अजन्मा रुदन
(बालिका भ्रूण हत्या)
वर्तमान आधुनिक भारतीय समाज में घर - घर में भीतर तक व्याप्त बेटे प्राप्त करने की चाह में होती बालिकाओं की निर्मम भ्रूण हत्याओं से पसीज कवि हृदय (यदि आप रचना को पढ़ने के उपरांत मुझे कवि कहलाने का आशीर्वाद प्रदान करें तो???) भाव विह्वल हो रो पड़ता है और कहता है :-
अबूझ पहेली थी,
निस्सहाय अकेली थी,
सोच के द्वंद को भी न समझ पाई होगी,
उसने जब चीर कर उदर कैंची चलाई होगी,
जब अम्माँ , बाबा का ही न उसे बोध होगा,
तब अनुमति से जनक की काट- काट कर श्वान (डॉग) को खिला देने पर क्या क्रोध होगा !!! ???!!!
फिर सोचता हूँ क्या कटने पर दर्द से न चींखी होगी !!! ???!!!
ये सोच कर भी क्या माँ कि करुणा नहीं सीली होगी !!! ???!!!
कराह कर , तड़प कर अवर्णनीय वेदना मे उसने किसको पुकारा होगा !!! ???!!!
ईश्वर के बोध से अबोध को किसका सहारा होगा !!! ???!!!
असहनीय पीड़ा मे रक़्त से लथपथ , उस नव - सृजन को जिस भगवान (डॉक्टर) ने कोख़ से छीना होगा,
नहीं जानता कोई शब्द मेरे शब्दकोष का , उसके कृत्य को कैसे दर्शित करूँ ???...
वो कितना निर्मम , कितना कमीना होगा !!! ???!!!
ये सोच कर ही अक्लांत हूँ वह अजन्मा रुदन जाने कैसा होगा !!! ???!!!
कट - कट कर माँस का लोथड़ा, छटपटाकर जब कभी,... इधर कभी उधर पलटा होगा !!!? ??!!!
क्या होने पर बीच से दो फाड़ , अनिर्मित आँखों से कराहकर अश्रू न गिरे होंगे!!! ???!!!
या कटने पे श्वास नलिका के, दम घुटने से उसके प्राण हरे होंगे!!!? ??!!!
उस अजन्मी ने छिलने पर, चिरने पर, कटने पर, हृदय के कष्ट से तड़पने पर,
कोई चीत्कार , कोई चींख ,कोई आह, कोई कराह , कोई गुहार.....
मसोसकर , तड़पकर, बेबसी से तो लगाई होगी!!!???!!!
फिर सोचता हूँ ...बाद गुनाह के ...इंसानियत को रातों को कैसे नींद आई होगी !!!? ??!!!
रातों को कैसे नींद आई होगी !!!? ??!!!
(मनोज कुमार खँसली " अन्वेष" )