कहानियों के इस संग्रह में मेरी नई व कुछ तो बेहद पुरानी कहानियां हैं जो समय के अंतराल का अनुभव तो अवश्य कराएंगी मगर मुझे यकीन है कि पाठक उनसे अभिभूत हुए बिना नहीं रहेंगे। कथा संग्रह का शीर्षक मैंने कस्तूरी रखा है क्योंकि कन्या भू्रण हत्या जैसे विषय पर यह कहानी इंदौर के नई दुनिया में प्रकाशित हुई थी और इसने पाठकों का बेहद ध्यान आकर्षित किया था। यह विषय आज भी समीचीन है। इसके अलावा, कई बार ये भी होता है कि लेखक सोचता है कि वो अपनी रचना को इस तरीके से अंत तक लाऐगा। लेकिन मैंने पाया है कि जब लेखन में स्वाभाविक गति हो तो पात्र स्वतंत्र हो जाते हैं और वे लेखक के कहे में नहीं चलते। वे कथा-कहानी के अंत को स्वयं तय करते हैं। तब पात्र इतने मैच्यौर व सहज होते हैं कि आप उनसे मनचाहा नहीं करा सकते। साहेब का रूमाल, कस्तूरी, तुम, बहुत कुछ है बाकी, जवाब या नमक की खदान हो, चांदी का वरक हो कि हैप्पी न्यू ईयर हो, इस संग्रह में सभी मेरी लिखी कुछ ऐसी ही कहानियां हैं- मुझे लगता रहा कि जिनके पात्रों पर मेरा कोई वश नहीं रह गया था। कई बार पाठक कहते हैं कि आपने तो बिल्कुल मेरे मन के भीतरी शब्दों को कागज पर उतार दिया। तो, लेखक का मन भी उस दर्द से राहत पा कर कुछ हल्का हो जाता है। मिसरानी ऐसी ही एक कहानी बन पड़ी है। बाकी कहानियों में भी किसी न किसी तरह, कहीं न कहीं किसी के किसी दर्द को, किसी घटना को, किसी आंतरिक तसल्ली के भावों को उकेरने की कोशिश की है मैंने जो इस कहानी संग्रह के रूप में आपके सामने प्रस्तुत है।
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