तुम्हें देखते ही ये दिल बेकरार होने लगता हैतेरी चाहत पर मुझे इक़रार होने लगता है
तुम्हें देखते ही ये दिल बेकरार होने लगता हैतेरी चाहत पर मुझे इक़रार होने लगता है
जातीय जनगणना पर एक कविता:जाति-जाति का भेद मिटा,एकता की लहर उठी।जनगणना में सबका नाम,समानता की राह पटी।गिनते थे जो ऊँच-नीच,आज वो भी गिनती में आए।भेदभाव की दीवारें टूटीं,सबको बराबरी का हक पाए।जातियों में
खोद-खोद कर खाइयाँ खोद रहें हैं देश, लूट रहे हैं माल सब बदल-बदल कर भेष, बदल-बदल कर भेष चक्र ऐसा वो चलायें, खुदी हुई खाई की चौड़ाई नित और बढ़ायें। जब ऐसी हो सोच आये कैसे समरसता, कैसे होय सुधार
**जातीय जनगणना: एक सवालजातीय जनगणना आया सवाल, फिर से उठी है एक पुरानी चाल। क्या फिर बंटेगा समाजी आधार, या बदलेगा अब न्याय का सार?गिनती में जाति का क्या काम,
जाति जनगणना भारत में एक महत्वपूर्ण मुद्दा है, जिसे समाज, राजनीति और अर्थव्यवस्था से जुड़े कई पहलुओं में समझा और विश्लेषण किया जा सकता है। जाति जनगणना का उद्देश्य विभिन्न जातियों की सामाजिक, आर्थिक और