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कविता

30 अप्रैल 2016

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आईना देखकर खुद से शिकवे करना,
कैसा दस्तूर है इन शोख हसीनों का.

दिल में कुछ और जुबां पे कुछ और,
कौन पढ़ेगा हालेदिल नाज़नीनों का.

नज़र मिला के फिर नज़र चुरा लेना,
कैसे भरोसा करें इन महज़बीनों का.

अच्छी सूरत पाकर यूं इतरा जाना,
अब क्या करें इन क़ातिल हसीनों का.

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प्रियंका शर्मा

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जितनी प्यारी कविता उतना ही सटीक चित्र भी सेलेक्ट करते है आप हमेशा.

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महोब्बत

27 अप्रैल 2016
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याद" सनम की और "शिद्दत" गर्मी की.......देखते हैँ अब हमेँ "बीमार" कौन करती है....!!💕    Happy evening friends  !!

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एक गम्भीर समस्या

28 अप्रैल 2016
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अध्यात्म दर्शन

28 अप्रैल 2016
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30 अप्रैल 2016
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आईना देखकर खुद से शिकवे करना,कैसा दस्तूर है इन शोख हसीनों का.दिल में कुछ और जुबां पे कुछ और,कौन पढ़ेगा हालेदिल नाज़नीनों का.नज़र मिला के फिर नज़र चुरा लेना,कैसे भरोसा करें इन महज़बीनों का.अच्छी सूरत पाकर यूं इतरा जाना,अब क्या करें इन क़ातिल ह

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