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एक मां की सिन्दूर

AMIT kr VANSI

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कोई ऐसा शब्द जो मन को पुरा झगझोर देता है लेकिन सच को झुटलाया नही जा सकता है। ऐसा ही एक शब्द एक बच्ची अपनी मां से अंधेरी रात के करीब दस बजे किया जब उनकी मां का आंख लग रहा था और ईशा खेलने के मुंड मे थी।तभी ईशा के मुख से एक सवाल निकला जो सुन कर उसकी मां की नींद उड़ गई और पुरा शरीर कांप उठा । मां आप औरो की मां जैसा लाल सिंदूर अपने ललाट पर क्यो नही लगाती ? अचानक मां को ए सबद सुनकर ऐसा लगा मानो शरीर में करेंट लग गई फिर भी अनसुनी करने का नाटक किया और कहा बहुत रात हो गई है अभी सो जाओ मुझे बहुत नींद आ रही है और करवट बदल कर आंख बंद कर लिया। ईशा फिर बोली बताओ न मां मुझे जानना है मुझे बहुत अच्छा लगता है अनलोगो को देख कर तुम क्यों नहीं लगाती? मां को पुरानी बीती सारी बातें मन को अंदर ही अंदर झागझोर रहा था उन्हें ईशान के साथ बिताई पल बहुत याद आने लगी और आंख भर आई गला सूखने लगा और भीतर ही भीतर कलेजा फट रहा था लेकिन अपनी बेटी को कैसे बताए । पिता के उसके जन्म से पहले ही जाने के समय जब ईशा आठ महीने की गर्भ मे थी तब से आज सात वर्ष की हो गई तब तक मै उसे मां और पिता दोनो का प्यार देती रही कोई कमी नही होने दिया फिर आखिर आज उसके अंदर ए सवाल क्यू आया। तभी ईशा उठ कर अपने मां के तरफ आ गई जिधर उसकी मां मुंह फेर कर सोई थी, तभी देखा कि मां आंख बंद कर रो रही है और उनका तकिया भींग गई थी। तभी ईशा यह देख भरे स्वर में कहा क्या हुआ मां क्यू रो रही हो? क्या हुआ? कुछ हो रहा है? बताओ न मां तभी मां बोली बताओ क्या मै जैसी हु वैसी अच्छी नहीं लगती? ईशा बोली लगती हो मां लेकिन कहने का मतलब था कि तुम इतनी खुबसूरत स्त्री हो और अगर सिंदूर लगाओ तो तुम्हारी सुंदरता और बढ़ जाती जैसे औरोकी मां लगती है। मां बोली ठीक है मै आज तुम्हे बताती हु लेकिन ध्यान से सुनना और समझना । एक समय मै भी तुम्हारे जैसा छोटी गुड़िया थी जिसे अपने मां - बाप का बहुत लाड प्यार था। पिता शिक्षक थे और मां गृहणी थी। जब मै तुम्हारे पापा से मिली तब मानो ऐसा लगा कि मेरी जीवन में और अधिक प्रकाश आ गया हो। ओ हमेशा मेरी ख्याल रखते थे और कोई चीज की कमी महसूस नहीं होने देते थे। एक समय आया जब घर में मेरी शादी की बात चलने लगी तब मुझे ऐसा लगा कि कुछ अनमोल चीज खोने जा रही हु। कोई नहीं जानते थे कि मै तुम्हारे पापा से शादी करना चाहती हू । 

ek man ki sindur

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