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मैं कहाँ गज़ल लिखता हूँ ???

26 जून 2017

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मैंने कब कहा मैं गज़ल लिखता हूँ ?

मैं तो जो भी जीता हूँ , बस वही हर पल लिखता हूँ !

आज फिर शहीदों की गर्दन में घोंप कर कलम,

सफ़ेद (बर्फ) चादर में दबी, उनकी वो बेकल लिखता हूँ !

मैंने कब कहा मैं गज़ल लिखता हूँ ?


हाँ - हाँ ...कल फिर बलात्कार हुआ मेरा वतन !

और मैं यहाँ,

पठानकोट के स्तनों को चूसता ज़िहादी दखल लिखता हूँ !

मैंने कब कहा मैं गज़ल लिखता हूँ ?


जनवरी की सर्द रात के बाद के सवेरे का,

बेज़ान ठण्ड से फुटपाथ पर ऐंठा बदन !

मैं कब ?...उसकी स्याह रात के बाद का सुनहरा कल लिखता हूँ !

मैंने कब कहा मैं गज़ल लिखता हूँ ?


मैंने कब ?,..

शब्दावलियों की,

नक्काशियों के ताजमहल सु-सज्जित किए???

मैं तो भूख की आँख को,

दूर से रोटी दिखा,

फिर उसका भाव-विह्वल लिखता हूँ !

मैंने कब कहा मैं गज़ल लिखता हूँ ?


मेरी जात क्या ?

औकात क्या ?

मैं तो काँधे पे गमछा टाँगे,

पसीने से सीली बीड़ी के कश के धुँओं से,

हवाओं में बादशाहों के स्वप्नों के महल लिखता हूँ !

मैंने कब कहा मैं गज़ल लिखता हूँ ?


मैंने कब कहा मैं गज़ल लिखता हूँ ???....


- मनोज कुमार खँसली "अन्वेष"

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