भगवान ने उस व्यक्ति को
भक्त माना है
जो चित्त-वैभव के लिए
दूसरी लौकिक आकांक्षा से
प्रेरित होकर भक्ति या उपसना नहीं करता
आप लोग धर्म की ओट में भी
ऐसे काम करते हैं,
जिससे संसार की
वृध्दि हो रही है.
आपकी उपासना में
इच्छा और आकांक्षा न हो,
तभी वास्तविक वितरागता का
वास्तविक स्वरूप ज्ञात हो जाएगा.
आज परिग्रह के पिछे
जीवन इतना व्यस्त हो गया कि
उपासना के दौरान भी
विचारों की तरंगे
चलती रहती है.
आप सोचते है कि
किसी खास स्थान की
भगवान की मूर्ति में चमत्कार है.
वीतरागी भगवान कोई
चमत्कार नहीं दिखाते.
चमत्कार का बहिष्कार कर,
नमस्कार करे,
इसी में कल्याण निहित है.
प्रस्तुति_कैलाश "ज्वालामुखी"