"मेरे बचपन का काफी समय मध्य प्रदेश के दूरदराज कस्बों गांवों में बीता क्योंकि तब मेरे पापा पुलिस विभाग में थानेदार थे। वे उनमें से थे जिनका ज़मीर सदा भरपूर जीवित रहा। इमानदारी व सच्चाई उनके खून में बहती थीं। इसलिए मेरे पास बचपन की याद के तौर पर रहस्य व रोमांच से भरी कई सच्चाइयां हैं जिनमें से एक आपके सामने उपन्यास के रूप में रख रही हूं। यकीन मानिए यह मात्र किस्सा कहानी नहीं बल्कि सच और केवल सच है। हत्या के मामले में मेरे पापा जी अपने सिद्धांतों से कोई समझौता नहीं करते थे। कहने सुनने में बड़ा अच्छा लगता है ईमानदारी से काम करते हुए अपराधी को सजा दिलवाना ! लेकिन इस काम में जितनी उलझन एवं मुश्किलें हैं उन्हें वही समझ सकता है जिसने उन मुश्किलों को किसी न किसी रूप में अपने अपने स्तर पर झेला हो। हत्या की इस गुत्थी को सुलझाने के दौरान तो पापा जी की जान पर ही बन आई थी। मेरी याद में यह गुत्थी हम उनके परिजनों के लिए भी सबसे कठिन व दुखदाई थी। अपराधी ने जब देखा कि वह थानेदार को रिश्वत आदि से किसी भी तरीके से खरीद नहीं पा रहा है तो उसने जादू टोने के मारक रूप का प्रयोग करवाया जिसे गांवों में मूठ मारना कहते थे। यह मूठ बेहद खतरनाक बताई जाती थी क्योंकि अपने शिकार को ये चुपचाप खत्म कर देती थी। डॉक्टर बीमारी पकड़ नहीं पाते थे और रहस्यमय तरीके से उसकी मृत्यु हो जाती थी। टोना जानने वाला कोई अन्य जानकार ही इसे पहचान कर इस मूठ की गति को बदल सकता था, या इसे किसी अन्य प्रकार से रोक कर बेअसर कर सकता था। लेकिन ऐसे गुणी को खोजना बहुत बहुत मुश्किल होता था। जिसे मूठ मारनी होती थी मुक्के या घूंसे के रूप में उसका नाम लेकर उस पर छोड़ी जाती थी। अगर उसने अपना नाम सुन कर हां हूं या किसी भी तरह जवाब दे दिया तो उस पर मूठ जा लगती थी। यानि वह उसकी चपेट में आ जाता था। दूरदराज गांव में तब ऐसे जादू टोने खुलेआम नहीं मगर दबे छुपे रूप में प्रचलित तो थे ही, जिसका प्रमाण मेरा यह उपन्यास है जो पूरी तरह से उस वास्तविक घटना पर आधारित है। इसके माध्यम से मैं अपनी मम्मी व हमारे परम पूज्य गुरु बाबा नीम करोली महाराज जी को सादर प्रणाम करते हुए अपने पापा जी, मम्मी, प्रिय पालतू कुत्ते सीजर सहित उन सबको एक एक को श्रद्धांजलि अर्पित करती हूं जो किसी भी रूप में इस वाकये के पात्र रहे हैं...
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