एक मेरे मित्र हैं जो मुझसे बहुत नाराज़ हैंउनको पसंद आते ना मेरे मलमली अल्फ़ाज़ हैंराष्ट्र की खातिर वो कहते हैं की मैं रचना लिखूंएक भारत माँ के ही चरणों में नित नित झुकूंढूंढ़ता हूँ जब मगर मैं राष्ट्र जैसी चीज़ कोदेखता हूँ वृक्ष बनता चहुँ और बस विष बीज कोवोट की खातिर जहाँ अपमान मेघा का हुआना किसी नेता की