मै ज़ोया... पसंदीदा कार्य - लिखना
निःशुल्क
वक़्त लगता है, रात को सुबह होने मे. तपती धूप से साँझ होने मे, इक कली को पुष्प होने मे, धरती पर गिरी बूँद को फिर से रौशन होने मे, थोड़ा वक़्त तो ज़रूर लगता है. ज़ब अस्मा तलक हो मंजिल, तब अंजाम तक पहुं