ज़ब मेरा बचपन था और मै बुआ के गांव व घर में थी तब मैंने ग्रामीण जीवन को बहुत निकट से देखा क्योंकि मै उस ग्रामीण जीवन का हिस्सा थी मैंने वो ग्रामीण जीवन जिया और आज में तब के जीवन से जो परिवर्तन हुए है वो कैसे है ये सब मै बताउंगी.
बुआ के घर मै पहुंचीb अलग जीवन था लेकिन वो जीवन प्राकृतिक था. एक बार मैंने सोनिया जी को ग्रामीण जीवन पर कोई पत्र लिखा था कि सादगी पूर्ण ग्रामीण जीवन होना चाहिए ऐसा हमारा जीवन ग्रामीणों का होता था तो उन्होंने तब स्टेटमेंट दिया था कि आदिम और जंगली जीवन.
मुझे तब लगा था हमारे देश के शासक नहीं समझ रहें है कि देश का और गांव के भारत को क्या दिशा दी जाये यंही पर सब गलती हो रही है.देश के गांव और शहर दो अलग कल्चर होते है परिवेश भी भिन्न होते है तब हम दोनों के लिए एक जैसी प्लान क्यों करते है?
गांव को गांव रखते हुए वंहा शिक्षा और स्वास्थ्य की जरूरत को पूरा किया जाना चाहिए. और यंहा पर सरकार असफल हुईं है.
हमारा प्रशासन तंत्र या सिस्टम शहर केंद्रीत है गांव वालों को हर काम के लिए शहर दौड़ना पड़ता है. गांव के सरपंच और सचिव सब ग्रामीणों की उपेक्षा करते है और जितना बनता है ग्रामीणों को मुर्ख बनाते है. गांव की समस्या को सरपंच ही नहीं समझेंगे और अपने पद से नोट छापेगे तो कैसे गांव आगे बढ़ेगे.
अभी मै अपने मायके के गांव का हाल बताती हूँ जंहा का सरपंच बड़ी बड़ी मोटी सोने की चैन पहनता है इस तरह के दिखाओ का बहिष्कार होना चाहिए. एक सरपंच का क्या काम होता है गांव की तरक्की करना ना कि खुद को सोने की चैन पहनाना.
इसके अलावा उस सरपंच को इतना नहीं मालूम कि गांव का जो एकमात्र तालाब है वंही तो मवेशियों और गौ -धन के लिए पानी पीने का स्त्रोत है उसे भी यदि छीन लेंगे तो जानवर कंहा जायेंगे पानी पीने. इस कम अक्ल सरपंच ने बजट में अपना हिस्सा छाँटने के लिए सचिव व बाबू के साथ मिलकर प्लान किया कि तालाब पर एक शॉपिंग काम्प्लेक्स बनाया जाये.
इस शॉपिंग काम्प्लेक्स बनने पर उन्हें कमीशन खाने मिलता लेकिन जानवरों का जो तालाब था वो तो कम हो जाता. जानवर तब कंहा पानी पीते. जरूर इस प्रोजेक्ट में सरपंच ने BDO और तकसीलदार को भी अप्रूवल का पैसा दिया होगा वरना तालाब पर इस तरह से काम्प्लेक्स नहीं बनाने जाता. अंततः मुझे लिखना पड़ा राष्ट्रपति महोदय को तब जाकर तहसीलदार ने वो निर्माण रुकवाया लेकिन अभी भी तालाब में मवेशियों के लिए पानी नहीं बचता. पंचायत सरपंच सारा पानी पम्प से अपने खेती में सिंचाई को सोख लेता है और मवेशी प्यासे लौटते है. लगता है इस पर लिखना होगा लेकिन गांव की वर्तमान स्थिति पर कोई मुझे बता नहीं रहा है कि वंहा क्या हालात है?
इसी तरह मुझे अपने बचपन के गांव हट्टा जाने पर दिल को धक्का देने वाला दृश्य देखने मिला. ज़ब मैंने देखी कि जो अमराई थी जिसकी छाँव में बाजार लगता था अब बाजार वंहा नहीं लग रहा क्योंकि हट्टा के बाड़े या जमींदार ने अमराई पर अधिकार जताकर सार्वजनिक बाजार लगाने से मना कर दिया. इससे सबसे ज्यादा मुश्किल बैलों को आई क्योंकि बैल बाजार अब खुले आसमान के नीचे लगता है और जानवरों को धुप में तपना होता है ये बेहद अमानवीय स्थिति है. आज की ये ह्रदयहीनता है संवेदनशुन्यता है कि लोग बैलों और गौवों के लिए नहीं सिर्फ अपने लिए सोचते है. गांव के किसान कुछ बोलने की हालत में आज भी नहीं है. वो कुछ आवाज नहीं उठा पाते है और उनकी बात पर कोई ध्यान नहीं देता है.
राजनीती मानव के हितों पर पशुओं से कोई अच्छा बर्ताव नहीं करता.
मै अपने बचपन के हट्टा गांव की याद करती हूँ तो लगता है वो सुनहरा दौर था. तब समाज में बहुत सदभाव था. मुझे याद है तब हरिजनों करे मन में इतना विद्वेष नहीं भरा गया था. और सभी मिलकर रहते थे. उनके दिल मिले हुए थे. इतनी ज्यादा राजनीती तब नहीं थी और आपस में आज की तरह इतनी कटुता नहीं दिखती थी.
मुझे याद है ज़ब कन्हैया का त्यौहार आता था जिसे जन्माष्टमी कहते है तो उसे हरिजन या महार समाज द्वारा बड़ी श्रद्धा और भावपूर्ण तरिके से मनाया जाता था.
Vo हरिजन समाज तब कन्हैया को बहुत ही श्रद्धा से बिठालते थे और मनाते थे. रात भर जागरण होता उपवास रहते थे और अगले दिन ज़ब कन्हैया सिराने जाते तो सभी रोते जाते थे उन्हें कन्हैया से बिछड़ने का दुख होता था.
लेकिन धीरे -धीरे समाज में विद्वेष की भावना पनप गईं. आपस में भेदभाव के बीज बोये गए और आज हरिजन समाज खुद को हरिजन नहीं कहना पसंद करता है. उन्होंने अम्बेडकर के विचारों पर चलकर हिन्दू धर्म से जुड़े रीती -रिवाजो से किनारा कर लिया है और वो अब पूरी तरह से हिन्दू विरोधी हो गए है. बाबा साहेब अम्बेडकर की किताबों में हिन्दू विरोधी तमाम बातें दी है हिन्दू धर्म और देवी -देवताओं पर जो टिप्पणी बाबा साहेब अम्बेडकर ने की है वोअसहिष्णुता की मिसाल है. ये हमारे देश में ही हो सकता है कि जिसे हिंदुस्तान ने संविधान निर्माता बनाया उसने हिन्दू धर्म पर बहुत ही कटु टिप्पणी कर विद्वेष फैलाया है और समूचे दलित समाज को हिन्दूओ के खिलाफ भड़काया है. ये अच्छी बात है कि हिन्दू कभी अपने विरुद्ध हो रहे षड्यंत्र पर ध्यान नहीं देते और देश में सदभाव का माहौल बनाये रखते है.
ये हिन्दू समाज ही है जो तमाम दरगाहो और मजारों पर जाता रहा है जबकि उन जगहों पर किताबों में हिन्दू धर्म के खिलाफ लिखा जाता है. मूर्तियों को तोड़नरे की बात खुलकर लिखी जाती रही है. पर हिन्दू कभी कटु नहीं हुए और साम्प्रदायिक सदभाव बनाये रखने की जिम्मेदारी वहन करते रहें.
हमारे बचपन के वक़्त भी साम्प्रदायिक सदभाव था हिन्दू हमेशा की तरह उदार धर्म था हिन्दू कटटर नहीं थे हालांकि गौ -वध की इजाजत इंदिरा गाँधी के दौर में दे दी गईं थी पर आज की तरह हिन्दू धर्म मांसाहार नहीं करता था. आगे चलकर मांसाहार को बढ़ाने के प्रयास किये गए और ऐसी सरकारी नीतियाँ बनाई गईं जिसमें गौ-वंश को काटने पर सब्सिडी दी जाने लगी बड़े शहरों में यांत्रिक बुचड़खाने बनाये गये और अब पशु -धन को मशीनों से गाजर -मूली की तरह काटे जाने लगा. देश का वातावरण अब तीव्र होने लगा. राजनीती ऐसी होने लगी कि मांसाहार बड़ा धंधा बनकर उभरा.
यंही से देश एक बड़े षड्यंत्र में उलझ गया जिसे आज हिन्दू समझ पाए है. हुआ ये कि आजादी के वक़्त कुछ ऐसी राजनीती चली गईं जिसमें हिन्दूओ को दबाने की चाल चली गईं कई तरह के समझौते हुए और क़ानून बने. विभाजन भी कुछ ऐसे तरिके से किया गया कि दंगे भड़काये गए और हिन्दू आबादी को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा.
तब दंगो में हिन्दू औरतों का सामूहिक बलात्कार हुआ उनके नग्न जुलुस निकाले गए और कितनी ही जगह पर हिन्दू औरतों और बालिकाओं का कैद करके रखा गया था जंहा 24घंटे उनका यौन -शोषण वो लोग करते थे और ऐसी कितनी ही बालिकाएं तब सदमे और दुख से पागल हो गईं थी.
ये विभाजन की त्रासदी इतनी गंभीर थी ऐसी थी कि भारतीय जनमानस पर इस जल्लाद अत्याचार का बड़ा स्थाई प्रभाव पड़ा. पहले ही हिंदुस्तान की जनता ने 900ईसवी से आक्रमण के अत्याचार झेले थे जिसमें मुल्क की बेगुनाह आबादी को लूटा जाता, मारा जाता था उन्हें गुलाम बनाकर सेक्स slave बनाया जाता था. बच्चों को गुलाम के रूप में बेच दिया जाता था.
भारतीय जनता ने अपने राजाओं को विदेशियों से संघर्ष में मारे जाते हुए देखा था.उस वक़्त ज़ब विदेशी आक्रमणकारी आते थे राजा लड़ते और मारे जाते थे जनता जंगलों में जाकर छिप कर बचने की कोशिश करते जिन्होंने लड़ाई करनी चाही मारे गए थे. इन सब हादसों का बहुत बुरा प्रभाव पड़ा था भारतीय जनमानस पर.
भारतीय लोग थोड़े डरपोक भी हो गए थे क्योंकि उन्होंने जिन हालातों में अपने आप को survive किया था वो परिस्थिति आसान नहीं थी. भारतीयों ने देखा था कि विदेशी आक्रमणकारी आते और मार -काट मचाते थे तब उन्हें जो बचा सकते थे वो राजा भी अक्सर मारे गए थे. उन्हें बंदी बना लिया गया था. नालंदा को जला दिया गया था और सोमनाथ को लुटा गया था. तब भारतीयों की व्यथा को सुनने वाला कोई नहीं था उनकी अस्मिता दांव पर लगी थी.
कौन था जो उन्हें बचाता उनकी दर्द भरी कहानी सुनता. तब तो मासूम बच्चों और बेटियों को बंदी बनाकर गजनी ले जाया गया था जंहा 2-2दिनार में मासूम बहु -बेटियों को बाजार में नँगा करके बेचा गया था.
विदेशी आक्रमण का इतना उत्पात झेले थे कि अंदर से टूट गए थे. उनकी सम्पत्ति को छिना जाता बस्तीयों को जला दिया जाता था. कितना अत्याचार था जिसकी कंही सुनवाई नहीं थी. वो ही लुटेरे फिर उनके शासक बने तो वो कैसा इंसाफ करते?
एक ओर जल्लाद लुटेरे थे जिन्होंने बेहिसाब लूटा और शर्त रखी कि यदि जान बचानी है तो धर्म बदल दो. तब बहुत बड़ी आबादी ने मजहब अपना लिया था.
देश का जनमानस हिल चुका था भीतर से ढह चुका था ज़ब उनके धर्म को खत्म किया जा रहा था तब तुलसीदास ने रामायण की रचना की थी. हिन्दू ओ को त्राण देने एक आध्यात्मिक सहारा दिया था.
मेरे बचपन के समय में तब लोग धर्म -भीरू थे कांग्रेस तब हिन्दू विरोधी नहीं हुईं थी लेकिन विभाजन ने साबित कर दिया था कि कांग्रेस मुस्लिम लीग आपस में मिले थे और मुस्लिम लीग को ख़ुश करने जो विभाजन हुआ वो हिन्दूओ के उपर जुल्म ढाता हुआ निकला.
देश ने विभाजन त्रासदी झेली हिन्दूओ को बहुत ज्यादा जुल्म सहने से जो झटका लगा उससे वो उबर नहीं सका. मुस्लिम लीग मजहब के लिए थी वंही हिन्दू जिस कांग्रेस पर विश्वास करते थे वो कांग्रेस मुस्लिम लीग का ही एक रूप थी. हिन्दू से लगातार दग़ाबाजी हुईं विभाजन के वक़्त भी और बाद में हिन्दू के दमन के क़ानून बनाकर सामान्य हिन्दू को कमजोर कर दिया गया. संविधान ने दलितों को आरक्षण दिया वंही सामान्य हिन्दूओ के हाथ से उनकी रियासत और रजवाड़े निकल गए.
आज़ाद भारत में अब क़ानून भी दलितों और अल्पसंख्यक के लिए बनने लगे उन्हें कानूनी संरक्षण दिया गया. तमाम नौकरी और संसाधन प्रदान किये गए और हिन्दू के हाथ से सब कुछ छीनता चले गया.
राजे -रजवाड़े चले गए उनपर आश्रित संस्कृति व जीवन खतरे में पड़ गया. गौ -वंश के वध के लिए यांत्रिक बुचड़खाने खोले गए. हिन्दूओ के आय के स्त्रोत अब कम होने लगे वंही गौ -वध से चमड़े के व्यापार और मांस के निर्यात की नई सुविधा जनक नीति बनी. दलित और मुस्लिम मजबूत हुए. देश में हिन्दूओ को रोकने और दबाने वाले कई दलित क़ानून बने. इन कानूनों ने हिन्दू ओ में डर पैदा किया किन्तु कांग्रेस का कोई विकल्प नहीं होने से सब कुछ बदस्तूर चलता रहा और हिन्दू ओ के अधिकारों और संसाधनों पर कुठाराघात होते रहा.
डरा -सहमा हिन्दू समझ ही नहीं पाया कि उससे क्यों छल किया जा रहा है मुस्लिम के लिए मुस्लिम लीग थी दलितों के लिए बाबा साहेब अम्बेडकर ने कई प्रावधान कर दिए थे लेकिन हिन्दू ओ के लिए नहीं थी कोई अलग पार्टी और दल वंही उनके लिए कोई बोलने वाला नहीं था उनके विरुद्ध दबाने वाले क़ानून बन रहे थे. उन्हें नौकरी के लिए ज्यादा मेहनत करनी थी और उन्हें लगातार लज्जित व प्रताड़ित किया जा रहा था कि उन्होंने तो दलितों पर अत्याचार किये आदि. जबकि हिन्दूओ को खंडित और विभाजित करने कई कुत्सित प्रयास किये गए जिसमें अब हिन्दूओ को कई तरह की जातियों में बांटा जाने लगा और सबकुछ आरक्षण आदि से और ज्यादा विभाजन की कोशिश होती गईं.
हिन्दूओ के जाति गत व्यवसाय पर भी बहुत ज्यादा असर हुआ ज़ब उनसे जातिगत पहचान छुपाने की स्थिति निर्मित की गईं तो उनके हाथों से उनके व्यवसाय और काम -धंधे निकलने लगे.
जैसे चमार को चमार कहे तो अच्छा नहीं माना जाने लगा और खुद चमार खुद को रैदास कहने लगे. लेकिन जो उनका जातिगत व्यवसाय था चमड़े का उससे वो विरक्त होते गए. चमड़े का और जूते -चप्पल बनाने का बहुत बढ़ा व्यवसाय बाद में मुस्लिम समाज के हाथ में चले गया जिससे मुस्लिम ज्यादा सम्पन्न हुए उन्हें ज्यादा अनुकूलता मिलने से वो ज्यादा ताकतवर बनके उभरे और कांग्रेस में उनकी तूति बोलने लगी. एक ओर पाकिस्तान में जंहा पर हिन्दू आबादी कम होती गईं वंही भारत में मुस्लिम आबादी बढ़कर 30करोड़ हो गईं जो अब 40करोड़ तक हो सकती है क्योंकि बंगला देश से बहुत ज्यादा मुसलमान आकर ऐसी जगह पर बस गए कि उनकी गणना भी नहीं हो सकी. जैसे रेल की पटरीयों के पास ये समाज बसने लगा और इनकी खासियत ये रही कि ये लोग मिलकर कम जगह में भी कम सुविधा में रहने में कुशल होने से इन्होंने ऐसी जगह पर अपनी बस्ती बसा लिए जंहा कोई नहीं रह सकता था. जानवरों को काटने और मांस बेचने की इनकी विशेषता ने इनका भारत में तेजी से विस्तार कर दिया. फिर कांग्रेस की नीति पूरी तरह से हिन्दू विरोधी होती गईं और मुस्लिम व दलितों को राजनितिक संरक्षण बढ़ते गया. वैसे ही इनकी आबादी देश में बढ़ती गईं और उनके मुकाबले हिन्दू आबादी बहुत कम बड़ी. यदि ये अनुपात 50-50हो गया तो हिन्दुओं के लिए एक और विभाजन जैसे हालत निर्मित हो जायेंगे. कांग्रेस अपने वोट बैंक के लिए इस सच्चाई पर पर्दा डाल रही है लेकिन आज हिन्दू नेताओं को समझना होगा कि कल हिन्दू के लिए बहुत ज्यादा मुसीबत पैदा होने वाली है.
ये बात भी गौर करने वाली है कि हिंदुस्तान पहले सिर्फ हिन्दूओ का था हिंदू और बौद्ध साथ में जैन भी पर कभी किसी को मारने -काटने की जरूरत नहीं पड़ी. किन्तु ज़ब अरब, तुर्क और मंगोल आक्रमण देश में हुए भयानक रक्तपात हुआ और देश में मार -काट तथा लूटपाट का दौर चला. इन सबमें हिन्दूओ और दूसरे भारतीयों पर भीषण अत्याचार हुए. जिससे भारतीयों में भय कर गया. वो विरोध करने की शक्ति खोने लगे थे. और एकजुटता के आभाव में उनकी मुश्किल बढ़ रही थी.
इसी वक़्त में भक्ति काल का दौर चला संतों और साधु -महात्माओ ने हिन्दुओं के साथ खड़े रहकर उन्हें अपने से जुड़े रहने का चिंतन दिया. कई भक्ति कालीन रचनाओं से हिन्दूओ में अपने धर्म के प्रति सम्मान और अपनापन बढ़ा.
कई ऐसे लड़ाके हुए जिन्होंने विदेशी कौमों को चुनौती दी इनमें शिवाजी और गुरु गोविन्द सिँह और सिक्ख गुरु तेगबहादुर थे.
राजस्थान में चित्तौड़ के महाराणा प्रताप ने भूखे रहकर भी अकबर जैसे शक्तिशाली शासक से लोहा लिया और हिन्दूओ को स्वधर्म की शिक्षा दी. अपनी अस्मिता और सम्मान के लिए लड़ने की प्रेरणा प्रदान की.
हिन्दू अपने स्वधर्म को बचाना चाहते थे किन्तु कांग्रेस ने जिन लोगों को तुष्टिकरण का फार्मूला अपनाया था वो हिन्दूओ को हर तरह से दबा देना चाहते थे. विदेशी आक्रमण के समय महमूद गजनवी से लेकर मोहम्मद बिन क़ासिम तक सभी विदेशी आक्रमणकारी यंही कहते थे कि वो हिन्दूस्तान पर आक्रमण करके काफिरों को दीन में लाएंगे साथ ही बूटपरस्ती को खत्म करेंगे. दूसरे धर्म को खत्म कर काफिरों को दीन में लाने का खलीफा से हुक्म पाकर वो तलवार के बल पर इस्लाम का प्रचार -प्रसार करने आये थे जो इस्लाम में आ गए उन्हें छोड़ दिया लेकिन जिन्होंने अपना धर्म छोड़ना मंजूर नहीं किया उन्हें मौत के घाट उतार दिया गया था.
अवसाद ग्रस्त था तब समुचा हिंदुस्तान का समाज क्योंकि बिना किसी गुनाह के उनपर जल्लाद जैसे आक्रमण करने वालों का जुल्म हो रहा था उनकी बस्तियां जलाई जाती, उन्हें मारा जाता, सिर धड़ से अलग किये जाते, बच्चों और औरतों को उठा लिया जाता, बेटियों से सामूहिक बलात्कार किये जाते और उनकी सम्पदा को लूट कर वे आकृन्ता ले जाते ऊंट, घोड़े और हाथी पर लादकर हिंदुस्तान के शहर और गाँवो की दौलत को ले जाया जाता था.
क्यों हो गए थे हम हिंदुस्तान के लोग निरीह और असहाय की उन्हें कोई भी आकर लूटा जाता मारा जाता. इस पर हमें आज गौर करना होगा.
हमें इस कारण की तहकीकात करनी होंगी कि सब जगह हिंदुस्तानी क्यों निशाने पे होते है क्यों उन्हें मारा जाता है और उनके घर जलाये जाते है.
आज भी ये बदस्तूर जारी है भाई चारे के नाम पर हिन्दूओ को मजहब का चारा बनाया गया हिन्दूस्तान इसका उदाहरण है. देश में मुसलमान आबादी तेजी से बढ़ रही है उनमें चार शादी होती है और एक आदमी कई बच्चे पैदा कर लेता है.
59देशों से उन्हें फंडिंग होती है भारत में गुरुकुल हटा दिए गए लेकिन मदरसे चालू रहें.इन्हीं सब बेतुकी नीतियों से देश में मुस्लिम आबादी बढ़ती गईं है. अब जाकर जनसंख्या नियोजन की बात हो रही है लेकिन मुस्लिम लोग कह रहें है कि चाहे कुछ कर लो एक -एक मुसलमान 20-20बच्चे पैदा करेगा. इस तरह के चेलेंज खुलकर योगी को दिए जा रहें है. कांग्रेस ने जो मदरसा नीति लागू की है उससे नित नए आतंकी अड्डे शुरू हो रहें है सरकार है कि बेबस बनी हुईं है.
मेरे बचपन का भारत एक कृषि प्रधान देश था किन्तु अब खेती की जमीन या तो बेची जा रही है प्लाट काटे जा रहें है या यूँ ही पड़ी है उसमें खेती नहीं की जा रही है क्योंकि खेती करना अब घाटे का सौदा बना हुआ है और मजदूरी बहुत महंगी है इससे खेती नहीं कर पा रहें है लोग. देश में यदि खेती नहीं की गईं तो अनाज का संकट पैदा हो जायेगा.
आज जो हालत श्री लंका में है वंही हालत भारत में पैदा हो सकते है देश को खेती पर ध्यान देना होगा. कृषि भूमि को प्लाट बनाकर बेचने की मनोवृति ठीक नहीं है. लोग सड़क किनारे की खेती की जमीन बेचकर सबतरफ अब दुकाने खोल रहें है या फैक्ट्री खड़ी कर रहें है. वरना खेती यदि कम हो गईं तो अनाज की आत्म -निर्भरता खत्म हो जायेगी.
अनाज ही नहीं तिल -दाल -दलहन का उत्पादन जरूरी है आज मूंगफली और अलसी का उत्पादन कम होने से तेल की आत्म -निर्भरता खत्म हो रही है. देश में खेती का रकबा कम होते जा रहा है और अनाज महंगा होते जा रहा है.
आप सोचते होंगे ये कैसी कहानी है बचपन की तो ये मेरे बचपन में देश तब क्या था और अब क्या है इसकी कहानी है और चुंकि हम इस देश में रहते है तो हमारे देश के क्या हालात है उसी पर हमारा जीवन निर्भर करता है.
मेरे बचपन में मैंने देखी कि मेरे माता -पिता और बुआ का प्रमुख व्यवसाय खेती था. शराब का ठेका तो एडिशनल था जो ज़ब चले गया तब भी खेती ही रहा और खेती के साथ पशु -पालन भी था. तब नौकर आसानी से मिल जाते थे तो खेती आसानी से हो जाती थी.
किन्तु अब स्थिति ये है कि हम 7बहन -भाई में से 3ही खेती कर रहें है और खेती भी ठीक से नहीं हो पा रही है. एक भाई ने तो जमीन अब पड़ती छोड़ दिया है खेती की हिम्मत नहीं बची. दुसरा कर रहा है तो बुआर लगा रहा है बस. बता रहा था कि 200-300एकड जमीन पड़ती रह गईं है अब लोग खेती नहीं कर रहें है. खेती पर पशुपालन निर्भर था वो भी अब नहीं हो रहा है. ये सब विषम हालात है चिंताजनक है.
और मेरी इस नॉवेल का इशू भी यंही है कि क्या हमारा जीवन पहले से ज्यादा जटिल हुआ है. पहले अनाज, घी, तेल इतना सस्ता था. हमारे पास ज्यादातर लोगों के पास अपनी खेती और पशुधन था और दूध -दही की नदियां बहती थी. अनाज प्रचूर मात्रा में होता था. हमारे पास बारह माह बहने वाली नदियां थी और हरे -भरे जंगल थे जंहा जंगली जीव विचरण करते थे. हालांकि तब वन -विभाग की पाबंदी नहीं थी लेकिन वाकई में दृश्य बड़े खूबसूरत थे. प्रगति नहीं थी पर प्रकृति आनंद और उल्लास से भरी थी.
तिल -तिलहन और दलहन की खेती होती थी जमीन उर्वर थी अब जमीन बंजर हो रही है क्यों? ये भी मै बताउंगी.
मेरे बचपन का गांव गुप्त कालिन भारत की तरह था लोग कड़ी मेहनत करते थे वर्षा का मौसम खेती का पर्व होता था सब तरफ आनंद था. शिक्षा थी लेकिन ऐसा भी नहीं था कि अब पढ़ लिए तो खेती नहीं कर सकेंगे.
सब कुछ अच्छा था मौसम सुहाने थे बाढ़ आती थी पर आज की तरह विकराल नहीं थी. नदियां उफ़न कर निकल जाती थी. आज बांधों के पानी छोड़े जाने के कारण सारे आसपास के गांव डूब जाते है और ऐसा लगता है जैसे खंड -प्रलय आ गया हो.
साहित्य था जो मर्यादित था जनमानस को संवेदनशील बनाने था आज की तरह विधवंस को बढ़ावा नहीं देता था न ही ऐसी बेशर्मी की फ़िल्में थी.तब की फ़िल्म में मधुर संगीत होता था और सामाजिक व पारावारिक ड्रामा होता था.
सिने कलाकार आदर्श हुआ करते थे जिनसे जनता बेइंतहा प्यार करती थी.उन कलाकारों के उसूल थे और वो गलत विज्ञापन कतई नहीं करते थे.
हम जो किताबें पढ़ते थे वो कुछ सिखाती थी. सामाजिक जीवन का महत्व था. परिवार के लिए लोग दुख सहते थे तब ऐसी ही पारिवारिक मूवी भी बनती थी. जिनके नाम मै बाद में लिखूँगी.
धीरे -धीरे लोग व्यक्तिवादी और आत्म -केंद्रित होते गए. अब खेती को छोड़ कर लोग शहरों में फैक्ट्री में काम करने जाने लगे. इंडस्ट्री का युग आया. कारखानों में वर्कर बने लोग और समाजवाद का बोलबाला हो गया. कम्युनिस्ट का महत्व हुआ मजदूरों के अधिकार के लिए संघर्ष चला और हड़ताल होने लगी. वो आंदोलन का युग था. मजदूरों की मजदूरी बढ़ गईं. अब नौकरों ने घरों में गांव में निजी नौकरी करना बंद कर शहर का रुख किया. कुली और रिक्शे वाले बने. कारखानों के वर्कर बने उनकी यूनियन और कमेटी बनी.
बड़े कॉलेज में शिक्षा पाने का चलन बढ़ा तो लोगों ने अब खेती का काम छोड़ शैक्षणिक नौकरी की तलाश शुरू की. ये नौकरी का युग था. जिन्हें नौकरी मिली उनका समाज में रुतबा बढ़ा और खेती करने वाले को लोग पिछड़ा मानने लगे. इससे लोगों की खेती में रूचि कम हुईं. उत्पादन कम हुआ. लोगों के पास पहले घरों में अनाज और दूध प्रचूर मात्रा में होता था किन्तु अब ज़ब लोगों ने खेती छोड़ दी तो लोगों के पास अनाज नहीं रहा वो बाजार से क्रय करने लगे तो महंगाई बढ़ी. अनाज के साथ दूध, दही व घी भी दुर्लभ हो गए. बाद में स्वेत क्रांति से डेयरी का प्रचलन हुआ और लोगों को दूध -घी उपलब्ध हो सका. अब तो बड़े डेयरी फार्म है. जंहा से लोगों को दूध मिलता है.
ये थोड़े नए हालत थे जो देश में बदलाव की गवाही दे रहें थे. लेकिन इसके साथ ही बढ़े थे बुचड़खाने और मांसाहारी व्यंजनों की दुकाने हाई वे पर खुल रही थी. बॉर रेस्टोरेंट और बिरयानी -कबाब के होटल ये भारतीय समाज का नया फैशन था. लोग मांसाहार को बढ़ावा दे रहें और पसंद कर रहें थे.
एक ओर पशु पालन घट रहा था खेती से नौकरी की तरफ गांव के नौजवानों का रुझान बढ़ा था. वंही दूसरी तरफ गौ हत्या की अनुमति और सब्सिडी मिलने से गौ वंश तेजी से खत्म हो रहा था. देश एक दोराहे पर खड़ा था. कांग्रेस की नीति मुस्लिम, दलित और ईसाई को संरक्षण देने की थी. हिन्दुओ का तेजी से दमन और धर्मान्तरण के प्रयास हो रहें थे. बहुत सारे हिन्दू ईसाई बन रहें थे. ईसाई सभा होती जंहा खुलकर हिन्दूओ पर फब्ती कसते रहें है और वो लोग हिन्दूओ से बिलकुल नहीं डरते है.
यंही त्रासदी रही आज़ाद भारत की कि हिन्दू अपने ही देश में बेगाना हो गया उसकी आवाज उठाने वाला कोई नहीं था कोई पार्टी नहीं थी जबकि दलित और मुस्लिम के लिए कई पार्टी थी.
हिन्दूओ ने आदत डाल ली जुल्म सहन करने की और उन्हें हर तरफ से धिक्कारा और दबाया जाता रहा.
लेकिन सिर्फ सहन करने से बात नहीं बनी हिन्दूओ का खेती से पीछे हटना और गौ -पालन भी पहले की तरह नहीं कर पाने से उनकी आर्थिक हालत कमजोर हुईं वंही गौओं के यांत्रिक बुचड़खाने बढ़ने से मुस्लिम समाज की आर्थिक हालत मजबूत हुईं. गौओं के मांस का निर्यात किया जाने लगा और दुग्ध -उत्पादन में इसी वजह से गिरावट आई.
आजकल ज़ब मोदी जी सत्ता में आये तो सभी को ये उम्मीद जाग गईं कि अब तो गौ -हत्या बंद होंगी. लेकिन ऐसा नहीं हो सका और उनकी कैबिनेट के मंत्री ने कहा -गौ -मांस खाना कोई गलत नहीं है.
मोदी सरकार के मंत्री किरण रिज्जु ने ज़ब कहा कि गौ -मांस खाना गलत नहीं है.
तो मोदी सरकार से जो उम्मीद थी कि गौ -हत्या रुक जायेगी वो सब जाती रही. क्योंकि सुनने में यंहा तक आया कि भाजपा के कई मंत्री के खुद कत्ल -खाने है. कई बीजेपी नेता ही गौ -मांस निर्यात करते है और गौ -मांस के निर्यात में बेहिसाब पैसा छाप रहें है. मेट्रो सिटीज में बड़े बुचड़खाने और मांस की दुकाने बहुत ज्यादा खुलने लगे और कबाब -बिरयानी के रेस्टोरेंट की हाई वे पर बाढ़ आ गईं. ये देश का नया कल्चर बना जंहा जंक फ़ूड का फैशन बढ़ा. साथ में चाइनीश फ़ूड के स्टॉल हर गली -चौराहे में खुल गए. मोमोस और पिज्जा -बर्गर जैसे कंटिनेंटल फ़ूड की मांग बढ़ी. इनके होटल हर शहर की शान बन गए.
अब लोग समोसे खाते तो है पर युवा पेटीस खा रहें है लोग तंदूरी चिकन पसंद कर रहें. ब्रेड, बटर और लस्सी की जगह बीफ खा रहें है. जितना ज्यादा मांसाहार बढ़ रहा है जानवरों से क्रूरता बढ़ रही है. दुकानों में जिन्दा बकरों के मांस काट कर दिखा रहें है. दुबई से विडिओ काल पर गौ माता के थान दिखाकर वो ज़ब हाँ कहता है खरीदने वाले के सामने गौ माता के दूध के थान काट कर दिखाते है.
बछ्हड़ो को दूध नहीं पीने देते तो वो बछड़े कुछ भी खाते है दूध पीने की उम्र में कचरा खाते दिखते है मासूम बछड़े ये परिवर्तन हुआ है. दया की भावना खत्म हो गईं है. बछ्हड़ा होने पर उसे स्कूटी से ले जाकर कसाई को बेच देते है. जानवरो पर कोई दया नहीं करते क्योंकि वो अनाथ मासूम जानवर है उनका कोई नहीं है.
इतनी निर्दयता और बेरहमी हम आज इंसानों में देख रहें है जो विचलित करती है. मेनका गाँधी ने बरसों पहले जानवरो से हो रही दरिंदगी पर काफ़ी काम किया कैसे बुचड़खानों में ले जाई जाने वाली गौओं और भैसों को ट्रकों में ठूंस कर ले जाते है जिनमें वो जख्मी हो जाते है. मेनका जी ने बहुत ही भावुक होकर अपील की थी लेकिन कोई नहीं सुनते सब बदस्तूर जारी है कोई उन जानवरों को नहीं बचा पायेगा. वो असंख्य है ये दुनिया जंगल राज पर चलती है कोई भी कमजोर को नहीं बचाता.
मै आज बारिश के बाद दोपहर को सो गईं और ज़ब उठी तो दिन के 5बज रहें थे. बारिश की फुहारों से मौसम सुहाना था और उपर आसमान में पक्षी उड़ रहें थे एक पक्षी ऊंचाई पर अलग ही आवाज निकाल रहा था. मै यादों में खो गईं ज़ब बचपन में गांव में थी मौसम ऐसा ही होता था घास के मैदानों में गौयें चर रही होती थी और पक्षी सुरीले राग छेड़ कर वातावरण को खुशनुमा बना रहें होते थे. तब घसियारिंनें घास काटकर गटठे सिर पर लादकर बड़े लोगों के यंहा बेचती जो 4आना 8आना मिलता उससे चना -चबेना खरीदती थी. यंही उनका जीवन था प्रकृति से ही जीवन का जुगाड़ हो जाता था.
आज भी ऐसा ही होता पर बहुत कुछ अलग है जीवन तब सरल था आज भी बाहरी लोग जीते है और कई तरह से अत्याचार भी झेलते है. बाहर कई तरह के दरिंदे होते है जो सड़कों पर रहने वालों को तंग करते है. पुलिस बाहरी कंजर लोगों को पकड़ती है क्योंकि ये लोग चोरी करते है और भी कई तरह के अपराध में लिप्त रहते है. पुलिस और अपराधी का गठजोड़ हो जाता है और सुनियोजित अपराध होते है.
लेकिन कोर्ट तक कोई नहीं पहुंच पाता इसलिए ये अपराध होते रहते है जैसे रेल लाइन के आजू -बाजु में बंगला देशियों की झुग्गियां बस गईं है वे लोग रेलो में चढ़कर चोरी -चकारी करते है और पुलिस उन्हें नहीं पकड़ती है.
हम देखते है रेलो में कितने ही किस्म के अपराध होते है और रेलवे यार्ड को अपराध के लिए इस्तेमाल किया जाता है. कोई इस ओर ध्यान नहीं देना चाहता. जिस्म -फरोशी के लिए औरतों व बच्चों को इन यार्ड में रखकर उनका शोषण होता है. रेलवे के धूर्त कर्मचारियों द्वारा कई बार ऐसी भटकी और भागी हुईं बच्चियों का सामूहिक शोषण किया जाता है. जिसकी खबर यदि मीडिया वालों को होती भी है तो वो भी उसी नेक्सस में शामिल हो जाते है. बहुत घिनौना सिस्टम और तंत्र हो जाता है.
बाहरी दुनिया बहुत कठोर होती है जिनका कोई नहीं होता और जो अनाथ हो जाते है उन बच्चों को उठा कर उन्हें सरकारी लोगों के ऐश करने भेजा जाता है.
जो लोग बचा सकते है वो मार दिए जाते है कितने ही बच्चे और युवा खत्म हो जाते है उन्हें फार्म हाउस में कैद करके रखा जाता है जंहा बड़े नेता और अधिकारी आते है जो कि इन बच्चों का शोषण करते है.
जेलों में भी शोषण होता है. पहले पत्रकार स्वयंसेवी होते थे. अब बड़े मिडिया विद्यालय से निकले पत्रकार तो शोषण की तरकीब सीखे होते है. हर चीज का सौदा करते है. गलत कामों की न्यूज़ दबाने के बदले में उन्हें ऐसे ही अनाथ बच्चे सप्लाई किये जाते है और तब निठारी होता है और सच कभी सामने नहीं आता दबा दिया जाता है.
जीवन ग़रीबी में बहुत कठिन होता जा रहा है जानवरों को काटा -मारा जाता है और अनाथों को कितना तड़पाया जाता है उनका शोषण करके उन्हें मारकर उनके अंगों का व्यापार किया जाता है.
गाँवो और जंगलों में जो सरकारी विभाग होते है वंहा पर होते है जल्लाद किस्म के कर्मचारियों को शाम से दारू व मुर्गा -बकरा की आदत होती है और रात में गरीब लड़कियों को उठा कर लाया जाता है आज बहुत अत्याचार होने पर भी पत्रकार इन सबको नहीं दिखाते क्योंकि उन्हें भी इन अनाथ मासूमों से अय्याशी करने दी जाती है.
सरकारी पुनर्वास केंद्रों में और बाल कल्याण के अनाथालय और आश्रय गृहो में भी बच्चों का शोषण होता है. आशाराम जैसों के बाल गृहो में भी मासूमों का शोषण होता था.
इन सबको धर्म की आड़ देकर पर्दा डाला जाता है अक्सर जिन बच्चों का शोषण होता है बाद में उन्हें मारकर उनके अंगों को बेच दिया जाता है.
निठारी में भी ऐसे ही गरीब बच्चों का शोषण हुआ