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जौरागी से बटवारा

AMIT kr VANSI

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एक जमाने मे गांव के जाने माने बड़े जमींदार कहे जाने वाले नंद चौधरी की दूर - दूर तक बहुत पुछ थी। कोई भी पंचायत और सलाह के लिए लोग पूछा करते थे । नंद चौधरी के एक सगा बड़ा भाई भी थे जिनका नाम किशोर चौधरी था जो सिपाही मे कार्यरत थे, इस लिए घर की सारा जिम्बेदारी नंद चौधरी पे थी। नंद चौधरी के तीन संतान हुए जिसमे दो बेटा मोहन, सोहन और एक बेटी गूंजा थी और किशोर चौधरी के एक संतान हुए जिनका नाम राम था। परिवार बहुत ही खुशाल था जिसे देख आस-परोस के लोग आपने परिवार को दिखा के वैसा बनने को समझाते थे। चारो भाई बहन साथ रहना खाना खेलना मानो चारो एक ही मां के संतान हो और दोनो मां भी सभी को एक समान प्यार देती थी। अब बच्चे कुछ बड़े हो गए थे उन्हे अब शिक्षा अर्जित करना आवश्यक था , चारो बच्चे को एक स्कूल में दाखिला कराया गया। उन चारो मे राम बहुत ही होनहार विद्यार्थी थे जो हमेशा कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करते थे और मोहन एव गूंजा भी पढ़ने मे ठीक ठाक थे जबकि सोहन को पढ़ाई में मन नहीं लगता था । सोहन को अपने पिता के साथ खेती करने में मन लगता था। पिता के मना करने के बाद भी सोहन पढ़ाई छोड़ खेती में पिता के हाथ बटाने चले जाते थे। सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था कि अचानक एक अनहोनी हो गया , एक बार की बात है राम की मां जलावन की ढेर से जलावन निकालने गई तभी अचानक एक सांप आकर काट लिया और उनकी मौत हो गई। राम अपने पिता के नामौजुदगी मे अपनी मां का दाह संस्कार किया और अपने पिता को चिट्ठी लिखकर जल्द आने का आग्रह किया , किशोर को यह खबर सुनते ही मानो पैर तले जमीन खिसक गया, वो वहा से आनन फानन मे छुट्टी लेकर घर पहुचे। घर पहुच कर अपने आंख की आंसु छुपा खुद टूटा हुआ किशोर चौधरी अपने परिवार को हिम्मत दिया और फिर राम को अपने साथ लेकर अपने काम पर लौट आए ताकि यहां राम अपने दुःख को ज्यादा याद न करे। तभी इसी बीच सेना की बहाली भी आ गया, राम को शुरू से ही अपने पिता जैसा बनने का सपना था इस लिए राम अपने करी मेहनत से सफलता प्राप्त कर लिया और सेना मे जुड़कर अपने पिता से दुर दुसरा बटालियन मे चला गया। राम को अपने परिवार की बहुत चिंता रहती थी। राम अकसर अपने चचेरे भाई बहन की पढ़ाई के विषय मे पूछा करते थे लेकिन इस बार उन्होंने लिखा कि अब तो गूंजा शादी लायक हो गई है उसके लिए अच्छा घर परिवार खोजिए। चाचा ने भी हामी भरी चिट्ठी लिखकर लड़का खोजना शुरू किया और फिर अपने भाई और भतीजा को चिट्ठी लिखकर छुट्टी का समय पूछा और उसी समय पर शादी का दिन उतार कर बरी धूम धाम से शादी किया। राम भी अब शादी लायक हो गया था तो नंद चौधरी ने अपने बड़े भाई किशोर से विचार कर अनुमति मांगी और एक अच्छा परिवा देख कर मंजु नाम की दुल्हन से शादी कर दिया। मंजु बहुत ही होनहार थी जिसमे कूट कूट कर गुण भरा था। वे नंद चौधरी और उनकी पत्नी को अपने सास ससुर जैसा मानती थी और मोहन और सोहन को बेटा जैसा लाड-प्यार करती थी। कुछ समय बाद अब बारी थी मोहन की क्युकी अब वो बड़े हो चुके थे और राम का सपना था कि मेरा भाई मोहन गांव में सबसे ज्यादा कक्षा तक पढ़ाई करे जो उन्होने पूरा कर लिया था और शिक्षक की नौकरी भी प्राप्त कर लिया था। अब एक परिवार मे रानी नाम की दुल्हन से मोहन की सदी बड़ी धूम धाम से कराया गया फिर मोहन अपने स्कूल लौट गए। यहां इस घर मे रानी को आते ही घर की दिशा बदल गई, रानी दिखने में सुंदर लेकिन अवगुण से भरी हुई लेकिन अब करे भी तो क्या जब किस्मत मे लिखा था गुठली तो फल कहा से पाए? इस रानी से पूरा परिवार परेशान था। रानी सुबह तब बिस्तर छोड़ती जब मंजु चूल्ला-चौका कर दुसरा काम मे लग जाती तब रानी उठ कर मुंह हाथ धोकर खा लेती बिना ए भी पूछे कि कोई खाया है और फिर कमरा पकड़ लेती । लेकिन जब मोहन स्कूल की छुट्टी मे घर आते तो रानी उसके सामने दिखाने के लिए पूरा घर का काम खुद पे उठा लेती, ए सब करतूत देखने के बावजूद भी कोई उसे कुछ नहीं बोलता की अगर घर में इस बात पर हल्ला-चील्ला होगा तो समाज इस परिवार को हंसेगा। ए सब कुछ बात मंजु अपने पति और ससुर से भी नही बताती थी क्युकी वो नही चाहती की परिवार बिखरे । किशोर चौधरी अपने नौकरी पूरा कर घर लौट आए और भाई के साथ खेती-बाड़ी में लग गए। एक दिन एक व्यक्ति जमीन बेचने के शिलशिले में आए दोनो भाई मौजूद थे दोनो ने विचार कर हां कह दिया । नंद चौधरी ने अपने बेटा मोहन के पास चिट्ठी लिखकर कुछ पैसा भेजने को कहा क्युकी आज तक पुरा खर्चा किशोर चौधरी और उनके बेटे राम के पैसा से हो रहा था और नंद चौधरी के बेटा मोहन का शिक्षक बने दो वर्ष से अधिक हो गया था लेकिन आज तक कभी एक भी रुपया नहीं भेजा था और कोई लोग कभी खोजा भी नहीं था ताकि मोटा रकम होगा तो देगा फिर आगे कुछ काम आएगा, आज वो समय आ चुका था लेकिन यहां तो मोहन के पास से आया चिट्ठी मे जवाब बहुत विचित्र था। उसने लिखा था कि मै अपने कमाया हुआ एक आना भी किसी को नही दूंगा और यहां तक कि आप को भी नही, मै इस रकम से जो भी खरीदूंगा वो अपने नाम पे ताकि बटवारा हो तो बराबरी का हिस्सा का हकदार सोहन भी नही हो। नंद चौधरी यह पढ़ते हुए अपने आंसु से चिट्ठी का पन्ना भींगा लिया और आगे लिखा शब्द पढ़ने का होश खोकर फार कर फेक दिया और खुद को कोसते हुए उस ठिठुरती ठंड में जाकर खलियान में बने झोपड़ी मे लेटकर सोचने लगा की मैने ऐसा औलाद को जन्म ही क्यू दिया, राम मेरा अपना बेटा नही होकर भी मोहन से अधिक प्यार-आदर दिया और अपने पिता के साथ-साथ अपना सारा तन्खाह निस्वार्थ भाव से भेजता रहा , उन लोग का किया घर-पारीवार और सारा जमीन-जत्था मेरे नाम पर ही है और आज तक एक पैसा का हिसाब तक नहीं खोजा , मोहन भी आज जो कुछ है वो भी उन लोगो की कृपा से है लेकिन इसके वावजूद भी उसके अंदर ऐसा विचार है। यह सब सोचते-सोचते बहुत रात हो गया और उनको पता भी नही चला, अभी तक घर पर परिवार इंतजार कर रहे थे। किशोर चौधरी को रहा न गया फिर उसने कंबल ओढ़े एक हाथ मे टॉर्च लेकर भाई की तलास मे निकल पड़े , वो कराके की ठंड मे अपने सारे खेत-खलियान मे ढूंढते हुए अपने भाई के पास पहुंच गए, वहा देखा कि भाई बिना नींद के लेटा हुआ है। क्या हुआ है की यहां इस हाल मे लेटे हो कुछ हुआ है क्या चलो घर सब इंतजार कर रहे है। 

jauragi se batvara

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