मैं दीप जला के रखती हूँ रातों मे तुम कब आ जाओ मैं फूल बिछा के रखती हूँ जाने किस मोड़ से आ जाओ जाने कैसे मेरी रात कटी बिस्तर की सिलवट से पूछो रोए हम रातों मे कितना मेरी आँखो की लाली से पूछो बेचैनी बढ़ती है दिल की जब याद तेरी आ जाती है आंशू खुद ही बह उठते आँखो मे नमी सी छा जाती है बर्दाश्त नही अब ये दूरी प्रियवर “कृष्णा” तुम आ जाओ दर्शन को तरसे तेरी राधा अब दिल की प्यास बुझा जाओ
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