लबो पर एहसास ए ज़िक्र का इंतज़ार है
आंखों में गहराई का इंतज़ार है
दूर से ही सही पर समझ आता है
की उनके जज्बातो को भी हमारा इंतज़ार है
मन तो हमारा भी व्याकुल है उनसे मिलन का
पर प्रेम की ऋतु का इंतज़ार है
इकरार के लम्हे आना बाकी है
उनके लबो से इजहार का इंतज़ार है
मन विचलित हो रहा उनकी मुस्कान देखकर
शायद उन्हें अपनेपन का इंतज़ार है
क्यों ना पहल हम ही कर दे इश्क़ के इजहार का
की अधूरे रिश्तों को अब पूरा होने का इंतज़ार है ।
Written by - @ ajain_ words