अन्वेष .....किस्सा-दास्ताँ हूँ ,... किस्सागोई का मज़ा लेता हूँ |
जो भी ज़ख़्म दिखते हैं , उन्हें अपनी रचना में सजा लेता हूँ |
पहले ख़ुद खोदता हूँ कब्र अपनी, फिर खुद को ही काँधे पे उठा लेता हूँ |
कमाल की लोच है मेरी रीढ़ की हड्डी में ,
जहाँ भी,... जब भी,...जैसे भी ,....
इसे हाक़िम (मालिक) की मानिन्द घुमा लेता हूँ |
किस्सा-दास्ताँ हूँ,... किस्सागोई का मज़ा लेता हूँ |
जो भी ज़ख़्म दिखते हैं, उन्हें अपनी रचना में सजा लेता हूँ |
वो भागता रहा जीवन का बोझ लिए दसों मील उड़ीसा में * 1
पगला नहीं जानता !!! ... रियो विज्ञ (जानकार) बैठें हैं ब्राज़ील में,*2
तीन सौ पैंसठ दिन आसमाँ की छत
और दो सौ पैंसठ दिनों के रोज़े को,
एक ट्वन्टी-ट्वन्टी (क्रिकेट) की जीत में,
संग प्याज- नमक,
रुपए पच्चीस के पव्वे में भुला लेता हूँ |
किस्सा-दास्ताँ हूँ,... किस्सागोई का मज़ा लेता हूँ |
जो भी ज़ख़्म दिखते हैं, उन्हें अपनी रचना में सज़ा लेता हूँ |
सावन के झूलों में वो बात कहाँ ???
जो कइयों बरस बाद,
गँगा माई के घर आई में है !!! *3
गर्भ से छूटने का शिफ़ा,
बरसते सावन की बरखा से उफनती,
गँगा की लहरों में धुआ लेता हूँ |
किस्सा-दास्ताँ हूँ,...किस्सागोई का मज़ा लेता हूँ|
जो भी ज़ख़्म दिखते हैं,...उन्हें अपनी रचना में सज़ा लेता हूँ |
कभी बहलाकर - कभी फुसलाकर,
सदियों से दबाता आ रहा हूँ उनकी दो जून की हसरतें,
हरबार दिखा!!!... बड़े रंगीं सब्ज़-बाग़!!!
आज भी,...अब भी,...जब भी,...उठता सवाल भूख का ???
उसे मस्ज़िद की गर्द में!!! ,...मन्दिर की अर्ज़ में!!!, ...
लाशों से पटा लेता हूँ !!!???!!!...
किस्सा-दास्ताँ हूँ,...किस्सागोई का मज़ा लेता हूँ|
जो भी ज़ख़्म दिखते हैं...उन्हें अपनी रचना में सज़ा लेता हूँ!!! ???!!! ...
(मनोज कुमार खँसली " अन्वेष")
*1 उड़ीसा में एक शख्स ने अपनी मृत पत्नी को अन्तिम सँस्कार हेतु काँधे पे लिए मीलों पैदल तय किए!!!???
* 2 रियो (ब्राज़ील) में हुए ओलम्पिक के संदर्भ में, जहां खेलों के बड़े -बड़े विद्वान थे जबकि यहाँ भारत में पैदल भागते कन्धों में जीवन दम तोड़ रहा था!!!???
*3 अभी हाल ही में आई बाढ़ के उपरांत माननीय श्री लालूप्रसाद यादव जी का बयान आया , ये बाढ़ नहीं बल्कि स्वयं साक्षात् गँगा मैया आपके घरों में दर्शन देने आई है!!!???....और ये आप सबका सौभाग्य है!!!???!!!