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अंगना परबत, देहरी बिदेस

डॉ. आशा चौधरी

1 अध्याय
14 लोगों ने लाइब्रेरी में जोड़ा
27 पाठक
7 मई 2023 को पूर्ण की गई
निःशुल्क

लव मैरिज के पंद्रह सालों बाद परिवार की तीन भाइयों में इकलौती लाड़ली बहन को घर बुलाया गया है क्योंकि पापाजी बीमार हैं। एक भाई विदेश में बस गया है तो बाकी दो भाई देश में ही अस्पताल चलाते हैं। ये मेरा उपन्यास इतने अंतराल में बदल गए रिश्तों के समीकरण हल करने की कोशिशें करने में लिखा गया है जिसमें आपसी रिश्तों के साथ-साथ प्रकृति से हमारे रिश्तों की भी भरपूर चर्चा हुई है। संबंधों के निर्वाह के संदर्भ में बेटी व बेटों के व्यवहार में जो अंतर होता है उसे भी मैंने सहज तौर पर अभिव्यक्त करने का प्रयास किया है। इतने बड़े अंतराल के बाद घर लौटी बहन हर बदलाव पर चकित है ठिठकी हुई सी है। उसे एक बहुत बड़ा निर्णय लेना है यहां। वो क्या और कैसे किन परिस्थितियों में निर्णय लेती है इसे जानने के लिये पूरा उपन्यास तसल्ली से पढ़ें। ये सुधी प्रबुद्ध पाठकों को निराश नहीं करेगा। अपने परिवार की वो इकलौती बेटी अपने जीवन का एक बेहद महत्वपूर्ण निर्णय लेने के पहले देख रही है सब कि- अस्पताल खुद मंझले व छोटे भैया मिलकर ही चलाते थे। कभी जिसे पापाजी के किसी एक पार्टनर ने बैंक व पापाजी के आर्थिक सहयोग से एक छोटे से अस्पताल के रूप में शुरू किया था, वह इस प्रकार घाटे की बलि चढ़ा कि पापाजी व बैंक द्वारा दिया हुआ लोन न चुका पाने की स्थिति में वह अस्पताल स्वयँ पापाजी व प्रेम भैया को ही तब आनन-फानन खरीदना पड़ा था। तब तक बाकी दोनों भैया लोग अपनी-अपनी पढ़ाई-लिखाई से तौबा कर चुके थे। लेकिन उनके सधे हुए बिजनेस नेटवर्क के चलते वही घाटे में जाता अस्पताल मानो चुटकियों में, अस्पताल तो क्या अच्छा खासा फाइव स्टार होटल ही सा रहा था। जो दवाओं की गंध, बीमार व बीमारियों की उपस्थिति न दिखे तो सर्वसुविधायुक्त होटल ही था आलीशान। इसी आलीशान अस्पताल में कि जिसका उद्घाटन कभी स्वयँ पापाजी ने ही किया था आज वे खुद बेसुध हुए पड़े थे ! और भाई लोग ? भाई लोग उससे खुलने से झिझक रहे हैं। उसी अपनी बहन से जिसे कभी चोटी पकड़-पकड़ सताते थे ! एक ही परिवार, एक ही खेत की मिट्टी में कितना फर्क ! कितनी अलग-अलग ताब ! एक पराऐपन की गंध आ समाई थी।  

angana parbat

0.0(9)


Bahut hi samvedansheelta se prastut kia gya hai.


जीवन की एक बड़ी सच्चाई से अपनों के स्वार्थ से रूबरू कराते कथानक और सहज प्रस्तुति के लिए साधुवाद ।


लेखक ने किताब लिखते समय बारीकियों पर जो ध्यान दिया है वह काबिले तारीफ है।


जीवन की सच्चाई यही है।


एक सच और यथार्थ का कहना है हम सभी जानते हैं जीवन में हम बस अहम वहम को छोड़ दें और इंसानियत समझे। बहुत सही परिवारवाद हैं जी

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