निन्दक नियरे राखियो, रखियो दूर कुसँग, एक निखारत रंगत तो, दूजा करत बदरंग। (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"
क्या हिन्दू क्या सिख, क्या वैष्णव, ब्राह्मण, शैव और देवी के उपासक, इस दिन का सभी के लिए विशेष महत्त्व है। हिन्दू धर्म की सभी मान्यताओं के लिए इस दिन श्रद्धा और विश्वास से भर जाने के लि
धूप कहीं उल्लास की, कहीं दुखोँ की शाम, जीवन कहीं पे नारकीय, कहीं पे चारो धाम। (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"
दिखे साथ में दौड़ता, ले हाथों में हाथ, दो दिन में जाय छूट ये, किस मतलब का साथ। (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"
क्या जीवन का अर्थ है, क्या रिश्तों का मोल, मत धूल पकड़ना हाथ में, छोड़ रतन अनमोल। (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"
मिल जाए सो व्यर्थ है, नहीं मिला वो ध्यान, गँवा फ़सल संतोष की, नहीं सुखी इंसान। (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"
जोड़-तोड़ बाजीगरी, है इनकी सबमें होड़, प्रेम और सदभावना, क्यों बैठे सब छोड़। (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"
साँसों को जो कैद रखे, है ये बस पिंजड़ा एक, ऐसा दृष्टिकोण रख, फिर तू जीवन देख। (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"
विष के सम निंदा जानिए, और ईर्ष्या अभिशाप, जैसे सुलगता कोयला, होते-होते राख़। (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"
कसे कभी रस्सी बहुत, फिर ढीली पड़ जाए, ये जीवन की यात्रा, चलत अनवरत जाए। (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"
धरती भरी असुर राक्षस, करें अनैतिक काम, पुण्य पसारा इन्हें मारकर, लौटे राजा राम। जब घटा भार धरती का और हुए समाप्त पाप, जगमग जगमग दीप जले, तब भू से आकाश। (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"
दुखिया पाकर हे पदम्, लीजो उसको हाल, मानवता सबसे बड़ी, मन में रखो ख़याल। (c)@नील पदम्
हाथों में सिन्दूर था ये न उन्हें मंज़ूर था कर रहे थे वंदना सब आलता-कुमकुम सजा रक्त की न गंध हो तो उनको क्या आता मज़ा। मृत्यु की देवी का साया उनके सिर पे सवार था पलकें हुईं बोझिल पड़ीं थीं प्यास
दस शीश और आँखें बीस कहे बुराई हो गए तीस, मारे फुफकारे अहंकार के छिद्र नासिका सारे बीस, आखों में नफरत का रक्त मुख मदिरा और मद आसक्त, कर्ण बधिर न सुने सुझाव भाई भी हो जाए रिपु, सिर चढ़ता
अगर आगे कहीं भी जाना है, तो पहला कदम तो बढाना है।
खोद-खोद कर खाइयाँ खोद रहें हैं देश, लूट रहे हैं माल सब बदल-बदल कर भेष, बदल-बदल कर भेष चक्र ऐसा वो चलायें, खुदी हुई खाई की चौड़ाई नित और बढ़ायें। जब ऐसी हो सोच आये कैसे समरसता, कैसे होय सुधार
एक गृहिणी को दे सकें, वो वेतन है अनमोल, कैसे भला लगाइये, सेवा, ममता का मोल । चालीस बरस की चाकरी, चूल्हा बच्चों के चांस, शनै: शनै: रिसते रहे, रिश्ते - जीवन - रोमांस । पति पथिक ब
तेज है, औ वेग है, है गति, संवेग है, अग्रता है, है त्वरण, स्फुरण, तरँग है, ओज रग-रग भरा, मन में उमँग है, कुलाँच भर रहा हृदय, ऊर्जित हर अंग है, जोश की कमी नहीं, होश का भी संग है, हर तरफ बिखेरत
एक पदक से चूकते, चढ़ गई सबको भाँग, सब सोचें कि कैसे लें, इस अवसर को भांज, राजनीति करते हुए, अपने बर्तन चमकायें, कैसे इस मौके पर अपनी बढ़त बनायें, अपनी बढ़त बनाते वो लें जब तक बर्तन माँज, ये सप
है दुनिया ऐसे भागती, समय हो गया तंग, एकाकी जीवन जिया, छूटा यारों का संग। (c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"