने पैसे ले लिए तो गौरव पंखुडी को बोला - जल्द ही लेने आऊंगा ह्म्म्म।
पंखुडी को कुछ समझ नही आया क्या बोले बस हामी में सर हिला दिया । गौरव ने शेल्टर होम भेजी जाने वाली लड़कियों को महिला पुलिसकर्मीयों के साथ भेज दिया जिसमे वाणी और पंखुडी भी थी ।
बाकी ओरतें भी अपना सामान ले दूसरे कोठों पर चली गयी । उस जगह को सील करके बन्द कर दिया गया था । गौरव पुलिस स्टेशन आया और सबको आड़े हाथ लिया लेकिन जमना बाई से लेकर उनके साथी कोई भी  कमिश्नर के बारे में बोलने को तैयार नही था । इधर जब खबर कमिश्नर तक पहुंची तो वो तिलमिला उठा लेकिन मामला थोड़ा गर्म था इसलिए उसने चुप रहना ही बेहतर समझा ।  जमना बाई और उसके साथियों को कोर्ट में पेश किया गया और सबूत  के तौर पर वो वीडियो दिखाया जो उस दिन कोठे पर उसके शर्ट पर लगे कैमरे में रिकॉर्ड हुआ था । कोर्ट ने भी कार्यवाही कर  जमना बाई के कोठे का लाइसेंस रद कर दिया और उन्हें रिमांड पर लेने का आदेश दिया । गौरव और आशिष ने उनको हर तरीके से टॉर्चर किया पर वो किसी का भी नाम लेने को राजी नही थे क्योंकि उन्हें पता था यंहा तो सिर्फ टॉर्चर हो रहे है उन लोगों को थोड़ी सी भी खबर लगी तो जान से मार देंगे । गौरव बहुत परेशान था  क्योंकि कमिश्नर को लेकर उसके पास कुछ ठोस सबूत नही थे जिसके चलते वो उस पर हाथ नही डाल सकता था । गौरव और आशिष ने अब अपने तरीके से ही सबूत इकट्ठा करना सही समझा । उन लोगों से फ्री होकर गौरव ने शेल्टर होम में जो भी कोठे वाली पढ़ना लिखना चाहती थी उनके पढ़ने लिखने  का इंतजाम किया और जो कोई काम करना चाहती थी उनके लिए महिला उद्योग संस्थानों में कोई ना कोई काम ढूंढा । इन सब मे 1 हफ्ता कैसे चला गया पता ही नही चला लेकिन इस हफ्ते में पंखुडी ने गौरव को बहुत याद किया और अपनी नई जिंदगी के लिए कुछ ख़रीदरियाँ भी की । आज गौरव और पंखुडी की शादी थी और इस वक्त मंदिर में  आशिष उसकी बीवी दीया , वाणी और गौरव का एक बचपन का दोस्त अवि  भी मौजूद था । गौरव ने जब पंखुडी को दुल्हन के अवतार में देखा तो लगा कोई अप्सरा ही धरती पर उतर आई है । उसके वो लहराते लम्बे लम्बे बाल , गहरी हरि आंखे और बिना खास मेकअप के भी दमकता चेहरा । गौरव भी आज बहुत अच्छा लग रहा था। पंखुडी तो इन नई नई चीजों को अपने साथ होता देख हैरान थी । ये अलग सी रीति रिवाज उसको बहुत ज्यादा अच्छे लग रहे थे । गौरव और पंखुडी ने अग्नि के सामने साथ फेरे लिए और जैसा गौरव ने कहा था आज एक चुटकी सिंदूर और मंगलसूत्र से उसने पंखुड़ी को हमेशा के लिए अपना बना लिया था । सब लोग खुश थे वँहा बस आशिष की बीवी जो गौरव को भाई मानती थी वो बिल्कुल खुश नही थी कि उसका भाई किसी कोठे वाली से शादी करे । शादी सम्पन्न होने पर सबने उन्हें बधाई दी । अवि जो कि पेशे से वकील था उसने गौरव के कहने पर कागजात तैयार करवाए जिसमे पंखुडी को 18 साल का दिखाया गया था । हां ये गैर कानूनी था पर गौरव का इरादा बिल्कुल भी गलत नही था वो बस इतना चाहता था कि कोई भी कानूनी दाव पेच उसे पंखुडी से अलग न करे। शादी के बाद पंखुडी हमेशा हमेशा के लिए गौरव के घर आ गयी । दीया ने ही उसका स्वागत किया था पर बेमन से। दीया की नाराजगी गौरव ने महसूस कर ली थी लेकिन कहा कुछ नही । आशिष को तो गौरव के फैसले पर बहुत गर्व महसूस हो रहा था । सबने आज गौरव के घर पर ही खाना खाया और फिर उन दोनों को अकेला छोड़ वँहा से चले गए । गौरव जैसे ही कमरें में आया  बैड पर बैठी पंखुडी खड़ी हो गयी और अपना घूंघट हटाकर साड़ी खोलने लगी । उसको ऐसा करते देख गौरव हैरान रह गया और आंख बंद करते हुए जल्दी से बोला - हे ! वैट वैट क्या रही हो तुम ।
पंखुडी भी गौरव का ऐसा रिएक्शन देख हैरानी से बोली - वही जो करना चाहिए । बन्द कमरे में यही तो होता है ।
गौरव असमंजस में - यही होता है मतलब ।
पंखुडी - अरे मतलब क्या मुझे अपने कपड़े ही तो उतारने है । मैंने तो आज तक बन्द कमरे में मर्दों के सामने यही किया है ।
गौरव उसकी बात सुनकर असहज होकर बड़बड़ाया - उफ्फ ये लड़की भी न कुछ भी बोलती है । मुझे भी असहज कर देती है । 
गौरव ने आंख बंद किये हुए ही  पंखुडी की बात पर ध्यान दिए बिना ही कहा - देखो अभी तुम्हे ये सब करने की जरूरत नही है ओके ।
पंखुडी - मैं समझी नही अगर ये नही करना तो क्या करना है ।
गौरव उसी अवस्था में बोला - वो मैं बाद में बताऊंगा पहले तुम अपनी साड़ी सही करो ।
पंखुडी गौरव की हरकतों को अजीब सी नजर से देख रही थी और फिर अपनी साड़ी सही करके बोली - आंख खोल लो मैने साड़ी सही कर ली ।
गौरव ने आंख खोली तो पंखुडी पूरी तरह साड़ी में लिपटी थी उसने अपने दिल पर हाथ रख चैन की सांस ली और उसकी तरफ बढ़ते हुए बोला - सबसे पहले तो बाथरूम में जाकर तुम ये साड़ी बदलकर आओ ओके ।
पंखुडी - पर......!!!!
गौरव बीच मे बात काटते हुए - कोई और वर नही मैने जैसा कहा वैसा करो । जाओ और कपड़े बदलकर आओ।
पंखुडी मुह बनाकर  कपड़े बदलने चली गयी उसे  अच्छा नही  लगा गौरव का उसे इस तरह इग्नोर करना क्योंकि आज तक तो सब मर्दों ने उसकी तारीफ ही कि थी । पंखुडी के जाने के बाद गौरव खुद से ही बोला - उस जिंदगी ने इसके दिलों दिमाग पर गहरा असर किया हुआ है । सबसे पहले तो इसे उस दुनियां से उबरना पड़ेगा।
पंखुडी बाथरूम में थी तब तक गौरव ने भी अपने कपड़े बदल लिए । पंखुडी बाथरूम से आई तो एक सिंपल सा सलवार सूट पहन रखा था । गौरव तो उसे सादगी में देखता ही रह गया । हाथों में चूड़ा गौरव के नाम की मेहंदी मांग में सिन्दूर और गले मे मंगलसूत्र । गौरव पलक झपकाना तक भूल गया था । पंखुडी उसके सामने आकर खड़ी हुई तो गौरव ने उसका चेहरा थाम लिया और मुस्कुराते हुए बोला - बहुत प्यारी  लग रही हो ।
पंखुडी जो आज तक नही शरमाई उसकी पलके अनायस ही झुक गयी ।
गौरव ने उसे बैठने को कहा तो पंखुडी  बैड ओर बैठ गयी। गौरव उसके सामने उसका हाथ पकड़ कर बैठ गया और बोला -  अब जो कह रहा हु वो ध्यान से सुनना,  ह्म्म्म।
पंखुडी अधीरता से - पर....!!!
गौरव ने उसके मुह पर उंगली रख दी - शशशश...!! सिर्फ सुनों ।
पंखुडी ने पलकें झपकाकर हाँ कहा तो गौरव ने उसके दोनों हाथों को थाम लिया और बोला - आज से तुम मेरी बीवी हो पंखुडी । उस कोठे की लाली नही । मैं चाहता हु की अब से तुम अपनी पिछली सारी जिंदगी भूलकर नए तरीके से जिंदगी शुरू करो । तुम भूल जाओ की कभी तुम उस कोठे पर काम करती थी । ये समझ लो तुम्हारा नया जन्म हुआ है और तुम्हे दुनियां में पहला कदम बढ़ाना है । इस दुनिया की असल खूबसूरती देखनी है तुम्हें । आज तक तुम्हारी पहचान तुम्हारे तन से थी । अब तुम्हे अपनी पहचान तुम्हारे इस मन से बनानी है हम्म।
पंखुडी कुछ देर तक पलकें झपकाती रही फिर धीरे से बोली - मैं समझी नही ।
गौरव मुस्कुरा दिया और बोला - धीरे धीरे सब समझ जाओगी चिंता मत करो । अभी सो जाओ काफी रात हो गयी है ।
पंखुडी हैरानी से - सच मे सो जाऊं ।
गौरव - हम्म ! सो जाओ ।
पंखुडी ने आज तक किसी मर्द से इतना स्नेह नही पाया था उसे समझ ही नही आया उसे कैसे व्यवहार करना चाहिए इसलिए वो चुपचाप पलँग के एक कोने पर सो गई। गौरव भी दूसरे कोने पर लेट गया और पंखुडी को कैसे अपनी जिंदगी नए शीरे से शुरू करनी चाहिए सोचने लगा । गौरव अपनी ही सोच में गुम था और इधर पंखुडी  बार बार करवट बदल रही थी । उसके बार बार ऐसा करने से गौरव का ध्यान उस तरफ गया - क्या हुआ नींद नही आ रही ।
पंखुडी उसकी तरफ पलट गई और बोली - मेरे साथ ये सब क्या हो रहा है मुझे कुछ समझ नही आ रहा । मुझे वाणी दीदी ने समझाया कि आज से मैं तेरे साथ रहूंगी । मुझे ये भी बताया कि पति पत्नी कैसे रहते है पर मैं आज तक वैसे रही ही नही तो मैं कैसे रह पाऊंगी मतलब ऐसे रसोई का काम करना । घर का काम करना , तेरा ख्याल रखना सब कैसे करूंगी मैं और फिर तुझे बताया था ना मैने की मैं दो दिन में एक ही आदमी के साथ रहकर ऊब जाती हूं तो मैं जिंदगी भर तेरे साथ नही रह पाऊंगी ।
गौरव ने भी अपना चेहरा उसकी तरफ कर रखा था - तुम ऊब इसलिए जाती थी क्योंकि वँहा तुम्हे सिर्फ एक ही काम करना पड़ता था । हम यंहा हर रोज नया काम करेंगे तो तुम्हारा मन भी लगा रहेगा ।
पंखुडी - जैसे की ।
गौरव - मैं जो कहूंगा मानोगी ।
पंखुडी - वाणी दीदी ने कहा था आज से तेरा मेरे ऊपर मालिकाना अधिकार है जैसे मैं जमना बाई के हर हुकुम को मानती थी आज से तेरा मानू । इसलिए जरूर मानूँगी।
गौरव को सुनकर दुख हुआ कि वो कैसे रहती आई है आज तक । एक गुलाम सी बन गयी है और उसे इसका मलाल भी नही । उसने खुद के मन को संयत रखा और बोला - अगर मैं तुम्हारा मालिक हूँ तो तुम मेरी मालकिन आज से हम दोनों का एक दूसरे पर बराबर अधिकार है ।
पंखुडी अब बैठ गयी और बड़ी बड़ी पलकें झपकाकर बोली - ऐसा थोड़े ही होता है ।
गौरव - जमना बाई के पास तुम उसके नियमों के अनुसार रहती थी तो अब मेरे नियमों से रहो और मेरा पहला नियम यही है कि हम दोनों का एक दूसरे पर मालिकाना अधिकार है समझी ।
पंखुडी ने मासूमियत से ना में सर हिलाया तो गौरव ने उसकी तरफ अपनी बांहे फैला दी । पंखुडी भी बिना देर किये उसकी बांहो में जा सीने से सर लगाकर लेट गयी ।गौरव ने उसके बालों को सहलाना शुरू किया और बोला - जैसे जैसे समय गुजरेगा तुम अपनी उस दुनिया से उबरकर यंहा के नियम कानून समझ जाओगी चिंता मत करो । हम दोनों मिलकर  हमारी एक प्यारी सी दुनियां बनाएंगे और इसकी शुरुआत कल के सूर्य उदय से करेंगे ।
  कल का सूरज हम दोनों के लिए नई सुबह लैकर आएगा।
पंखुडी - जो आज तक करती आई हूं वो नही करूंगी तो मैं फिर करूंगी क्या । 
गौरव उसके बाल सहलाते हुए - अब तुम पढ़ाई लिखाई करोगी । तुम्हारी हॉबीज को डवलप करोगी , हम दोनों मिलकर हमारी गृहस्थी चलाएंगे ,घूमेंगे फिरेंगे  । एक दूसरे का ख्याल रखेंगे । साथ मे मिलकर खाना बनाएंगे , एक दूसरे को अपने हाथों से खिलाएंगे । हर रोज दुनियां जंहा की बातें करेंगे । एक दूसरे की पसन्द ना पसन्द जानेंगे । तुम पढ़ लिखकर जिंदगी की नई उड़ान भरोगी दुनियां के सामने एक नई पहचान स्थापित करोगी । मैं ड्यूटी से जब तक लौटूंगा नही तुम मेरा इंतजार करोगी और आते ही गले लग मेरी सारी थकान मिटा दोगी और....!!!
कहते कहते गौरव ने पंखुडी की तरफ देखा तो वो उसके सीने पर सर रखे बेफिक्री से सो रही थी । गौरव कुछ देर तक उसे देखता रहा फिर दोनों को अच्छे से कम्बल में लपेटकर सो गया । गौरव को सुबह जल्दी उठने की आदत थी तो आदतन उसकी आंख खुल गयी पंखुडी को अपने बांहों में देख उसके चेहरे पर स्माइल आ गयी उसने अपने होठ हल्के से उसके माथे पर लगाए और खड़ा होकर  बाथरूम की तरफ बढ़ गया । नहाकर वापिस आया तब भी पंखुडी सो ही रही थी। गौरव उसकी तरफ बढ़ा और उसके ऊपर झुककर बालों का पानी उसके चेहरे पर झाड़ने लगा । पंखुडी कुनमुना गयी - क्या है वाणी दीदी सोने दो ना ।
गौरव ना कुछ बोला ना ही   पानी झड़काना बन्द किया । पंखुडी परेशान हो गयी और आँखे मलते हुए गुस्से से बोली - वाणी दी क्या है सुबह सुबह.......!!!  आगे कुछ नही बोल पायी क्योंकि गौरव पर नजर पड़ चुकी थी साथ ही अपनी नई पहचान भी याद आ गयी - क्या है क्यों सुबह सुबह तंग कर रहा है सोने दे ना । 
गौरव - कितना सोती हो तुम चलो उठो  जल्दी से तैयार हो जाओ । 
पंखुडी अलसाई हुई सी वापस सोने को हुई तो गौरव ने उसे  सोने से पहले ही खींच लिया तो पंखुडी का बैलेंस बिगड़ा और वो गौरव के सीने से लग गयी । उसे इतनी नींद आ रही थी कि उसने हटने की जहमत नही उठायी और आंखे बंद कर ली । लेकिन अभी अभी नहाने की वजह से गौरव के बदन से महक आ रही थी तो बोल पड़ी-  तू नहा भी लिया और तेरे पास कितना खुशबूदार साबुन है बहुत अच्छी खुश्बू आ रही है ।
गौरव हंस पड़ा - चलो उठो तुम भी इस खुशबूदार साबुन से नहा लो फिर तमसे भी खुशबू आएगी ।
पंखुडी मचलते हुए - अब इतनी भी खुशबू नही आ रही कि मैं अपनी नींद बिगाड़ू ।
गौरव उसे झकझोड़ते हुए बोला - पंखुडी प्लीज ! देखो मैने चाय भी नही पी । आज की चाय तुम्हारे साथ पीना चाहता हु उठ जाओ ना यार । 
गौरव के झकझोड़ने से पंखुडी उनींदी हालत में उसकी तरफ देखने लगी  । गौरव अभी अभी नहाकर आया था तो उसके चेहरे पर पानी की बूंदे ठहर चुकी थी । पंखुडी ने उसे देख तो बस उसकी तरफ खींची चली गयी और अपने होठ गौरव के होठों की तरफ बढ़ा दिए । गौरव इसके लिए कतई तैयार नही था उसने जल्दी से  अपनी हथेली बीच मे ले ली जिससे पंखुडी के होंठ उसकी हथेली से टकरा गए। गौरव उसे देखते हुए नाराजगी से बोला - ये बिना बताए हमला किस खुशी में ।
पंखुडी अपने होठ उसकी हथेली से दूर करते हुए बोली - तू ना बहुत बहुत अच्छा लग रहा है इस वक्त ऊपर से ये तेरे साबुन की खुशबू मुझे तेरी और खींच रही है । मन तो कर रहा है खा ही जाऊं तुझे ।
गौरव उसके मुह से ये सब सुनकर असहज हो गया उसने जल्दी से पंखुडी को धक्का दिया और खुद दूर हटकर लम्बी लम्बी सांसे लेते हुए बोला - तुम क्या बोल जाती हो तुम्हे होश भी है । पता है मेरा ब्लड प्रेशर कितना हाइ हो गया है । 
पंखुडी भी खड़ी हो गई और कमर पर हाथ रख बोली - तो मैने गलत क्या कहा तू लग ही इतना अच्छा रहा है । हजार बार कह चुकी हूं मुझे तेरी ये अजीब सी भारी भरकम बाते समझ नही आती । मैं वही करूंगी जो मैने सीखा है । तुझे पसन्द है तो ठीक है वरना मैं चली जाऊंगी यंहा से । मुझे नही जीनी ऐसी मुरझाई हुई सी जिंदगी ।
गौरव को उसकी बात चुभ गयी । वो जितना उसे उन सब चीजों से बाहर लाने की कोशिश कर रहा था । पंखुडी को ये सब उतना ही बुरा लग रहा था । इतना सब होने पर वापस नींद कँहा आने वाली थी तो पंखुडी वाशरूम चली गयी और गौरव किचन में आ दोनों के लिए चाय नाश्ता बनाने लगा । उसका मन थोड़ा मायूस हो गया था क्योंकि उसने नही सोचा था उसकी शादी के बाद पहली सुबह इस बहस के साथ होगी । गौरव किचन में लगा हुआ था तभी उसके पास आशिष का कॉल आया । उसने पंखुडी के साथ उसे लंच पर इनवाइट किया । गौरव ने आने का कह कॉल कट कर दिया । उसने नास्ता टेबल पर लगाया ही था कि पंखुडी वँहा आ गयी लेकिन उसे देखते ही गौरव हैरान रह गया क्योंकि उसने  अब ना मंगलसूत्र पहन रखा था , ना ही सिंदूर था और ना ही हाथों में शादी का चूड़ा । 
गौरव का दिल धक्क से रह गया लेकिन उसने कुछ कहा नही और चुप चाप पंखुडी को नास्ता परोस खुद भी खाने लगा । पंखुडी खाते खाते बोली - मुझे वाणी दी से बात करनी है । 
गौरव ने बिना उसकी तरफ देखे  अपना फोन निकाला और  वाणी को कॉल लगा उसे फोन दे दिया । पंखुडी फोन लेकर कमरे में आ गयी और  वाणी से बात करने लगी । इधर गौरव ने सारे बर्तन समेटे और उन्हें साफ करने लगा । उसने 2 हफ्ते की छूटी ली थी ताकि पंखुडी के साथ समय गुजर सके लेकिन पहला ही दिन ऐसा जाएगा उसने सोचा नही था । इधर पंखुडी ने बातों ही बातों में वाणी को बता दिया कि उसकी गौरव के साथ बहस हो गयी और उसने हाथ गले मे पहनी सारी चीजें निकाल दी । जिसे सुन वाणी ने उसे डांटा भी और समझाया भी की सुहागन को ये सब पहनना कितना जरूरी होता है । इससे ऊपरवाले का आशिर्वाद हमेशा जोड़ी पर बना रहता है और साथ ही गौरव की रक्षा  के लिए ये सब पहनना जरूरी है । 
वाणी से बात कर पंखुडी को अपनी गलती का एहसास हुआ और वो रूम से बाहर आकर किचन की तरफ आई तो देखा गौरव वँहा रखे बर्तन सेट कर रहा था । उसने बिना कुछ कहे गौरव का हाथ पकड़ा और रूम में ले आई। गौरव ने हाथ छुड़ाने की कोशिश भी की पर उसने नही सुना और सोफे पर बिठाकर सारा सुहाग का सामान सामने  रखते हुए बोली - मुझे पहनना नही आता । तू पहना देगा ये सब कुछ ? 
गौरव ने बिना कुछ कहे उसे वँहा से मिरर के सामने बिठाया और चूड़ा पहनाने लगा । वो पंखुडी की तरफ़  देख ही नही रह था तो उससे रहा नही गया और बोली - तू ऐसे चुप चुप अच्छा नही लगता । माफ करदे आगे से ऐसा कुछ नही करूंगी । 
पंखुडी चुप हो गयी तो गौरव ने उसकी बात का जवाब दिए बिना मंगलसूत्र पहनाकर मांग में सिंदूर लगा दिया और फिर सामने आते हुए उसके माथे को चूम लिया । पंखुडी को उसकी खामोशी सहन नही हो रही थी इसलिए आंसू की धार बह निकली आंखों से । गौरव ने उसके आंसू पोंछे और उसके सामने घुटनो के बल बैठकर दोनों हाथ थामते हुए बोला - पंखुडी तुम अपनी जगह गलत नही हो । तुम वही कर रही हो जो तुमने सीखा है । पर तुम ये नही समझ रही हो कि जो आज तक तुमने किया वो सही है या गलत तुम्हे पता ही नही । अगर वो सब तुम अपनी मर्जी से करती तो मैं कभी गलत नही कहता । तुम उस माहौल से तो निकल गयी हो लेकिन उस जिंदगी से उभरना नही चाहती । मैं तुम्हे तुमसे मिलाना चाहता हु । मैं चाहता हु तुम एक नई पहचान के साथ दुनिया को देखो । उस पहचान में लोगों की नजरों में तुम्हारे लिए सिर्फ हवस थी पर इस नई पहचान में उनकी आंखों में तुम्हारे लिए सम्मान हो ये चाहता हु । तुम जो मुझसे चाहती हो वो एक पत्नी होने के नाते गलत नही है लेकिन इन सब के लिए तुम छोटी हो । और मैं नही चाहता कि मैं तुम्हारी नासमझी का फायदा उठाऊ जैसे आज तक बाकी लोग उठाते आए है । तुम बहुत सुंदर हो और बाकी लोगों की तरह मैं भी तुम्हारी सुंदरता की तरफ आकर्षित हुआ था ये भी मानता हूं। लेकिन फिर भी तुम्हारे जिस्म की ख्वाहिश नही रखी मैंने । प्यार करता हूं तुमसे । तुम्हारे जिस्म से पहले तुम्हारी पाक रूह को छूना चाहता हु । उस रूह पर एक अमिट छाप चाहता हूं अपने नाम की ।  जो मिलन तुम चाहती हो वो भी जरूर होगा और जिस दिन होगा हमारी जिंदगी के सबसे खूबसूरत पलो में से एक होगा । लेकिन इन सब से पहले तुम मेरी जिम्मेदारी  हो । तुम एक नायाब हीरा हो जिसे मैं तरसना चाहता हु । क्या ये सब करने में मेरा साथ दोगी ।
पंखुडी असमंजस में मुह खोले बड़ी बड़ी पलकें उसकी तरफ झपकाती रही तो गौरव बोला - नही समझी । 
पंखुडी ने मासूमियत से ना में सर हिला दिया तो गौरव ने आगे बढ़ उसे गले से लगा लिया - कोई बात नही धीरे धीरे समझ जाओगी । 
वो उससे अलग हुआ तो पंखुडी बोली - तू नाराज तो नही है ना ।
गौरव उसके बाल सही करते हुए बोला - बिल्कुल नही ।
गौरव ने उसे बताया कि वो आज दोपहर का खाना आशिष के यंहा खाएंगे । उसे वंही बैठा छोड़ गौरव बिस्तर सही करने लगा तो वो भी उसके पास आ गयी और मदद करने लगी । पंखुडी की उसके कोठे पर डिमांड बहुत थी इसलिए जमना बाई उससे कोई काम नही कराती थी जिस वजह से उसे बिस्तर भी सगी ढंग से सेट करना नही आता था  पर गौरव ने उसे समझाया । गौरव अपने कुछ दिन सिर्फ पंखुडी के साथ बिताना चाहता था जिस वजह से उसने घर मे काम करने वाले काका को छूटी दे रखी थी। इसलिए घर का काम गौरव को करना पड़ रहा था । गौरव के साथ साथ पंखुडी भी जैसा उसे करना आ रहा था काम कर रही थी । लेकिन काम करते हुए दोनों एक दूसरे के साथ मस्ती कर रहे थे , एक दूसरे को जी भर के परेशान कर रहे थे ।  पंखुडी ने सोचा नही था ये सब इतना मजेदार भी हो सकता है । उसे सुबह से दोपहर तक के समय मे ही गौरव का साथ भाने लगा था ।     दोपहर को आशिष के घर जाने के लिए पंखुडी ने गौरव की पसन्द का एक सुंदर सा प्लाजो सूट पहना । उससे दुप्पटा सेट नही हो रहा था तो उसने गौरव की मदद ली । गौरव उसका दुप्पटा सेट करने लगा तो पंखुडी बोली - ये मंगलसूत्र , सिंदूर , चूड़ा ये सब सच मे पति की रक्षा करते है क्या ।
गौरव दुप्पटे में पिन लगाते हुए बोला - किसने कहा तुम्हे ये सब । 
पंखुडी - वाणी दीदी ने ।
गौरव - अब ये सब होता है या नही इसका जवाब तो कोई नही दे पाया । ये चीजें धार्मिक होती है पंखुडी । हर धर्म मे ये सब पहनना जरूरी नही होता । हिन्दू धर्म मे इस बात का समर्थन किया गया है । वैसे भी इन बातों पर विश्वाश करना ना करना हर व्यक्ति की अपनी समझ होती है । कहते है ना मानो तो मैं गंगा मां हु ना मानो तो बहता पानी। जैसे भगवान की प्रतिमा ही ले लो । जंहा लोग प्रतिमा में भगवान का वास मानते है तो वंही कुछ लोगों के लिए वो सिर्फ पत्थर की मूर्ति है जो घर सजाने के काम आती है । गौरव दुप्पट्टा सेट कर हटते हुए बोला - समझी कुछ ।
पंखुडी खोई हुई सी - हम्म।
गौरव हैरानी से - सच मे ! अच्छा बताओ क्या समझी ।
पंखुडी - यही जंहा यकीन है वँहा सब कुछ है और यकीन नही वँहा कुछ भी नही । 
गौरव मुस्कुराते हुए -  वाव वेरी गुड आखिर तुम मेरी बातें समझने लग ही गयी ।
पंखुडी मुस्कुरा दी और गौरव के साथ आशिष के घर के लिए निकल गयी । पूरे रास्ते गौरव उसकी पसन्द ना पसन्द पूछता रहा । उसे क्या काम आता है क्या नही , क्या पढ़ सकती है कितना लिख सकती है सब जान लिया था उसने । और रास्ते भर में सोच भी लिया था कि उसे करना क्या है ।
आशिष ने दोनों का बहुत अच्छे से स्वागत किया लेकिन दिया का मुह अभी भी बना हुआ था । उसे ना ही गौरव की शादी रास आई और ना ही ये की कोई कोठे वाली उसके घर आए । वो हॉल में आकर बैठे तो दिया उनके लिए पानी लेकर आई । गौरव से तो उसने अच्छी तरह से बात की लेकिन पंखुडी की तरफ देखा तक नही । वंही  पंखुडी का भी संकोच से बुरा हाल था । दीया गुस्से से बड़बड़ाते हुए किचन में खाना टेबल पर लगा रही थी कि तभी उसकी 4 साल की बेटी पंखुडी को देखकर दौड़ते हुए आई और मामी मामी कहकर गोद मे बैठ गयी । पंखुडी भी उस नन्ही परी को गोद मे लेकर खूब प्यार करने लगी की दीया आई और अपनी बेटी को उसकी गोद से उतारकर थप्पड़ लगाते हुए बोली - होमवर्क करना नही है इसे बस सारा दिन धमाचौकड़ी करवा लो । चुपचाप जाकर अपने रूम में होमवर्क करो नही तो टांगे तोड़ दूंगी । 
बच्ची पहली बार अपनी मम्मी का ऐसा रूप देख सहम गई और थप्पड़ की वजह से रोने भी लगी । पंखुडी भी अचानक हुए इस वाकये से घबरा गई तो वंही गौरव और आशिष ने एक साथ ही दीया को डांट दिया । दीया ने उनकी तरफ ध्यान दिए बिना ही अपनी बेटी का हाथ पकड़ गुस्से से उसके रूम में छोड़ आई और सबके लिये थालिया लगाते हुए बड़बड़ाने लगी - भाई को भी ये बाजारू ही मिली थी शादी करने के लिए । इतनी अच्छी जॉब है , इतना रुतबा है कोई भी लड़की तैयार हो जाती लेकिन इस  हरि आंखों वाली ने अपने रूप जाल में बांध लिया । मना किया था आशिष को मुझे नही पसन्द कोई बाजारू मेरे घर आए पर नही इनको तो महान बनना है । इतनी नीच औरत की परछाई तक नही पड़ने दूंगी अपनी बेटी पर ।  जिस औरत की शक्ल तक देखना पसंद नही है उसको अपने हाथ से पकवान खिलाने पड़ रहे है । ये बस पहली और आखरी बार है इनके जाते ही आशिष को कह दूंगी फिर कभी इस घटिया औरत का साया मेरे घर पर ना पड़े।
पीछे से आवाज आई - तुम्हे अब भी तकलीफ लेने की कोई जरूरत नही है दीया । 
दीया ने पीछे मुड़कर देखा तो गौरव खड़ा था साथ ही आशिष भी वंही उसे खड़ा गुस्से से देख रहा था । 
दीया ने कुछ कहने के लिए मुह खोला तो गौरव ने अपना हाथ आगे कर दिया - बहन मानता हूं उस लिहाज से खामोश हु । वरना मेरी बीवी की बेइज्जती करने वाले के साथ मैं कितना बुरा  हो सकता हूं नही जानता । उम्मीद है आगे से ख्याल रखोगी । जब तक इस घर में मेरी बीवी की इज्जत नही होगी तब तक मैं भी यंहा कदम नही रखूंगा ।
गौरव ने दीया के सर पर हाथ रख अपने साथ लाये गिफ्ट्स थमा दिए और किचन में भीगी पलकों के साथ खड़ी पंखुड़ी का हाथ पकड़ ले जाने लगा ।
आशीष ने उसे रोका - सर प्लीज दीया की तरफ से मैं आपसे माफी मांगता हूं इस तरह से मत जाइए ।
गौरव - मैं तुमसे या दीया से नाराज नही हु आशीष हर इंसान की अपनी अपनी मानसिकता होती है । लेकिन जंहा मेरी बीवी की इज्जत नही वँहा मैं कैसे रह सकता हु । तुम भी तो दीया के पति हो  अगर कोई उसकी बेइज्जती करे तो क्या तुम सहन कर पाओगे । नही ना तो बस मैं भी नही कर सकता और अगर दुनिया मे कोई भी पति अपनी बीवी की बेइज्जती का तमाशा चुपचाप देखे वो मर्द कहलाने के लायक ही नही । 
गौरव पंखुड़ी का हाथ थामे गाड़ी तक ले आया और उसके लिए दरवाजा खोल दिया । पंखुड़ी बैठ गयी तो उसने गाड़ी स्टार्ट कर दी । आशीष दीया को अफसोस से घूरता हुआ अपने रूम में चला गया ।
गौरव ने गाड़ी एक सुनसान जगह पर रोकी और पंखुड़ी की तरफ रुमाल बढ़ा दिया । पंखुड़ी ने लेकर अपने आंसू पोंछे और अब वो बिफर पड़ी -  वो होती कौन है मुझे सुनाने वाली । तू लेकर गया मुझे वँहा इसलिए चली गयी वरना मैं भी इन सरीफजादियों की शक्ल ना देखु । अगर मैं बाजारू हु तो उसको क्या तकलीफ । अच्छा या बुरा जैसे भी कमाया खुद से कमाया किसी के आगे हाथ नही फैलाया । मुझे अच्छे से पता है ये दुनियां कितनी सरीफ है।  दुनियां के सामने कोट पेंट , टाई बांधकर रहने वालों के कपड़े हमे देखते ही उतर जाते है । हर रोज सरीफ चेहरे के पीछे छुपे दुशासन से पाला पड़ता है हमारा जो चीर हरण करने को तैयार रहता है । तुम्हारी ये दुनियां इतनी ही सरीफ होती तो हर रोज बलात्कार के किस्से नही छपे होते अखबारों में । कोई भी लड़की बाहर निकलने से पहले 10 बार सोचती नही । बड़ी आई सरीफजादी । एक बार वाणी दीदी ने कंही से पढ़कर सुनाया था की एक तवायफ अपनी आत्मकथा लिखने पर क्या आई शहर के सरीफ आत्महत्या करने लगे । मैं बस तेरी वजह से चुप थी वरना उस साली का तो ...।
गौरव बीच मे - ऐसे गाली नही देते पंखुड़ी ।
पंखुड़ी गुस्से से - हां तू भी मुझे ही ज्ञान दे । उसे तो कुछ बोला नही गया तुझसे । और बोलेगा भी क्यू तू भी तो उनकी सरीफ दुनिया का हिस्सा है ना । 
गौरव भी बिफर पड़ा - मेरी बहन है वो एक मर्यादा में रहकर जितना कह सकता था कहकर आया हु । हाथ नही उठा सकता था उसपर । इतने में ही हार गई । हर कदम पर तुम्हे एक दीया मिलेगी  कैसे सामना करोगी उसका ।
पंखुड़ी रोने लगी तो गौरव उसका सर सहलाते हुए बोला - इस तरह रोने से क्या होगा पंखुड़ी । कदम कदम पर ऐसे लोग मिलेंगे तो क्या सारी जिंदगी रोती रहोगी । लोगों का मुह बन्द  चिल्लाकर , मारकर या रोकर नही किया जाता । उनका मुह अपने आप बन्द हो जाता है आपकी काबिलियत देखकर । तुम्हे दीया की बातों का बुरा लग रहा है तो कुछ ऐसा करके दिखाओ की कल को वो जब भी तुम्हारे सामने आए उसे अपने किये की शर्मिंदगी महसूस हो । मैं ये नही कहता उसे शर्मिंदा करने के लिए या उसे सबक सिखाने के लिए कुछ करो । तुम जो भी करो अपने  लिए करो लेकिन ये दुनियां खुद ब खुद तुम्हारे कदमो के निशान पर चले ऐसा कुछ करो । आज तुम्हारी बेइज्जती करने वाले लोग खुद तुम्हारे सामने झुके ऐसा करो । तुम्हे मेरी बातें शायद समझ नही आ रही लेकिन जो कह रहा हु वैसे करके तो देखो पंखुड़ी । आज तक तुम जमना बाई के हुक्म पर चलती आई हो । उसने जो कहा तुमने किया बस एक बार मेरी बात को हुक्म मानकर ही कर लो अगर तुम्हे मेरे कहे काम करना अच्छा नही लगा तो वादा करता हु फिर कभी करने को नही कहूंगा । तुम जैसे चाहे रहना , अगर तुम्हारा मन नही लगा मेरे पास तो तुम जंहा कहोगी तुम्हे छोड़कर आऊंगा पर प्लीज एक बार मान लो । एक मौका देकर तो देखो पंखुड़ी । 
पंखुड़ी एक दम चुप हो गयी और गौरव उसे देखता रहा । कुछ देर की खामोशी के बाद पंखुड़ी धीरे से बोली - क्या करना होगा मुझे । 
उसकी बातों से गौरव के चेहरे पर चमक और होठों पर मुस्कान तैर गयी - सबसे पहले तो आंसू पोंछकर चेहरे पर मुस्कुराहट लानी होगी । फिर मुझे भूख लगी है तो किसी रेस्टोरेंट में चलकर खाना खाएंगे । उसके बाद हमारे घर चल कर साथ मे सोचेंगे कि आगे क्या करना है , ओके ।
पंखुड़ी की चेहरे पर प्यारी सी स्माइल आ गयी । उसने हामी में सर हिलाया तो गौरव ने गाड़ी स्टार्ट कर दी और एक रेस्टोरेंट ले गया । वँहा उसने पंखुड़ी की पसन्द का खाना मंगवाया जिसे पंखुड़ी ने बहुत चाव से खाया । किसी मर्द से ऐसा निश्छल प्रेम पंखुड़ी को पहली बार मिल रहा था जिससे वो भी गौरव से जुड़ा हुआ महसूस कर रही थी । खाने के बाद पंखुड़ी ने आइसक्रीम की फरमाइश की तो गौरव ने वो भी पूरी की ।  दीया कि वजह से जो पंखुड़ी  का मूड खराब हुआ था वो अब गौरव ने बिल्कुल सही कर दिया था । घर आते आते पंखुड़ी काफी थक गयी थी इसलिए बिना कपड़े चेंज किये ही सो गई । गौरव ने अपने कपड़े चेंज किये और दूसरे रूम में कम्प्यूटर पर बैठकर काम करने लगा । काम करते करते कब शाम हो गयी उसे पता ही नही चला । उसने दो कप चाय बनाई और पंखुड़ी को उठाया । पंखुड़ी ने उठते ही कपड़े चेंज किये और गौरव के साथ मिलकर बालकनी से बाहर का नजारा देखते हुए चाय पी । चाय पीकर गौरव ने ऑनलाइन कुछ चीजें ऑर्डर की साथ ही पंखुड़ी को गाने का शौख था तो एक म्यूजिक टीचर का भी इंतजाम कर दिया । अपने लिए किसी को पहली बार इतना सब करते देख पंखुड़ी हैरान भी थी और खुश भी थी । दीया की बातों ने उसे अंदर तक इफेक्ट किया था इसलिए अब वो भी उसे और समाज को एक करारा जवाब देना चाहती थी जिस वजह से गौरव की हर एक कोशिश में उसके साथ थी वो । रात में खाना खाकर दोनों जल्दी ही सो गए और अगले दिन से सुबह 5 बजे उठकर ही दोनो अपने लक्ष्य में लग गए । घर के एक रूम को गौरव ने पूरा क्लासरूम ही बना दिया था । दीवार पर ब्लैकबोर्ड जिसके पास चॉक और डस्टर साथ ही कुछ किताबें । सामने एक टेबल और चेयर । नित्य कर्म से फ्री हो कर पंखुड़ी किसी आज्ञा कारी विद्यारर्थी तरह वँहा आकर बैठ गयी । गौरव ने सबसे पहले उसे क्लासरूम के डिसिप्लिन समझाए और फिर हिंदी वर्णमाला से पढ़ाना शुरू किया । कोठे पर वाणी ने उसे कुछ कुछ चीजें सिखाई हुई थी इसलिए ये सब समझने में उसे ज्यादा परेशानी नही आ रही थी । वैसे भी उसे हिंदी पढ़नी आती थी । हां लिखनी नही आती थी । गौरव ने जब उसे आसानी से अपने पीछे उच्चारण करते देखा तो हैरान हुआ । उसने पंखुड़ी से पूछा तो उसने बताया दिया कि वाणी ने उसे ये सिखाया था । पहले दिन पंखुड़ी एक ही घण्टे में उबासी लेने लगी और जैसे ही डेढ़ घंटा हुआ टेबल से सर लगाकर मस्त नींद में चली गयी । गौरव उसे देख मुस्कुरा दिया । उसने उसे गोद मे उठाया और अच्छे से बिस्तर पर लिटा दिया । नास्ते के समय गौरव ने उसके लिए नाश्ता बनाया और फिर से जगाया । पंखुड़ी ने अपने किये की माफी भी मांगी तो गौरव ने उसके सर पर हाथ रख दिया और अपने हाथ से नाश्ता करवाने लगा । पंखुड़ी खुश थी इतना स्नेह पाकर । 
उसके बाद पूरा दिन गौरव उसे पढ़ाने की बजाय नैतिक चीजे सिखाने लगा जैसे बोलने का सलीका उठने -बैठने का सलीका , खाने का सलीका , किसी को अच्छे से ट्रीट करने का सलीका , पंखुड़ी हर चीज बड़े गौर से और ध्यान से समझने की कोशिश कर रही थी दोपहर के खाने के बाद दोनों ने कुछ देर की नींद ली और शाम तक गौरव का मंगवाया हुआ पढाई से रिलेटड कुछ सामान और म्यूजिक टीचर आ गए । पंखुड़ी को गाने का बहुत शौंख था तो उन्हें देख खुश हो गयी । लेकिन जब मास्टरजी सुर ताल , साज ,आलाप का ज्ञान देने लगे तो उसका सर चकराने लगा । उसे तो लगा बस गाना कैसे भी गाना होता है आवाज अच्छी होनी चाहिए । ये नही सोचा था की गाने की भी पढ़ाई होती है और सब कुछ नाप तोल में सीखना पड़ता है । मास्टरजी के जाते ही पंखुड़ी ने कह दिया की गाना नही सीखेगी उसे कुछ समझ नही आ रहा वो बस ऐसे ही गाकर अपना शोख पूरा कर लेगी । ये सब उसके सर के ऊपर से जा रहा है । गौरव ने भी उसकी समस्या समझी और फिलहाल के लिए म्यूजिक क्लास बन्द करवाना ही सही समझा क्योंकि उसे लगा जब वो अच्छे  से पढ़ना -लिखना समझ जाएगी तो सुर ताल की भी समझ आ जाएगी उसे तभी फिर से म्यूजिक क्लास शुरू करवा देगा । गौरव रात का खाना बना रहा था तो पंखुड़ी ने अपनी मर्जी से उसकी मदद की । गौरव भी उसे हर चीज में दिलचस्पी लेते देख काफी खुश था । अगले दिन से यही रूटीन शुरू हो गया । गौरव जल्दी उठ पंखुड़ी को उठाता , उसके लिए चाय बनाता और फिर उसे पढ़ाने में और नैतिक व्यवहार सीखाने में लग जाता तो पंखुड़ी भी पूरी तल्लीनता से सीखने का प्रयास करती । धीरे - धीरे गौरव उसे मैथेमेटिक्स , इंग्लिश और कम्प्यूटर चलाना भी सिखाने लगा । 2 हफ्ते इन सब चीजों में कब गुजर गए पता ही नही चला। इस दो हफ्ते में पंखुड़ी को गौरव की आदत सी हो गयी थी । कंहा तो वो सोच रही थी कि एक आदमी से 2 दिन में ऊब जाती है पर गौरव के मामले में हर गुजरते लम्हे में उसके करीब ही आती जा रही थी । यंहा तक कि वो नहाने जाता तो बेचैनी से उसका बाथरूम से निकलने का इंतजार करती क्योंकि वो उसे 24 घण्टे अपने सामने देखना चाहती थी । गौरव भी अपनी जिम्मेदारी के साथ साथ उस पर खूब स्नेह लूटा रहा था । उसने पंखुड़ी को अपनी पत्नी होने के सारे अधिकार दिए थे सिवाय शारीरिक सम्बन्ध बनाने के । इन दो हफ्तों में पंखुड़ी ने चाय बनानी सिख ली थी , घर की साफ सफाई और साज सजा कैसे की जाती है सीख ली थी । पढ़ना उसे पहले से आता था इसलिए लिखना सीख रही थी । शब्दों के मतलब सीख रही थी । कम्प्यूटर के ऑप्शन्स समझने लगी थी ,  मैथेमेटिक्स  की बेसिक चीजे समझने लगी थी । गौरव के बराबर या फिर उससे ज्यादा मेहनत  कर रही थी वो क्योंकि गौरव उसे रास्ता दिखा रहा था उस पर चलने का काम तो पंखुड़ी का ही था । आज दो हफ्ते बाद गौरव वापस ड्यूटी जॉइन करने के लिए रेडी था । पंखुड़ी एक तरफ मुह फुलाकर खड़ी थी क्योंकि नही चाहती थी गौरव जाए । गौरव को उसका मुह फुलाना भी भा रहा था । उसने पंखुड़ी को खींचकर मिरर के सामने खड़ा किया और माथे पर सिंदूर लगाते हुए बोला - अब ऐसे मुह फुलाओगी तो कैसे जा पाऊंगा मैं ।
पंखुड़ी - तो मत जाइये ना (पंखुड़ी तू से आप पर आ गयी थी बीते हफ्ते में ) मुझे बिल्कुल अच्छा नही लग रहा । कैसे रहूंगी आपके बिना दो हफ्ते से आप दिन रात साथ थे पर अब ऐसे मेरा मन भी नही लगेगा ।
गौरव ने आगे बढ़कर उसके माथे को चूम लिया और मिरर के सामने खड़ा कर पीछे से उसको बांहो में लेते हुए बोला- आज तक कभी कहा नही तुमसे पर आज कहने का बहुत मन कर रहा है ।
पंखुड़ी - क्या ?
गौरव अपनी बांहे उस पर कसते हुए कान के पास होठ अड़ाकर बोला - आई लव यू !
पंखुड़ी के चेहरे पर सुर्खी छा गयी - मुझे इसका मतलब पता है ।
गौरव - तो फिर जवाब दो ।
पंखुड़ी उसे दूर धकेलते हुए - वापस आओगे तब दूंगी । 
गौरव अपनी गन कमर में फँसाते हुए बोला - फिर दो हाफ डे लेकर आना पड़ेगा ।
पंखुड़ी  खुश होते हुए -  सच्ची !
गौरव अपनी कैप उसके सर पर रखते हुए बोला - बिल्कुल नही ।
पंखुड़ी ने फिर से मुह बना लिया तो गौरव ने उसके गालों को हल्का सा खींच  दिया । पंखुड़ी उसके गले लग गयी और बांहे कसते हुए बोली - मैं इंतजार करूंगी , जल्दी आना ।
गौरव कुछ नही बोला बस उसका सर सहलाता रहा । पंखुड़ी ने कैप अपने सर से हटाकर गौरव के सर पर एख दी । उसने महसूस किया कि कैप पहनते ही गौरव के चेहरे के हाव भाव बदल गए है और एक गम्भीरता आ गयी थी उस चेहरे पर ।
पंखुड़ी उसके साथ दरवाजे तक आई । गौरव उसके गालों को चूमते हुए जल्दी आने का वादा करके साथ ही अच्छे से पढ़ने का कहकर  चला गया ।
पूरा दिन पंखुड़ी घर पर ऐसे ही पड़ी रही । पढाई तो बिल्कुल नही की क्योंकि बार बार गौरव की याद आ रही थी । और दो हफ्ते बाद ड्यूटी जॉइन करने से गौरव के ऊपर बहुत काम था तो जल्दी आने की बजाय लेट हो गया था । रात के 10 बजे गौरव की गाड़ी का होर्न सुन पूरे दिन से निर्जीव सी पड़ी पंखुड़ी दौड़ पड़ी बाहर की तरफ । गौरव पूरा सा उतरा भी नही होगा गाड़ी से की भागकर उससे लिपट गयी । गौरव ने भी मुस्कुराते हुए बांहो में कस लिया । आशीष जो कुछ देर यंहा रुकने वाला था । उनको ऐसे देख मुस्कुराते हुए गाड़ी स्टार्ट कर ली । गौरव ने रोकने की कोशिश की पर वो बाद में आने का कहकर चला गया।  
गौरव पंखुड़ी का हाथ थामे अंदर आ गया । उसने यूनिफॉर्म बदली तब तक पंखुड़ी ने खाना लगा दिया । टेढ़ी - मेढ़ी जली हुई रोटियां और सब्जी में मसाले हद से ज्यादा तेज और कुछ कुछ कच्ची भी थी । जिसे गौरव ने बिना किसी शिकायत के खा लिया पर पंखुड़ी खुद ने मुह बना लिया तो गौरव ने उसके लिए बाहर से ऑर्डर कर दिया और साथ ही घर मे काम करने वाले काका को भी फोन कर जॉब पर आने को कह दिया । उन्हें ये भी समझाया कि वो पंखुड़ी को घर काम सिखाए । काका भी मान गए । 
रात में पंखुड़ी गौरव के सीने से ऐसे चिपक कर लेटी थी कि जैसे वो फिर से कंही न चला जाए । गौरव ने उससे आज की पढ़ाई के बारे में पूछा तो उसने बता दिया कि उसकी  याद इतनी ज्यादा आई कि पढाई भी नही हो पाई।  गौरव ने फिर से शांति से ही काम लिया और समझाया कि अब उसे रोज ही जाना पड़ेगा । अगर ऐसे ही पढ़ाई में कोताही करेगी तो जो भी सीखा है वो मिट्टी में मिल जाएगा। 
थोड़ी देर की समझाइश से पंखुड़ी समझ गयी और  आगे से कोई भी लापरवाही नही करेगी इसका वादा किया । 

देखते ही देखते एक महीना और गुजर गया और पंखुड़ी हर दिन पढाई - लिखाई में उभर कर आ रही थी । कम्प्यूटर लगभग सीख चुकी थी  । बस अब तो डेली प्रेक्टिस करनी थी । लिखना भी जान गई थी पढ़ना आता ही था । इंग्लिश सही से बोल नही पाती थी पर सामने वाले कि अच्छे से समझने लगी थी । आजकल गौरव की उस छोटी सी लाइब्रेरी से किताबे भी पढ़ने लगी थी वो । काका से घर काम भी पूरी लगन से सीख रही थी जिस वजह से पकवान तो नही पर बेसिक खाना बनाना सीख गई थी । अब गौरव के लिए चाय - नाश्ता , ड्यूटी के लिए टिफिन वो ही बनाती थी । पंखुड़ी भी अब तन की मोहब्ब्त और मन की मोहब्ब्त में फर्क समझने लगी थी । और ये भी जान गयी थी कि वो भी गौरव को मन से चाहने लगी है।  जिस दिन उसे एहसास हुआ वो क्या काम करती थी । उसमे क्या गलत था क्या सही । उस दिन पूरा दिन गौरव के सीने से लगी रोती रही ।  उसका मूड ठीक करने के लिए गौरव उसे बाहर घुमाने ले गया । बाहर पंखुड़ी ने जब हाथों में हाथ डाले कपल्स को घूमते देखा तो उसने भी गौरव की बांह में अपनी बांह फसा दी । सबको दिखाने के लिए की वो उनसे अलग नही है , उसके पास भी एक सच्चा हमसफ़र है । कोई है जो उसके तन से नही मन से प्रेम करता है । 
इस एक महीने में गौरव ने जमना बाई को तो कड़ी से कड़ी सजा दिलवाई ही साथ ही जमना बाई के साथ धंधे में जुड़े कमिश्नर के खिलाफ भी सबूत इकट्ठा कर लिए । इधर कमिश्नर  भी गौरव के बारे में हर जानकारी इकट्ठा कर रहा था और कमजोरी के नाम पर उनके हाथ लगी पंखुड़ वंही दूसरी तरफ  पंखुड़ी के शरीर को भी उस कोठे की जिंदगी की आदत पड़ गयी थी । इस एक महीने में वो शरीर मे होने वाले हार्मोन्स परिवर्तन से बहुत तकलीफों से गुजरी । उसका शरीर किसी मर्द के शरीर के सम्पर्क में आने को बहुत तड़पा । पंखुड़ी ने कोशिश भी की गौरव के करीब जाने की पर गौरव ने करीबी के नाम पर अपनी शर्ट निकाल निरावरण धड़ से लगाए रखा उसे।  । पंखुड़ी बुरी तरह तड़पती रहती पर गौरव ने अपनी मर्यादा नही लांघी । इस तरह की सिचुएशन से पंखुड़ी को काफी बार गुजरना पड़ा पर गौरव के साथ से  आख़िरकार वो इससे भी उभर गयी ।  अब पंखुड़ी भी खुद को कंट्रोल करना सीख चुकी थी । उसके दिमाग मे ऐसी कोई बात नही आती जिससे उसकी बॉडी में भी कोई हलचल नही मचती। ये सब डेढ़ महीने में गौरव के समर्पण और पंखुड़ी की उस जिंदगी से ऊपर उठ नई पहचान बनाने की जिद की वजह से सम्भव हो पाया था ।

गौरव को एक केश के सिलसिले में बाहर जाना पड़ा । ना पंखुड़ी का उसे भेजने का मन था ना गौरव का जाने का । गौरव आज भी शीशे के सामने तैयार हो रहा था तो पंखुड़ी ने उसे पीछे से गले लगा लिया और बोली - आई लव यू ।
गौरव मुस्कुरा दिया । पंखुड़ी ने उसके सर पर कैप रखते हुए कहा - मैं इंतजार करूंगी ।
गौरव उसके गाल पर प्यार से हाथ रखते हुए - और मैं इस इंतजार को जल्द से जल्द खत्म करने की कोशिश ।
दोनो एक बार फिर कुछ पल के लिए गले मिले और फिर गौरव उसके गालों पर अपने प्यार की छाप छोड़कर  निकल गया । रात में पंखुड़ी के पास रुकने के लिये गौरव ने वाणी को बुला लिया था । वाणी समय रहते आ गयी थी। उसी रात घर पर किसी की दस्तक हुई तो वाणी ने दरवाजा खोला । सामने कमिश्नर खड़ा था । कमिश्नर को देखकर पंखुड़ी डर गई क्योंकि वो  उसका पुराना कस्टमर रह चुका था । 
उसने किसी भी तरह के सवाल जवाब का मौका ही नही दिया । अंदर कदम रखते ही वाणी का सर दीवार से दे मारा तो वाणी बेहोश हो गयी । पंखुड़ी डर से धीरे धीरे कदम पीछे करते हुए अंदर के कमरे में भागने की फिराख में थी  । कमिश्नर उसकी तरफ बढ़ते हुए अपने होठ को दांत तले काटते हुए बोला - अरे तू घबरा क्यूँ रही है । पहली बार तो मिल नही रही । भूल गयी हमने कितने हसीन लम्हे साथ गुजारे है । डर मत आज फिर से तुझे वो ही हसीन सफर तय करवाने आया हु । 
पंखुड़ी पीछे हटते हुए - म,,,,मुझे हाथ मत लगाना वरना अच्छा नही होगा । मेरे पति भी पुलिस वाले है । पता चला तो छोड़ेंगे नही तुझे ।
कमिश्नर ने आगे बढ़कर उसके बाल पकड़ लिए और जमीन पर फेंकते हुए बोला - साली बाजारू । मुझे धमकी देती है । ना जाने कितनी बार मेरे साथ हमबिस्तर हुई है और आज देखो कैसे सती सावित्री बन रही है । किसी ने बताया नही क्या तेरी जैसी कोठे वालियों के पति नही हुआ करते । सिर्फ ग्राहक होते है । वैसे भी वो तुझे ऐसा क्या दे रहा है जो मैं नही दे सकता ।
पंखुड़ी - अपना नाम दिया है उन्होंने , हवस नही प्यार दिया है उन्होंने , अपना वजूद शौम्प दिया है उन्होंने । तूने मुझे नोचने के सिवा किया ही क्या है ।
कमिश्नर उस पर  हावी होते हुए बोला - आज भी नोचने ही आया हु तुझे । तेरा पति मेरे खिलाफ सबूत इकठ्ठा कर रहा है । सुना है एक तू ही कमजोरी है उसकी । उसे काबू में लाने के लिए तेरा शिकार तो करना ही पड़ेगा । वैसे भी काफी समय हो गया तुझे चखा नही । 
कमिश्नर उसके ऊपर झुका ही था कि पंखुड़ी लुढकर नीचे से निकल गयी और किचन की तरफ भागते हुए बोली - अब मैं उस कोठे की लाली नही गौरव जी की पंखुड़ी हु । इस तन को तेरे साथ साझा करना तो दूर आंख भी नही उठाने दूंगी । 
कमिश्नर उसके पीछे भागा इससे पहले ही पंखुड़ी ने किचन से चाकू उठाया और अपने ही पेट मे मार दिया । गौरव की तस्वीर पर नजर गयी तो मन ही मन बोली - आपसे बहुत प्यार करती हूं पति देव । आज समझ आ गया ये दुनिया हम जैसी लड़कियों को कभी इज्जत की जिंदगी जीने ही नही देगी । आपने मेरे मन को तो बहुत पहले ही छू लिया अब तन पर भी सिर्फ आपका अधिकार है । इस तन को किसी और के साथ बाटने से अच्छा इसे खत्म ही कर दु ।
कमिश्नर ने उसे फिर भी पकड़ने की कोशिश की पर पंखुड़ी ने एक बार और चाकू पेट मे दे मारा । उसकी हरकत से कमिश्नर पूरी तरह से  सकते में आ गया । वो सोचकर आया था कि इसके साथ रात गुजारकर गौरव को ब्लैकमेल करेगा पर पंखुड़ी ने सारा खेल ही उलट दिया । कमिश्नर अब वँहा से भाग जाना चाहता था लेकिन जैसे ही दरवाजे पर पहुंचा एक जोरदार लात उसके मुह पर आकर पड़ी । कमिश्नर ने देखा सामने गौरव, आशीष , और कुछ पुलिस अधिकारी खड़े है । 
गौरव को जब छोटे से केश के लिए शहर से बाहर भेजा गया तब ही उसे शक हो गया था । वो शहर से बाहर   गया ही नही था । उसे शक था की कमिश्नर कुछ ना कुछ करेगा  जरूर । जब उसे खबर मिली कि कमिश्नर उसके घर गया है तो उसे रंगे हाथ पकड़वाने के लिए हेडक्वार्टर गया और सीनियर्स के साथ यंहा आ गया । 
आशिष कमिश्नर की कॉलर पकड़ते हुए - इसे मैं देखता हूं सर आप मैम को सम्भालिए ।
गौरव पंखुड़ी को ढूंढते हुए किचन में आया तो उसकी हालत देख उसके तो जैसे प्राण ही निकल गए । उसने पंखुड़ी को होश में लाने की कोशिश की पर वो होश में नही आई । गौरव ने जल्दी से अपनी यूनिफॉर्म निकाली और उसके पेट पर कसकर बांधकर गोद मे उठा बाहर की तरफ दौड़ पड़ा । पंखुड़ी की हालत देख सब घबरा गए थे। गौरव उसे गाड़ी में लेकर हॉस्पिटल की तरफ निकल गया। 
इधर आशीष ने वाणी को होश में लाया और फिर वँहा की इन्वेस्टिगेशन करने लगा । 

हॉस्पिटल पहुंचते ही पंखुड़ी को आईसीयू में भर्ती कर लिया गया था । डॉक्टर्स लगे हुए थे पर खून काफी बह गया था । गौरव नम आंखों से परेशान सा इधर उधर चक्कर काट रहा था तभी किसी ने उसकी पेंट खींची । गौरव ने देखा आशीष की बेटी उसकी पेंट खींच रही है । गौरव उसके पास घुटनो के बल बैठ गया तो वो उसके गले लग बोली - मामी को कुछ नही होगा मामू । मैने प्रेयर की है भगवान जी से । वो ठीक हो जाएगी ।
गौरव की नम आंखे अब बरस ही पड़ी थी । उसने कसकर उसे गले से लगा लिया था । तभी दीया वँहा आई और कंधे पर हाथ रखते हुए बोली - भाभी को कुछ नही होगा भाई ।
गौरव हैरानी से उसे देखने लगा तो वो फिर बोली - माफ कर दो ना भाई अपनी बेवकूफ बहन को भूल गयी थी कि सबको अपनी जिंदगी जीने का अधिकार है । उसमें आगे बढ़ने का अधिकार है । आशीष जी ने समझाया मुझे तो समझ आया ये सब । काफी दिन से आप से बात करना चाह रही थी पर हिम्मत ही नही हुई । अभी जब आशीष जी ने फोंन कर भाभी की हालत बताई तो रहा नही गया । उस दिन की बद्तमीजी के लिए माफ कर दीजिए ना भाई।
गौरव ने खड़े होकर दीया के सर पर हाथ रख दिया तो दीया उसके गले लग गयी । उन दोनों मा बेटी की वजह से गौरव को काफी हिम्मत मिल रही थी । लगभग दो घण्टे बाद डॉक्टर्स बाहर आए और पंखुड़ी के ठीक होने की खबर दी पर वो अभी बेहोश ही थी और होश भी सुबह तक ही आना था उसे । गौरव की जान में जान आई ये सुनकर । 
दीया को गौरव ने घर भेज दिया और खुद सारी रात पंखुड़ी के पास बैठकर गुजारी । उसकी आंखें एक पल के लिए भी बन्द नही हुई थी । सुबह पंखुड़ी को होश आया तो गौरव को देख मुस्कुरा दी । गौरव उससे लिपट गया और नम आँखो से बोला - इतनी ऊब गयी थी मुझसे की हमेशा के लिए जाना चाहती थी ।
पंखुड़ी ने उसका चेहरा थाम लिया और बोली - एसपी साहब अब तो आपका जन्मों जन्म तक पीछा नही छोडूंगी।  गलत जगह फस गए आप ।
गौरव ने उसे फिर से गले लगा लिया - बिल्कुल सही जगह फसा हु । आज तुमपर पहली बार बहुत गुस्सा आ रहा है । तुमने ये कदम उठाने से पहले एक बार भी मेरे बारे में नही सोचा ।
पंखुड़ी उसकी आँखों मे झांकते हुए बोली - आपने मुझे जिंदगी का सही मायना सिखाया । मेरी अभिशाप भरी जिंदगी को फूलों की बगिया की तरह महका दिया । आपने मेरे मन को अपने बस में कर लिया तो इस तन को अब किसी और को कैसे हाथ लगाने देती । वो मुझे छूने की कोशिश कर रहा था । हां मानती हूं ये पहली बार नही था पर वो लाली थी लेकिन अब मैं आपकी और सिर्फ आपकी पंखुड़ी हु । तन - मन सब आपका है । मुझे गवारा नही की कोई भी मुझे उस नजरों से देखे भी । मुझपर सिर्फ आपके प्यार का अधिकार है किसी की हवस का नही । 
आज गौरव को अपनी मेहनत सफल होते दिख गयी थी । उसने दीवानगी से पंखुड़ी को बांहो में भर लिया । 
सुबह आशीष दीया और अपनी बेटी के साथ मिलने आया पंखुड़ी से । दिया ने उससे माफी भी माँगी । पंखुड़ी को कोई शिकायत नही थी उससे । आशीष की बेटी ने अपनी मामी को और पंखुड़ी ने उसे खूब प्यार किया और आज दीया भी ये सब देख मुस्कुरा रही थी । आशिष ने बताया कि कमिश्नर को जेल हो गयी है बस कोर्ट  में पेशी का इन्तजार है । गौरव को अब जाकर सुकून मिला । दो दिन हॉस्पिटल में रहकर गौरव पंखुड़ी को घर ले आया । उसने कुछ दिन की छूटी ले ली थी और दिन रात बिना माथे पर  एक शिकन के उसका ख्याल रखता । पंखुड़ी को तो विश्वाश ही नही होता था ऐसा हमसफ़र पाकर अपनी किस्मत पर। 
एक रात पंखुड़ी गौरव के सीने पर लेटी हुई बोली - मैं एनजीओ खोलना चाहती हु । जिसमे मेरी जैसी लड़कियों को सही राह दिखा सकू । 
गौरव ने खुशी से उसका माथा चूम लिया । पंखुड़ी जब पूरी तरह से ठीक हो गयी तो अपने एनजीओ के काम मे लग गयी । इसी बीच जमना बाई और कमिश्नर के खिलाफ गौरव और आशीष ने सारे सबूत पेश कर दिए । पंखुड़ी का भी बयान लिया गया । उनका गुनाह साबित होने पर दोनो को उम्र कैद की सजा सुनाई । साथ ही गौरव और आशीष को ऑर्डर दिया गया इस केश को और गहराई से छान बीन करने का । क्यूंकि अभी भी शक था कि कोई और भी बड़े लोग इसमे शामिल हो सकते है । 
गौरव और आशीष अपने काम पर लग गए । पूछ ताछ के बहाने गौरव ने कमिश्नर की हड्डी पसली तोड़कर पंखुड़ी का भी बदला ले लिया था । 
इधर पंखुड़ी का बैकग्राउंड जानकर कोई उसका साथ नही दे रहा था पर उसने हार नही मानी इंटरनेट के जरिये , लोगों से फेस टू फेस मिलकर , इवेंट ऑर्गेनाइज करवाकर वो अपनी जैसी लड़कियों के लिए आवाज उठाती रही । उसके साथ दीया और वाणी भी शामिल हो गए । कठिनाइयां तो बहुत आई लेकिन गौरव का हाथ पकड़ पंखुड़ी हर रास्ता पार करती गयी । समाज ने ना जाने कैसे कैसे ताने दिए उसे , पुरूषों से ज्यादा तो औरतों के कड़वे शब्दों के घूंट पीने पड़े उसको । जिसके जी मे आता उन गंदे गंदे नामो से नवाज जाता । पंखुड़ी सबका मजबूती से सामना करती लेकिन घर की चार दिवारी में गौरव के सीने में दुबककर बहुत रोती । पर अगले दिन एक नई ऊर्जा के साथ सबका सामना करती । धीरे - धीरे पंखुड़ी अपने मकसद में कामयाब होने लगीं थी । उसके एनजीओ से एक एक करके ना जाने कितनी ही महिलाएं और पुरुष जुड़े । कहते है ना मैं अकेला चला था लोग जुड़ते गए कारवाँ बनता गया । इस बात को पंखुड़ी ने सही साबित किया । उसने अपने एनजीओ के साथ मिलकर कितने ही गैर कानूनी कोठे बन्द करवाए । कोठे पर काम करने वाली लड़कियों के लिए शिक्षा और रोजगार का अभियान चलाया । उसने अपनी जैसी ना जाने कितनी ही लड़कियों का भविष्य सँवारा । दिन , महीने , साल गुजरे और देखते ही देखते पंखुड़ी 19 साल की हो गयी थी । और इन तीन सालों में एक नामी समाज सेविका बन गयी थी । साथ ही उसका और गौरव का प्यार परवान चढ़ रहा था पर गौरव ने अभी तक उससे तन की दूरी बनाई हुई थी । इसी के साथ पंखुड़ी पढ़ने लिखने में बहुत तेज हो गयी थी । हिंदी बहुत शानदार बोलती तो वंही इंग्लिश में खुद गौरव उसके सामने अटक जाता । मेथ्स और कम्प्यूटर में तो उसका कोई हाथ ही नही पकड़ सकता था । उसने दो चार भाषा और भी सीखी साथ ही इन दिनों संगीत भी सीखना शुरू कर दिया था । 
आज पंखुड़ी को सम्मानित किया जा रहा था । जो लोग उसे गालियों से नवाजते थे वो तारीफों के पुल बांध रहे थे। 
ट्रॉफी लेने के बाद पंखुड़ी ने सबका शुक्रिया अदा किया और सामने चेहरे पर गर्व  के भाव लिए बैठे गौरव को देखकर बोलने लगी :



बिना कहे मेरे दर्द को समझा , मेरी नासमझी को अपनी समझ से समझा , मा सा प्यार दिया , पिता सी सुरक्षित छांव , हमसफ़र तुम इसे हो शब्दों में ना बयां कर पाऊं , पैरों की धूल थी मैं , सर पर तूने सजा दिया , एक बाजारू को तन से नही रूह से लगा लिया। पता नही था किस दलदल में हु , पर तूने मुझे निकालकर नई सम्मान भरी जिंदगी से रूबरू करवा दिया । नही जानती कोनसे पुण्य का फल हो तुम पर अब हर जन्म के लिए सिर्फ मेरे ही हो तुम इसलिए आज तुमसे वादा करती हूं ,अगर तुम साथ हो 
तो मैं जंहा से लड़ जाऊंगी 
तूम जो रूठे तो पल में मर जाऊंगी 
अगर तुम साथ हो 
तो दो धारी तलवार बन हर बुराई काट दिखाउंगी 
तूम जो नही तो जंग लगी कटार सी कोने में सिमट जाऊंगी
अगर तुम साथ हो 
तो आसमान को पँखो से नाप लाऊंगी 
तुम जो चले गए तो धरती के बीचों बीच समा जाऊंगी 
अगर तुम साथ हो 
तो हर जंग फतेह कर आऊंगी
तुम नही तो हारे सिपाही की तरह , कटकर कंही बिखर जाऊंगी !
अगर तुम साथ हो
तो पवित्र प्रेम की मिसाल बनकर सारे जंहा में जगमगाऊंगी ।
तुम जो नही तो आधुनकि दौर में सती होने से ना कतराउंगी 
अगर तुम साथ हो ,,,,,,। अगर तुम साथ हो,,,,,!

माहौल में एक पल के लिए खामोशी छा गयी । गौरव ने नम आंखों से अपनी बांहे फैला दी तो पंखड़ी दौड़कर उसके गले लग गयी । इसी के साथ सब जगह जोर शौर से तालियां गूंज उठी । 

आशीष के परिवार और वाणी दीदी के साथ पंखुड़ी और गौरव  ने आज का दिन सेलिब्रेट किया और रात में आज गौरव खुद पंखुड़ी के करीब आया और जो प्यार पंखुड़ी उससे पिछले 3 सालों में चाहती थी वो आज गौरव ने उस पर खूब लुटाया । पंखुड़ी को तो सब सपने जैसा लग रहा था । उसने तो ये ही मान लिया था कि गौरव उसके करीब इस तरह कभी नही आएगा । पर गौरव ने एक सच्चे मर्द की मिसाल पेश की 16 साल की पंखुड़ी को बीवी जरूर बनाया पर उसे मौका ना समझकर जिम्मेदारी समझी । वो समझता था भले ही पंखुड़ी एक कोठे पर काम करती थी पर अभी शारीरिक सम्बन्ध बनाने की ना ही उसकी उम्र थी ना ही फिजिकल कंडीशन । उसने बिना जल्द बाजी किये पहले पंखुड़ी को आगे बढ़ाना जरूरी समझा साथ ही  पंखुड़ी से सम्बन्ध बनाने के लिए उसकी सही उम्र का इन्तजार किया । दूसरों की तरह वो उसके तन से पहले पूरी तरह मन से जुड़ना चाहता था । ऐसा नही था कि उसका मन नही करता था पंखुड़ी के पास जाने का पर उसने खुद को बहकने से रोका और दुनिया मे एक नई मिसाल कायम की । एक सच्चे मर्द की मिसाल वंही आज पंखुड़ी को भी समझ मे आया तन से प्यार जताने और हवस मिटाने में कितना फर्क होता है । आज तक लोगों ने उस पर हवस शांत की थी पर गौरव से उसे प्यार भरा स्पर्श मिल रहा था ।
पंखुड़ी की जिंदगी में अब कोई खुशी अधूरी नही थी । गुजरते समय के साथ पंखुड़ी का नाम समाज में इज्जत से पेश किया जाने लगा । गौरव और पंखुड़ी के जीवन मे अब हर रोज खुशियां बढ़ती ही जा रही थी । इन खुशियों में चार चांद तब लगे जब पंखुड़ी ने 25 की उम्र में एक प्यारी सी बेटी को जन्म दिया । गौरव के तो खुशी से पांव ही जमीन पर नही टिक रहे थे । दोनों ने एक साथ ही बेटी को गोद मे लिया तो दोनों की ही आंखे नम हो गयी । गौरव ने इस सुंदर से अनमोल तोहफे के लिए पंखुड़ी का माथा चूमकर धन्यवाद कहा क्योंकि  कंहा तो वो अकेला रहता था और कंहा आज उसका परिवार बन चुका था । ये नन्ही परी उनकी जिंदगी में खुशियां ही खुशियां लेकर आई थी । 
और बस फिर इसके बाद पंखुड़ी की खुशियों को किसी की नजर नही लगी । 

समाप्त ।

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"अगर तुम साथ हो " (पंखुड़ी)
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