आभार पत्र, ज़माने से मिले हर उस चोट के नाम, ज़माने से मिले हर उस दर्द के नाम, बिखरे हुए ख़्वाबों की हर उस किर्चियों के नाम, बुझती हुई हर उस ख़्वाहिशों के दिये के नाम, जिसने मुझे ज़िंदगी को नए नज़रये से देखना सिखाया। इससे पहले कि ज़माने के लिए चुभता शूल बन जाऊँ, क्यों न ऐ दर्द तुझ से इश्क़ कर लिया जाए, इससे पहले कि ज़माने के लिए दर्द ए ज़ख़्म मेरे नासूर बन जाएँ, क्यों न ऐ दर्द हम दोस्त बन जाएँ। आभार व्यक्त करना चाहती हूँ, ज़माने से मिले हर उस दर्द का, जिसने मुझे दुसरों के दर्द को महसूस करना सिखाया, हर उस टूटते बिखरते ख़्वाबों का, जिसने मुझे दुसरों के ख़्वाबों को पूरा करने का रास्ता दिखाया, ख़्वाहिशों की बुझती हुए दिये का, जिसने मुझे सिखाया, किस तरह दुसरों की ख़्वाहिशों का दिया रोशन किया जाए, हर उस झूठे रिश्ते का, जिसने मुझे सच्चे रिश्तों को पहचानना सिखाया, सच्चे रिश्तों का क़दर सिखाया, सच्चे रिश्तों का एहसास देना सिखाया, हर उस झूठे दोस्तों का, जिसने मुझे सच्चा दोस्त बनना सिखाया, सच्ची दोस्ती का एहसास देना सिखाया, हर उस झूठी मुस्कुराहटों का, जिसने मुझ सच्ची मुस्कान देना सिखाया, हर उस झूठे लोगों का जो अपनी बातों से मुकरने में जरा देर नहीं करते, मुझे अपनी बातों पे क़ायम रहना सिखाया, मुझे सच्चा बनना सिखाया, हर उस झूठे प्यार का, जिसने मुझे सच्चा प्यार करना सिखाया, सच्चा प्यार देना सिखाया, आभार व्यक्त करती हूँ, लोगों की चुभन भरी बातों का, जिसने मुझे प्यार से बात करना सिखाया, ज़माने के हर उस भेद- भाव का, जो लोगों को एक अनचाहा दर्द से दो- चार करता है, जिसने मुझे हर भेद- भाव को परे कर, प्यारा सा एहसास देना सिखाया, ज़माने से मिले ठोकरों का, जिसने मुझे सिखाया, ठोकर खा कर गिरने पर भी किस तरह बिना सहारे के उठ खड़ा होना है, ज़माने से मिले दर्द ने सिखाया, किस तरह अपनी ख़ुशियों को भूल के, दुसरों की ख़ुशियों में अपनी खुशी तलाश की जाए, किस तरह अपने आँसुओं को मुस्कुराहट के पीछे छिपाया जाए, आभार व्यक्त करना चाहती हूँ, हर उस झूठी हमदर्दी का, जिसने मुझे सच्चा हमदर्द बनना सिखाया, हर उस काँटे का, जिसने मुझे फूलों सा बनना सिखाया, शुक्रिया ऐ ज़माना तूने मुझे जीना सिखाया, रोते हुए भी हँसना सिखाया। #yqbaba #yqdidi #zamana