पार्ट-9
बीस-बाईस साल पहले.......
काली अँधेरी रात, सावन-भादौ की जोरदार बारिश और थका हारा, हांफता हुआ गंगा सिंह घुटनो पर हाथ रखे इधर-उधर नजरें घुमा कर देख रहा था, वो बहुत परेशान भी लग रहा था। सुजान और सोबन मर चुके थे, रेवती के साथ भी न जाने उन्होंने क्या किया होगा और अब दोनों बच्चे भी गायब थे। गंगा सिंह की समझ में कुछ भी नहीं रहा था कि वो कमु और दिवान को आखिर कहाँ ढूंढे।
सुबह होने को आई थी लेकिन कमु और दिवान का कुछ पता नहीं चला था, गंगा सिंह लम्बाड़ी और कुशराण के बीच बहने वाले झरने के पास ही एक पत्थर पर बैठ गया। उसके चेहरे पर परेशानी साफ झलक रही थी। बारिश कुछ हल्की हो चली थी लेकिन बिजली अब भी कभी कभी अपनी चमक बिखेर देती थी। गंगा सिंह पत्थर से उठा और अपने गांव की तरफ चलने ही वाला था कि बिजली की रोशनी में उसकी नजर झरने के पानी पर पड़ी और गंगा सिंह बुरी तरह सिहर उठा। झरने का पानी एक लाल धारा लेकर बह रहा था। गंगा सिंह ने झरने की दिशा में देखा। झरने के बिलकुल पास कोई तो था। गंगा सिंह अंदर से बुरी तरह डर गया था, ये रात आखिर इतनी भयानक क्यों थी? गंगा सिंह हिम्मत करके झरने के पास गया, उसने देखा एक औरत जिसके पूरे कपड़ो पर खून ही खून था, चेहरे पर बाल बिखरे हुए थे वो जमीन पर पड़ी हुई कुछ बुदबुदा रही थी। गंगा सिंह ने कांपते हाथों से उसके चेहरे से बाल हटाए और उसका चेहरा देखते ही वो कुछ कदम पीछे हट गया।
"तूने ये रात इतनी मनहूस क्यों बनाई?!" गंगा सिंह ऊपर देखते हुए बोला और फिर फूट-फूट कर रोने लगा।
अगली सुबह जंगल में सुजान सिंह की लाश मिली और झरने में बहती रेवती की लाश मिली। गांव वालों ने अंदाजा लगाया शायद सुजान को कोई जंगली जानवर उठा कर जंगल में ले गया होगा रेवती अपने पति और बेटे को ढूंढ़ती हुई झरने के पास आई होगी और उसी में उसकी मौत हो गई। दिवान को भी किसी जंगली जानवर ने अपना निवाला बना लिया होगा।
जो लोग सच जानते थे उन्होंने भी इस अफवाह को हवा दी। कुछ लोगों ने अपने मन में ही अंदाजा लगाया तो सही सुजान और रेवती की मौत का लेकिन जुबान पर किसी के कुछ भी नहीं आया।
*****
कमु को कुछ समझ नहीं आ रहा था आखिर गंगा सिंह उसे यहाँ क्यों लाया था? गंगा सिंह कमु को एक कमरे में ले गया, पूरा कमरा अँधेरे की आगोश में था गंगा सिंह ने दीवार पर स्विच टटोला और खट की आवाज के साथ ही वो कमरा पीले बल्ब की रोशनी से भर उठा। कमु ने देखा और उसके चेहरे पर आश्चर्य के भाव आए। उस कमरे में पतली डोरी से एक बहुत पुरानी ब्लैक एंड व्हाइट फोटो लगी हुई थी। उस फोटो में एक जवान देहाती आदमी, उसके बगल में बच्चे को गोद में लिए एक औरत बैठी थी। फोटो काफ़ी धुंधली थी लेकिन कुछ सेकंड निहारने के बाद कमु बोला पड़ा, " ये तो चाची है न!लेकिन इनके साथ ये आदमी कौन है और ये बच्चा, ये कहीं सूरज तो नहीं?!"
गंगा सिंह थोड़ा सा मुस्करा दिया, मानो कमु के चेहरे पर हैरानी देखकर उसे विजय प्राप्त हुई हो।
"ये रेवती है, सुजान की पत्नि" गंगा सिंह थोड़ा गंभीर होते हुए बोला।
"रेवती!!" कमु का चेहरा अलग ही भाव से फ़ैल गया।
"उसकी गोद में दिवान है और बगल में सुजान" गंगा सिंह शांत भाव से बोला।
"लेकिन इनकी शक्ल तो हूबहू चाची से मिलती है मतलब इस उम्र में चाची भी ऐसी ही दिखती होगी। " कमु अब भी हैरान था। "आपने ये फोटो इस तरह यहाँ क्यों रखी है??" कमु के मन में सवालों का सैलाब उमड़ रहा था, उसने तो अपनी तरफ से ये मामला खत्म कर दिया था लेकिन अब उसे लग रहा था कि कितना कुछ रह गया था इस में!!
वो तो आज रात का आख़री काम निपटा कर निकलने की सोच रहा था लेकिन यहाँ तो एक नई कहानी शुरू हो रही थी।
"रेवती और हिमा यानि मेरी पत्नि दोनों जुड़वा बहने थी।" गंगा सिंह ने बताया। कमु के चेहरे पर बहुत से रंग आए और गए।
"उस रात मेरी पत्नि रेवती के साथ ही थी, ये बात मुझे भी पता नहीं थी क्योंकि हिमा अपने मायके गई थी आते वक़्त वो अपनी बहन के घर ही रुक गई और वो मनहूस रात!!..." गंगा सिंह के चेहरे पर दुख और पीड़ा की हजारों लकीरें उमड़ पड़ी। कमु गंगा सिंह का चेहरा गौर से देखता रहा उसे लगा तो था कि गंगा सिंह बहुत कुछ छुपा रहा है लेकिन ये सब छुपा रहा है ऐसी उसे उम्मीद नहीं थी।
"निगल गई.. ! वो मनहूस रात मेरी हिमा को निगल गई !" गंगा सिंह की आँखों से कुछ बुँदे टपक पड़ी। इधर कमु के चेहरे पर घोर आश्चर्य के भाव आ गए।
"लेकिन.. चाची तो.... " कमु ने उसी हैरानी के साथ कहा।
"वो हिमा की जुड़वा बहन रेवती है !!..." गंगा सिंह ने सीने में दफन राज को उजागर किया लेकिन कमु के लिए तो ये एक बम विस्फोट की तरह था।
"उस दिन झरने पर मुझे हिमा ही मिली थी,अधमरी सी खून से लथपथ ,मेरे इन्ही हाथों में उसने दम तोड़ा था।" गंगा सिंह अपने हाथों को देख कर भावुक हो उठा लेकिन फिर अगले ही पल वो संभल भी गया।, " हिमा ने मुझसे अपनी बहन की रक्षा का वादा माँगा और खुद मुझे छोड़ कर हमेशा के लिए चली गई।
*****
झरने के पास उसका चेहरा देखते ही गंगा सिंह को झटका लगा। उसमें कुछ ही सांसे बाकि थी। गंगा सिंह ने फौरन उसका सर अपनी गोद में रख दिया।
"हिमा!तू तो अपने मायके में थी न!!फिर यहाँ इस हालत में कैसे? किसने....किसने की तेरी ऐसी हालत? " गंगा सिंह रोते हुए बोला।
"मैं...मैं लौट आई थी,... दीदी... के घर पर.... उसका.. हाल जानने को.. ठहर.. गई थी...... लेकिन... दीदी को.. दर्द शुरू हो गया था.... उनको.. बच्चा.. होने वाला था... इसलिए मैं.. वहीं रुक गई...बच्चा होते ही...दीदी कमजोरी की वजह से.....बेहोश हो गई... मैंने बच्चे को साफ किया... दूध पिलाया...और वहीं दीदी के... पास सुला दिया...मैं ऊपर के कमरे में दीदी..के... कपड़े लेने गई थी कि... तभी वहाँ... ज्ञान...ज्ञान सिंह और... हरीश आ धमके। वो मुझे... दीदी समझ बैठे और.....तुम..तुम..वादा करो..दीदी..का ध्यान....रखोगे और.... " हिमा की आवाज गले में ही रह गई। उसकी बची हुई सांसे भी उसके सीने से निकल चुकी थी, गंगा सिंह के हाथ में बस एक बेजान शरीर था। गंगा सिंह की रुलाई फूट पड़ी लेकिन तभी उसे कहीं से नवजात बच्चे के रोने की आवाज सुनाई दी। उसने हिमा का सर जमीन पर रखा और आवाज की दिशा में कदम बढ़ा दिए, पास ही एक बड़े से पत्थर पर एक छोटा कोठरी जैसा बड़ा छेद था बच्चे के रोने की आवाज वहीं से आ रही थी। गंगा सिंह ने बच्चे को हाथों में ले लिया। एक नन्ही सी जान को हाथों में लेकर गंगा सिंह के दिल में भावनाओं का समुन्द्र उमड़ पड़ा। उसने वहीं से हिमा को देखा,उसे ध्यान आया मरने से पहले हिमा इस ओर ही देख रही थी, वो शायद कुछ कहना चाहती थी गंगा सिंह बच्चे को गोद में लिए हिमा के पास आया अब जाकर उसने ध्यान दिया कि हिमा को भी तो बच्चा होने वाला था लेकिन उसमें अभी कुछ वक़्त था शायद ज्ञान सिंह की क्रूरता के चलते उसका बच्चा वक़्त से पहले ही दुनिया में आ गया था। बच्चे को सुरक्षित कर के हिमा किसी तरह झरने के पास खुद की सफाई के लिए गई होगी लेकिन वहीं पर उसने दम तोड़ दिया। गंगा सिंह बच्चे को सीने से लगा कर रोने लगा जिस बच्चे के लिए उसने पल पल इंतज़ार किया था वो आज उसकी गोद में था लेकिन हालात बिलकुल उलट थे। उस बच्चे को इस दुनिया में लाने वाली और गंगा सिंह को पिता बनाने वाली इस दुनिया से विदा ले चुकी थी।
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"मैं हिमा की लाश को वहीं झरने के पास छोड़ आया और वापस सुजान के घर गया। हिमा के बताए अनुसार रेवती पुराने घर के कमरे में थी इसलिए मुझे वो उस वक़्त उनके नये मकान पर नहीं मिली थी। मैंने रेवती को पूरी घटना बताई और उसे अपने साथ चलने को कहा पहले तो रेवती तैयार नहीं हुई लेकिन फिर ज़ब मैंने उसे हिमा का वास्ता दिया तो वो चुपचाप मेरे साथ आ गई।
दोनों बहने जुड़वा थी, दोनों की शक्ल हूबहू मिलती भी थी इसलिए सभी ने हिमा को आसानी से रेवती मान लिया और रेवती को मैंने हिमा का नाम दे दिया। इस राज को कोई भी न जान सका कि रेवती अब भी जिन्दा है हिमा के रूप में। " गंगा सिंह ने जैसे एक बहुत बड़ा बोझ अपने मन से उतारा हो।
"लेकिन ये सब आप मुझे क्यों बता रहे है?" कमु ने पूछा
"क्योंकि मैं चाहता हुँ उस रात तुमने जंगल में जो भी देखा उसे अपने तक ही सिमित रखो"
"लेकिन क्यों?? " कमु की आँखें हैरानी से सिकुड़ गई थी गंगा सिंह आखिर किस बारे में बात कर रहा है ये जानने के लिए कमु ने बहुत होशियारी से ये पूछा था।
"मैं मानता हुँ कि ये गलत है लेकिन जो रेवती ने झेला है ऐसे में इंसान सही गलत सब भूल जाता है, उसने अपना पति खोया, बेटा पता नहीं जिन्दा भी है या.... और तो और अपने पति का घर छोड़कर एक पराये मर्द की पत्नि बन कर रही है वो भी बिना शादी के अपना नाम तक खो चुकी है। अब ऐसे में तुम ही बताओ उसने क्या गलत किया? " गंगा सिंह उम्मीद भरी नजरों से कमु को देखते हुए बोला।
"लेकिन गलत तो गलत होता है" कमु को कुछ अंदाजा तो हो गया था गंगा सिंह की बातों का लेकिन वो पूरी तरह से पुष्टि करना चाहता था।
"वो गलत नहीं थे?!!चारों भाइयों ने एक ही रात में न जाने कितनी जाने ली कितनो को बर्बाद कर दिया! अगर उन खूनी दरिंदो को रेवती ने मार भी दिया तो क्या गलत किया?! कब तक वो भगवान के इंसाफ के भरोसे पर जीती। वो आज भी सुजान और दिवान को याद करके रोती है, अपनी बहन के लिए तड़पती है। पति की मौत के बाद उसकी अमानत उसका घर खेत संभाल न पाने के लिए उसे दुख होता है, तरसती है अपने पति के गांव जाने के लिए लेकिन जा नहीं पाती।यहाँ आकर इस फोटो के पास वो घंटो रोती है, मुझे नहीं बताती लेकिन मुझे सब पता है।
मुझे नहीं लगता उसने कुछ भी गलत किया है। ज्ञान सिंह को मार दिया तो क्या हुआ, आखिर पाप का एक बोझ कम किया धरती से!" गंगा सिंह आवेश में आ गया था।
"और भगवान के घर का बोझ बढ़ा दिया!" कमु बोला तो गंगा सिंह ने उसे हैरानी से देखा।
"आपको क्यों लगा कि रेवती चाची ने उन सबको मारा है। " कमु तुरंत सीरियस होकर बोला। गंगा सिंह ने हैरत भरी नजरों से कमु की तरफ देखा।
"क्योंकि जिस रात ज्ञान सिंह मरा था उस रात रेवती भी बाहर से बारिश में भीग कर अंदर आ रही थी।
"तो अस्प्ने पूछा नहीं कि वो उस वक़्त इतनी तेज बारिश में कहाँ से आ रही है।" कमु ने पूछा।
"पूछा था, तब उसने बताया कि वो सूखी हुई लकड़ी अंदर रख रही थी, इसी चक्कर में थोड़ा भी गई।" गंगा सिंह ने बताया।,"तुम किसी को बताओगे तो नहीं न? उस रात की बात भी और आज की राज की बात भी?!" गंगा सिंह एक बार फिर उम्मीद भरी नजरों से कमु को देखा।
"उस रात मैंने जंगल में किसी को भी किसी का भी खून करते हुए देखा ही नहीं था और अगर रेवती चाची को उन सब को मारना ही होता तो इतने सालों तक इंतजार नहीं करती, बल्कि कब का उन का खेल खत्म कर चुकी होती। अब आप निश्चिन्त होकर सो जाइए।" कमु ने गंगा सिंह कंधे पर हाथ रखते हुए कहा और वहाँ से बाहर निकल आया।
गंगा सिंह अपने में सोचने लगा, " ये बात मैंने क्यों नहीं सोची और इतनी आसानी से मान लिया कि रेवती ने ही मारा होगा!"
इधर अपने कमरे में आकर कमु ने एक नंबर डायल किया
"मैंने पहले ही कहा था वो कुछ नहीं जानता! उसका नाम तो लिस्ट से पहले ही हट चुका है। परसों मैं यहाँ से निकल जाऊंगा।" कमु ने फोन कट किया और बिस्तर के अंदर घुस गया। जल्दी ही उसे नींद आ गई।
जारी......