मैंने देखा है कि अनेक बार मंगल व शनि के बारे में अनेक प्रकार से, अनेक कारणों से जनमानस को डराया जाता रहा है। मैं प्रायः लोगों को इन दोनों ग्रहों से भयभीत होते देखती आई हूं जबकि ये दोनों ग्रह इतने डरावने व नुकसानकारी भी नहीं कि जितने बताए जाते हैं। इसी डर को दूर करने में सहायक होगी मेरी ये पुस्तक जो कि इन दोनों ग्रहों के फलों के बारे में विस्तार से समझाने का कार्य करने जा रही है। इस पुस्तक में विवाह के बारे में आवश्यक ज्योतिषीय चर्चा की गई है। विशेष रूप से विवाह के संदर्भ में मंगल को ले कर जनमानस में व्याप्त भय का निराकरण करने की कोशिश मैने की है। जन्मकुंडली में विवाह को ले कर अनेक प्रश्न मुझसे प्रायः किये जाते रहे हैं। उन्हीं सब प्रश्नों के संदर्भ में मैने इसे विवाह प्रकरण तक सीमित रखने की कोशिश की है। जब बात विवाह की आती है तो संतान का विचार भी निश्चित तौर पर आता ही है। और इसीके साथ-साथ धन का भी विचार आना स्वाभाविक ही है क्योंकि बिना धन के कोई संतान नहीं पाल सकता, गृहस्थी नहीं चला सकता। अतः इसमें संतान व धन योगों का भी कुछ उल्लेख आया है। साथ ही, शनि की साढ़ेसाती के बारे में भी अनेक प्रकार से भयपूर्ण माहौल रचने के प्रयास किये जाते रहे हैं। इस पुस्तक में मेरा प्रयास इस भय से अपने पाठकों को उबारना है। आशा है आपको मेरा ये प्रयास पसंद आऐगा, आपके ज्ञान में वृद्धिकारी होगा, आपके लिये लाभकारी व उपयोगी होगा। अपनी पिछली दो पुस्तकों में मैं जन्मकुंडली व जन्मकुंडली बांचने के आवश्यक निर्देशों के बारे में बता चुकी हूं। इस विश्वास के साथ कि पाठकों ने मेरी उक्त दोनों पुस्तकों का अध्ययन किया ही होगा अतः यहां इस पुस्तक में मैं उन आरंभिक विषयों व अध्यायों की चर्चा करना अनावश्यक समझती हूं।
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