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हम परदेसी हो गए

Krishna Tripathi

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हम परदेसी हो गए चले थे रोटी की तलाश में कहाँ के थे कहाँ के हो गए हम परदेसी हो गए उलझे इस कदर इस तानेबाने में बेवफा बेमुरव्वत इस जमाने मे मिला किसी हसीन का दामन दामन थाम के सो गए हम परदेसी हो गए चलते चलते इस जिंदगी की शाम हो गई वो बचपन की यादें किसी के नाम हो गई बिछड़े अपने वतन से इस तरह न जाने कहाँ खो गए हम परदेसी हो गए 

hm prdesii ho ge

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