shabd-logo

कविता -गरीब का जीवन

5 दिसम्बर 2021

49 बार देखा गया 49
सड़क के किनारे, दीवार के सहारे।
बैठा  है एक  दीवाना ,पागल सा ।।
देखे जा रहा है एकटक ,
अपनी पत्नी को बेतहाशा।
उसके बेतरतीब से बिखरे बाल,
बैठी  है अल्हड़ सी उसके पास,
जिसने ना किया है कोई श्रृंंगार,
और यही है उसका घर संसार।
कपडों से झांकती तंगहाली और गरीबी,
लेकिन है सहज सरल वो मतवाली।
ना उसके सर पर छत है,
ना ही है कोई ठहराव।
आज यहां कल वहाँ ,फिर भी थकते नहीं पांव।
ना ही है उसका कोई गांव।।
पर वह मुग्ध है, उसकी इस मुस्कान पर,
दुनिया जहां से बेखबर,
उसे यकीं है उसके प्यार पर।।
जहाँ तहाँ चादर बिछाते है,
खुले आसमान के नीचे सो जाते हैंं ।
उन्हें न कल की फिक्र है, न आज कि चिंता।
उन्हें मौसम कि परवाह नहीं , ऐसे  ही है जिन्दा।।
तन ढकने व पेट भरने के लिए करते हैं मेहनत।
बस यही होती गरीब कि जन्नत।।
उसे बाकी दुनियादारी से कैसा सरोकार,
उनकी तो अम्बर चादर और धरती आधार।।











Sunita की अन्य किताबें

निक्की तिवारी

निक्की तिवारी

बहुत सुन्दर rachna

6 दिसम्बर 2021

Sunita

Sunita

14 दिसम्बर 2021

धन्यवाद

sanjay patil

sanjay patil

शानदार 👌👍

6 दिसम्बर 2021

Sunita

Sunita

14 दिसम्बर 2021

धन्यवाद

Shailesh singh

Shailesh singh

बहुत ही मार्मिक और यथार्थ वर्णन

5 दिसम्बर 2021

Sunita

Sunita

14 दिसम्बर 2021

धन्यवाद

किताब पढ़िए