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पंचायत वाली वो लड़की

डॉ. आशा चौधरी

1 अध्याय
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5 पाठक
ISBN : 978-93-5970-099-1

किसी लड़की के लिये पंचायत बैठना बेहद बुरा समझा जाता था तब, शायद अभी भी ऐसा ही है। ये घटनाक्रम जो मैं बताने जा रही हूं देश को आजादी मिलने के कुछ समय बाद का है। उत्तरप्रदेश के उस एक गांव के चौधरी जो कि मुखिया भी थे, उनकी इकलौती व सुंदर युवा बेटी के संदर्भ में पंचायत का बार-बार बैठना आज भी मन में अजब से विचार उत्पन्न करता ही है न ? सोचने की बात है कि तब कैसा लगता होगा परिजनों को अपने घर की उस युवा व सुंदर बेटी के बारे में पंचायत का बार-बार बैठाया जाना, वो भी तब कि जब मुखिया खुद उसके पिता ही थे! आश्चर्य होता है कि एक समय हमारे समाज में किसी के भी व्यक्तिगत मामलों में दूसरों की किस तरह अनावश्यक दखलअंदाजी हुआ करती थी! आपको बता दूं कि वे मेरी मां थीं बाद में जो कि अक्सर ऐसे ही अनेक कारणों से शहर में ही रहना पसंद करती थीं। निश्चय ही गांव के अपने किन्हीं उन अनुभवों का ही असर था कि जिसके कारण गांव उन्हें अप्रिय से ही हो आए थे। पुस्तक में प्रसंग व स्थितियों के अनुरूप कुछ नाटकीय परिवर्तन किये गए हैं। ये पुस्तक मेरे अपनों के व्यक्तिगत पारिवारिक अनुभवों पर आधारित है इसका किसी अन्य से कोई लेना-देना नहीं है।  

panchayat wali wo ladki

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