पिछले भाग में आपने पढ़ा। रात के वक़्त पूरी तरह भीगी हुई तारा ने एक बार फिर कमु का कमरा चेक किया लेकिन इस बार दरवाजा मजबूती से बंद है।
उधर पोखर के पास जिसमें कि चन्दन लाश पड़ी हुई है वहाँ कमु खड़ा है और खुद से ही सवाल जवाब कर रहा है।
दूसरी तरफ डॉक्टर भी भरी बरसात में रात के वक़्त अपने कमरे से निकल कर न जाने कहाँ जाता है।
अशोक को शक है कि इन हत्याओं के पीछे उनके किसी दुश्मन का काम है। अशोक दवा लेने जा रहा था ज़ब संयोग वश उसे किसी की आवाज सुनाई देती है और उसकी बातों से अशोक को लगता है कि वो शख्स ही कातिल है। अशोक चंदन के बेटे सुंदर को फोन लगा कर तुरंत आने को कहता है।
अब आगे....
अशोक ने दूसरी तरफ से सुने बिना ही फोन काट दिया। उसका पूरा ध्यान सूरज पर था।
थोड़ी ही देर में तारा और सुंदर वहाँ पहुँच गए। तारा तुरंत सूरज के पास गई और एक झटके से अशोक का हाथ दूर झिटक दिया, तारा ने सूरज की तरफ बेहद प्यार से देखा और लाल हो चुकी सूरज की कलाई सहलाने लगी।
"ये तुम्हें कातिल नजर आता है?!!पागल तो कर ही चुके हो बेचारे को!!"तारा की आँखों में अचानक नफरत का कतरा तैर गया। लेकिन अगले ही पल वो संभल गई।
अशोक जहर भरी नजरों से तारा और सूरज को देखने लगा,कुछ सेकेण्ड उन्हें घूरने के बाद अशोक ने सुंदर की तरफ देखा सुंदर सकपका गया।
"वो..वो आपका... फोन... तारा ने उठाया था।"सुंदर नजरें चुराते हुए बोला। अशोक की आँखें सिकुड़ गई।
"अच्छा हुआ मैंने उठा लिया! न जाने क्यों मेरे दिल को अहसास हुआ जिसे तुम कातिल कह रहे हो,वो सूरज ही है मेरा भाई!" तारा सूरज को गीली हो आई प्यार भरी नजरों से देखते हुए बोली।
"इसने अपने मुँह से कहा! इसने ही मारा है!!मैंने अपने कानो से सुना!!"अशोक उत्तेजित स्वर में बोला।
"इसने कहा!!..क्या कहा??"तारा हैरानी के साथ बोली। सूरज अशोक से डरकर तारा के पीछे चला गया था, वो बार बार डरी हुई आँखों से अशोक को देखकर, तारा के कंधे में मुँह छिपा लेता।
"इसने कहा कि... दो को ये मार चुका है, दो और लोगों को मारना है!!" अशोक सूरज को घूरते हुए बोला।
"इसने तुम्हारे पापा या तुम्हारे चाचा का नाम लिया??"तारा ने सूरज कर सर सहलाते हुए पूछा अशोक को गुस्से से देखते हुए पूछा।
"नहीं!लेकिन..." अशोक की बात तारा ने पूरी नहीं होने दी.
"लेकिन क्या??.. ये तुम्हें कत्ल करने की हालत में लग रहा है?...खुद का ध्यान तो ये रख नहीं पाता!!" तारा गुस्से में बोली।
"इसी ने मारा है!मैं जानता हुँ!!इसके कपड़ो पर खून भी लगा है, देखो!!" अशोक सूरज की तरफ इशारा कर के बोला।
तारा और सुंदर की नजर अब सूरज के कपड़ो की तरफ गई। सूरज के कपड़ो पर लगा खून देख कर दोनों ही चौंक गये।
"सूरज!ये... ये खून.. खून तुम्हारे कपड़ो पर कैसे??" तारा सूरज के कपड़ो पर खून देखकर हैरान हो गई थी लेकिन उसे विश्वास था अपने भाई पर।
"वो..वो पीछे मछली को काटा मैंने!" सूरज अब भी अशोक से डरा हुआ था, "बचपन में उन्होंने मुझे काटा था!आज मैंने काटा...दो को मार दिया, दो और बचे थे!..इसने डांटा मुझे!पकड़ा भी जोर से... " सूरज का डर धीरे धीरे कम होने लगा था, उसने अपनी कलाई सहला कर कहा।
"सुना!!दो को मारा दिया इसने!!दो और बचे है!!" तारा अशोक की खिल्ली उड़ाती हुई बोली।"लेकिन!बचपन में तो, तुम्हें केकड़े ने काटा था न!" तारा सूरज के गालो पर हाथ लगाते हुए प्यार से बोली।
"वो तब छोटा था न!अब वो बड़ा हो गया है!!और अपने तीन दोस्त भी बुला लिए अपनी मदद के लिए!!" सूरज बड़ी मासूमियत से बोला।
"तुम हमें वो मछली दिखाओगे?!!"तारा ने सूरज से पूछा।
सूरज खुश होता हुआ बोला, "जरूर!!मेरे पीछे आओ।मैंने काटा उन्हें !!मछली के अंदर केकड़ा होगा न?!!"सूरज चलते चलते बोला। तारा, सुन्दर और अशोक सूरज के पीछे चलने लगे। कुछ कदम की दूरी पर ही सूरज रुक गया ये वहीं जगह थी। जहाँ अशोक ने सूरज को पकड़ा था।
मछली के बहुत से टुकड़े वहाँ पड़े हुए थे। तारा ने अशोक की तरफ एक पैनी नजर डाली,"अब भी विश्वास न हो तो खुद अपने भाई से पूछ लो!दो चार दिन से सुंदर ही सूरज को ढूंढने में मेरी मदद करता है और इसके सामने ही मैंने इसे कमरे में बंद किया था, शाम होने के बाद हम सूरज को कमरे में बंद कर देते है फिर खाना देने को भी दरवाजा नहीं खोलते। खिड़की के रास्ते ही इसे खाना पानी देते है।" तारा सूरज का हाथ पकड़ कर जाने लगी।
अशोक ने एक नजर मछली के टुकड़ो पर डाली फिर जाते हुए सूरज और तारा को अजीब नजरों से देखा..कुछ सेकेण्ड उन्हें घूरने के बाद उसे सुन्दर का ध्यान आया उसने गर्दन सुंदर की तरफ घुमा ली। सुंदर जो अब तक अशोक की तरफ ही देख रहा था, उसने तुरंत अपनी नजरों की दिशा बदल ली।
"इस लड़की ने तुम्हारा फोन क्यों उठाया था?! " अशोक ने धीमे लेकिन कड़क स्वर में पूछा।
"वो... वो.... मैं... मेरा मतलब वो..." सुन्दर अचानक पूछे गए इस सवाल से हड़बड़ाते हुए बोलने लगा।
तभी अशोक के पेट में फिर से गुड़गुड़ होने लगी।
"मैं पहले दवा लेकर आता हुँ, तुमसे बाद में बात करता हुँ। " अशोक पेट पकड़ता हुआ बोला। उसकी हालत देख कर सुंदर को हंसी आ गई अशोक ने उसे घूर कर देखा और सुंदर ने अपनी हंसी को ब्रेक लगा दिए। अशोक डॉक्टर के क्लिनिक की तरफ चल पड़ा।
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रात का वक़्त....
खाना खाने के बाद तारा अपने कमरे में पढ़ रही है उसकी माँ रसोई साफ कर रही है, पिताजी आँगन में बैठे किन्ही विचारों में खोये से है और कमु आँगन में ही टहल रहा है।
आसमान में काले-सफ़ेद बादल घुड़-घुड़ की आवाज के साथ नृत्य करने लगे है!बिजली कभी कभी बादलों का घूँघट हटा कर पहाड़ों को रोशनी से भर देती है। बूंदो के घुँघरू भी छनकने को बेताब लग रहे है।
तारा के पिताजी ने एक नजर कमु पर डाली फिर जैसे उन्हें कुछ याद आया हो!
"कमु!..बैठो जरा!" चाचाजी की आवाज पर कमु के कदम रुक गए उसने चाचाजी की तरफ देखा। चाचाजी की आँखे उसे कुछ अजीब लगी!उनमें तैरने वाले सवाल वो पढ़ तो नहीं सका लेकिन इतना जरूर समझ गया कि चाचाजी सवालों के वो बाण छोड़ने वाले है जो कल रात उन्होंने अपने दिमाग़ के तरकश में ही रख लिए थे। कमु किसी आज्ञाकारी बच्चे की तरह चाचाजी के पास बैठ गया।
"लगता है रोटियां कम खाई है आज!" कमु की इस अजीब बात पर चाचाजी की आँखों में हैरत के भाव आए।,"तभी तो अब बातों से ही पेट भरना चाहते है।" कमु ने अपने ही अंदाज में हाथो को लहराते हुए कहा। चाचाजी कमु की इस बात पर न हँसे और न ही कमु को कोई जवाब ही दिया। कुछ देर ख़ामोशी रही, कमु उकता कर कान खुजाने लगा।उसे इस तरह की ख़ामोशी पसंद नहीं थी।
"तुम्हें क्या लगता है? कुशराण में जो दो भाई की मौत हुई है, उनके पीछे की वजह क्या होगी?!" चाचाजी ने कमु की आँखों में देखते हुए कहा।
"वजह क्या होगी!!एक ने शराब वगैरह ज्यादा पी ली होगी इसलिए उसे भूत जैसा कुछ दिखा!, वो घर से बाहर निकल पड़ा और गिरते पड़ते पोखर में जा गिरा!! फिर शायद वो बेहोश हो गया या चोट लगने के कारण पोखर से बाहर नहीं निकल पाया इसलिए उसकी मौत पोखर में ही हो गई होगी।"कमु ने बेहिचक अपनी बात कहीं।
"ज्ञान सिंह के मामले में तुम्हारी क्या राय है?"चाचाजी ने कमु का जवाब सुनकर दूसरा सवाल पूछा
कमु ने एक नजर चाचाजी के चेहरे पर डाली।
"होगा कोई दुश्मन या फिर...." कमु चुप हो गया।
"या फिर सुजान के भूत ने मार दिया होगा!है न?? " चाचाजी ने कमु से नजरें हटाकर दूसरी और देखते हुए कहा तभी रसोई से चाची निकल कर आई, चाची पर नजर पड़ते ही चाचाजी थोड़ा सकपका गए।चाची भी रुकी नहीं वो कमु और चाचाजी पर एक नजर डालकर कमरे में चली गई। कमु ने ये सब नोट किया लेकिन बोला कुछ नहीं, चाचाजी ने ही फिर से बात शुरू की।
"तुम सुजान सिंह और उसके परिवार के बारे में कुछ जानते हो??"
"ज्यादा कुछ नहीं बस इतना ही कि उन चारों भाइयो ने सुजान सिंह के साथ कुछ बहुत बुरा किया था!" कमु ने अपनी जानकारी साझा की।
"सुजान सिंह को उन लोगों ने मार दिया था!उसके बेटे का उस रात से कुछ पता नहीं चला!!... उसकी पत्नी!!..." चाचाजी थोड़ी देर खामोश हो गए और आसमान में बादलो का नृत्य देखने लगे।
"सुजान सिंह की पत्नी..! उनका क्या हुआ?? उनके बारे में कोई बात भी नहीं करता?!और आखिर सुजान से क्या दुश्मनी थी उन सबकी?" कमु ने चाचाजी के चेहरे पर अपनी नजर डालते हुए पूछा।
चाचाजी ने बादलों से नजर हटा कर कमु की तरफ देखा, कुछ देर उसके चेहरे पर कुछ तलाश करने की कोशिश करते रहे।
"तुम कौन हो?" चाचाजी ने अचानक कमु से पूछा
"जासूस हुँ!सुजान का मर्डर केस सुलझाने आया हुँ!!" कमु ने गंभीरता का दिखावा करते हुए कहा।
"अच्छा!फिर तो मैं आपकी कोई मदद नहीं कर सकता, आप खुद ही पता लगा लीजिए।" चाचाजी भी चेहरे को गंभीर बनाते हुए बोले और कुछ सेकेण्ड बाद दोनों मुस्करा दिए।
"क्या चाचा!!आप तो बचपन से जानते है मुझे, हाँ सूरत थोड़ा बदल गई है,खरगोश से ऊंट बन गया हुँ लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं कि आप मुझे पहचान ही न सके।
"चलो छोड़ो!रात बहुत हो गई है, अब सो जाओ!!" चाचाजी उठते हुए बोले।
न जाने क्यों कमु को लगा कि चाचाजी उससे कुछ कहते कहते रुक गए है लेकिन क्या??
"मैं सच में उस रात जंगल में था!"कमु ने एक तीर छोड़ा और तीर शायद निशाने पर था क्योंकि उसकी बात पर चाचाजी तुरंत पलट कर उसे देखने लगे थे।
"मैंने कुछ ऐसा देखा!जिसे मैं अपनी जुबान पर लाना नहीं चाहता!शायद यही सही रहेगा!!" कमु ने एक और तीर छोड़ा उसने सीधी बात को इस तरिके से कहा था कि उसके कई अर्थ निकाले जा सकते थे।
चाचाजी ने भी उस बात का अर्थ अपने हिसाब से निकाल लिया था, वो वापस कमु के पास बैठ गए।
"क्या बताऊं? "चाचाजी गहरी सांस लेकर बोले।
"सबकुछ!उस रात से अब तक जो भी आप जानते है।"कमु ने चाचाजी पर एक विश्वास भरी नजर डाली।
चाचाजी ने फिर से एक गहरी सांस ली और शून्य में खोते हुए अतीत में चले गए।
"उस रात...सुजान अपने पांच साल के बेटे दिवान के साथ खेत पर सो रहा था, जोरदार बारिश के साथ तूफानी हवाएं भी चल रही थी। ऐसे मौसम में भी थके होने के कारण ज्यादातर किसान सो रहे थे।लेकिन मुझ से रात काटे नहीं कट रही थी। मैं करवट बदल रहा था और बारिश रुकने का इंतजार कर रहा था।
सुजान उस रात अपने गांव के आख़री खेत में था बीच में एक झरने के बाद हमारा गांव शुरू हो जाता है। संयोग से मैं भी उस दिन उससे दो चार खेत की दूरी वाले खेत में था। नींद न आने के कारण मैं गोठ से बाहर निकल कर कुशराण की तरफ जाने की सोच रहा था , मैंने सोचा अगर सुजान भी जाग रहा होगा तो दोनों बैठ कर बीड़ी पीते हुए बातें करेंगे, इस तरह ये रात तो कटेगी लेकिन कुछ कदम चलने पर ही मुझे किसी के चिल्लाने की आवाज आई। गौर से देखा तो सुजान की गोठ के पास टॉर्च का उजाला दिखाई दिया। चिल्लाने की आवाज भी वहीं से आई थी। मैं जल्दी से अपनी गोठ की तरफ गया और वहाँ से कुल्हाड़ी ले आया। मुझे लगा शायद कोई जंगली जानवर सुजान के गाय भैंस पर हमला कर रहा है।
मैं लगभग दौड़ते हुए गया। ज़ब वहाँ पहुंचा तो देखा सुजान सिंह जमीन पर बेहोश पड़ा है किसी अनहोनी की आशंका से मैंने लपक कर उसकी चारपाई को टटोला उसका बेटा दिवान गहरी नींद में था, मैं वापस सुजान के पास आया, उसे हिलाया........
"सुजान!सुजान!आँखें खोलो!!" काफ़ी हिलाने के बाद सुजान सिंह जैसे कुछ होश में आया हो उसने खरखराती हुई सांस ली फिर धीरे से बड़ी मुश्किल से जरा सी आँखें खोली।
"गंगा!....तुम!!.." सुजान सिंह के मुँह से कुछ बोल भी टूटी फूटी हालत में निकले।
"हाँ!गंगा सिंह ही हुँ, तुझे क्या हुआ?" मैंने सुजान का सर उठाते हुए पूछा।
"वो... " सुजान सिंह ने उठने की कोशिश की वो थोड़ा सा उठ कर अपने हाथ के सहारे बैठने में सफल हुआ।
"दिवान!!" उसने मेरी तरफ देखकर दिवान के बारे में पूछना चाहा।
"वो बिलकुल ठीक है!सो रहा है।"मैंने चारपाई की ओर इशारा कर के बताया।
सुजान की जैसे सांस नीचे हुई हो फिर उसने पानी माँगा मैं तुरंत पानी ले आया। उसने पानी पिया, उसके बाद उसे सहारा देकर मैं गोठ (घासफूस से बना रैन बसेरा )के नीचे ले आया।
"क्या हुआ?"मैंने पूछा। उसने मुझे अब तक घटी पूरी घटना बता दी(पार्ट 1) मैंने हैरानी से उसे देखा और आखिर पूछ बैठा।
"तेरे सगे चाचा के बेटों ने तेरे साथ ऐसा किया!!लेकिन क्यों?? " मैं सुजान की बातों से हैरान था।
"क्योंकि उन्हें मेरे हिस्से जमीन चाहिए!मैं अपने पिता की एक ही संतान हुँ जबकि वो चार भाई है!!इस कारण मेरे पास उनके एक हिस्से से ज्यादा जमीन है और मेरी मेहनत का परिणाम है कि फ़सल भी अच्छी होती है! उन्हें लगता है मैं उनसे ज्यादा सम्पन्न हुँ और मेरे पिता को जमीन का उपजाऊ हिस्सा मिला है, इसलिए वो लोग मेरी जमीन हथियाना चाहते है।" सुजान की बात सुनकर मैं हैरत में था।
"तुम दिवान को मेरे दोस्त सोबन के पास छोड़ दो!वरना ये लोग मार डालेंगे हम सब को!!" सुजान ने कहा।
"ऐसे कैसे मारेंगे? मैं अभी तुम्हारे गांव वालों को बुला लाता हुँ!!"मैं उठने ही लगा था कि सुजान ने मेरा हाथ पकड़ लिया।
"मेरी बात मानो!गांव वाले सब डरते है उनसे और ये सब इतना आसान नहीं है!!तुम दिवान को लेकर जाओ!!अगर इन लोगों को तुम्हारे यहाँ होने के बारे में भनक लगी तो तुम्हें भी नहीं छोड़ेंगे!!" सुजान की बातें मुझे बड़ी अजीब लग रही थी लेकिन उसका बच्चा छोटा था उसे सुरक्षित जगह पर पहुँचाना मुझे अपना धर्म लगा। मैंने सोते हुए दिवान को अपनी गोद में उठाया और सुजान के पास आकर उसे हिम्मत दी, "तुम चिंता मत करो!!मैं मदद लेकर आता हुँ!!" सुजान ने आँखों से हामी भरी मैंने जल्दी जल्दी कदम बढ़ाए।
दिवान को लेकर मैं सोबन यानि तुम्हारे पिताजी के पास पहुंचा, इतनी रात और इस बारिश में मुझे एक बच्चे के साथ देखकर वो समझ गया कि जरूर हम किसी मुसीबत में है।दिवान को बिस्तर पर लिटा कर मैंने तुम्हारे पिताजी को पूरी बात बताई। वो भी सुजान की मदद को तुरंत तैयार हो गए। तुम्हें और दिवान को तुम्हारी माँ के साथ छोड़ कर हम तुरंत सुजान की मदद के लिए निकले।
यही हमारी सबसे बड़ी भूल थी हमें अपने गांव वालों को खबर कर देनी चाहिए थी और मदद को बुला लेना चाहिए था।
इधर हम सुजान की मदद को निकले उधर हरीश सिंह और चंदन तुम्हारे घर पहुँच गए, उन्होंने शायद अंदाजा लगा लिया था, दिवान सिंह का तुम्हारे घर पर होने का वो उसे मारना चाहते थे। तुम्हारी माँ ने न जाने तुम दोनों को कहाँ छुपा दिया था अपनी इज्जत और जान दोनों से हाथ धो बैठी लेकिन तुम्हारे बारे में नहीं बताया।".........
गंगा सिंह सांस लेने को रुका...उसने कमु की तरफ देखा लेकिन कमु तो जैसे कहीं खो गया था......
बांस की पतली सींको से बने अनाज रखने वाले गोल ड्रम जिसे पहाड़ो में डोरी के नाम से जाना जाता है उसके अंदर कपड़ो के नीचे दूसरे कमरे से आने वाली आवाज पर सहमे हुए दो बच्चे! एक बच्चा उठना चाहता था बाहर आकर देखबा चाहता था लेकिन दूसरे ने इशारे से मना कर दिया। "माँ ने कहा था कुछ भी हो जाए तब तक बाहर मत आना ज़ब तक मैं या तुम्हारे पापा तुम्हें आवाज न दे। "
बाहर चीखे गूंज रही थी, मार-पीट की आवाजें आ रही थी। चिल्ला कर कोई बच्चे के बारे में पूछ रहा था! तो कभी दर्द भरी चीखे गूंज उठती!.........
"नहीं....!!" अचानक कमु चीख उठा उसने अपने दोनों कान बंद कर लिए मानो वो चीखे उसे अब भी सुनाई पड़ रही हो।
"कमु!..कमु!!" गंगा सिंह ने उसे जोर से झकझोर दिया। कमु अचानक वर्तमान में लौट आया उसने आस-पास नजर घुमाई।पल भर को आँखें बंद की फिर गंगा सिंह की तरफ देखने लगा।
"क्या हुआ??तुम ठीक तो हो? "गंगा सिंह ने पूछा।
"कुछ नहीं!!आप बताइए,आपके बारे में उन्हें कोई भी खबर नहीं लगी!क्यों? जबकि आप भी पापा के साथ ही गए थे!!" कमु ने सवालिया नजर गंगा सिंह पर डाली ये सवाल वो जाने कब से पूछना चाहता था।
"इसी का जवाब मैं तुम्हें कब से देना चाहता हुँ,तुम्हारे पापा से उस रात के बाद मुलाक़ात हो नहीं पाई या वो मुझसे मिलना ही नहीं चाहता!!" गंगा सिंह के स्वर में उदासी और दुख साफ झलक रहा था।
"ऐसा क्या हुआ था उस रात??!" कमु ने गंगा सिंह की तरफ देखे बिना ही पूछा।
"वो रात एक भयानक काली रात थी,उस रात ऐसा लगा ये रात कभी खत्म ही नहीं होगी!!, " गंगा सिंह अतीत में खोता हुआ सा बोला कमु ने उसके चेहरे पर नजर डाली और मन में कुछ सोचने लगा, "मैं तुम्हारे पिताजी के साथ सुजान के खेत पर जा रहा था, सोबन जल्द से जल्द अपने दोस्त के पास पहुंचना चाहता था हम तेजी से उस तरफ जा रहे थे कि तभी मेरे पैर में एक पत्थर से टकराने पर चोट लग गई। खून निकलने लगा था मैं दर्द से तड़प उठा, उस वक़्त मुझे चलना नामुमकिन लगा, सोबन मुझे एक पत्थर पर बिठा कर अकेला ही सुजान के खेत की तरफ चला गया।
कुछ देर मैं सोबन को जाते हुए देखता रहा फिर अपने पैर पर कपड़े का एक टुकड़ा बांध कर मैं भी धीरे धीरे वहाँ पहुँच गया लेकिन उधर से आती आवाज़ों ने मुझे कुछ कदम दूर ही रुकने पर मजबूर कर दिया।" गंगा सिंह ने रुककर कमु की तरफ देखा लेकिन कमु के चेहरे पर उसे किसी तरह के कोई भाव नहीं दिखाई दिए।
कमु अपने चेहरे के भाव छुपाने में माहिर था उसके चेहरा सपाट था लेकिन मन में उत्सुकता अपने चरम पर थी आखिर ऐसी कौन सी बात थी कि एक इंसान दूसरे इंसान का साथ भी न दे सका वो भी सब कुछ जानकर!
"मैंने देखा सुजान एकदम भला चंगा खड़ा था और खूब ठहाके लगा रहा था साथ ही ज्ञान सिंह और गणेश भी उसी के साथ खड़े उसका साथ दे रहे थे। मैं हैरान होकर बस उन्हें देखता रहा, मुझे गुस्सा आ रहा था जिसे मुसीबत में समझ कर मैं उसकी मदद करने के लिए दौड़ पड़ा था वो शायद मुझसे बस मजाक कर रहा था।मैं गुस्से से भरा हुआ उनकी तरफ जा ही रहा था कि मेरी नजर जमीन पर पड़े सोबन की तरफ गई, खून से उसका बदन लाल हो चुका था, चेहरे पर भी खून ही खून था। मुझे लगा शायद वो मर चुका है, लेकिन मुझे समझ नहीं आया कि आखिर सोबन को उन्होंने क्यों मारा?!! याद करने पर भी मुझे उनके बीच किसी तरह का कोई विवाद याद नहीं आया। मैं सोच ही रहा था कि अब मुझे क्या करना चाहिए? तभी उन लोगों में आपस में बहस होने लगी,चन्दन और हरीश सुजान की लाश को जंगल में फेंकने की बात कर रहे थे!!
"सुजान!!लेकिन वो तो जिन्दा था न?!!सोबन कहा होगा उन्होंने! " कमु बोला।
"हाँ!!मुझे भी ऐसा ही लगा था, मुझे लगा शायद गलती से सोबन की जगह सुजान निकल गया होगा!लेकिन नहीं सुजान सच में मर चुका था!!जिसे मैंने सुजान समझा था वो सुजान का कोई बहरूपिया था!!...."
"क्या?! बहरूपिया!!" कमु अचानक बोल पड़ा।
"हाँ!...कौन था??.. कहाँ से था??.. मुझे नहीं पता और उस वक़्त मैं ये सब जानना भी नहीं चाहता था। मुझे उस वक़्त यही लगा था कि सोबन भी मर चुका है, क्योंकि मेरी ही आँखों के सामने उन्होंने सोबन को एक बोरी में डाल दिया था और अब गणेश और हरीश दो बोरी को खींच कर जंगल की तरफ लेकर जा रहे थे, दूसरे बोरे में सुजान ही होगा, सुजान का ख्याल आते ही मुझे सुजान की पत्नी रेवती का ख्याल भी आया!वो घर पर अकेली होगी दिवान को मैं तुम्हारे घर छोड़ आया था, अब मुझे रेवती की फ़िक्र हुई। कहीं ये लोग उसे भी न मार दे ये सोच कर मैं वहाँ से निकल कर सुजान के घर गया।......." गंगा सिंह अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाया कि तभी जोरदार बारिश शुरू हो गई।
गंगा सिंह और कमु झटके से उठ खड़े हुए।
"अभी तुम सो जाओ!रात भी काफ़ी हो चुकी है। "गंगा सिंह अपने कमरे की तरफ दौड़ लगाते हुए बोला।
कमु ने सर हिलाया और वो भी अपने कमरे में चला गया हालांकि उसके मन में पूरी बात न सुन पाने का अफ़सोस था लेकिन इस वक़्त सच में 'रात' काफ़ी हो चुकी थी!!!
उसे दूसरा जरूरी काम भी निपटाना था। कुछ देर वो कमरे में ही चहलकदमी करता रहा, ज़ब उसे लगा कि अब चाचा सो गए होंगे तब वो चुपचाप रैन कोट पहन कर कमरे से बाहर निकल आया। उसने कल की तरह खिड़की के रास्ते दरवाज़े की कुंडी अंदर से चढ़ा दी और फिर निकल पड़ा रात की बरसाती सैर पर!!
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अगले एक दो दिन शांति से गुजरे किसी के मरने की कोई खबर नहीं आई। सबकी जैसे जान में जान आई थी। आस पास के गांव तो जैसे कुशराण की तरफ आँख-कान दोनों ही गड़ा कर बैठे थे और कुशराण वाले हर सुबह ये सोच कर डरे हुए होते कि न जाने कब किसकी मौत की खबर आ जाए और शाम होने पर सोचते न जाने आज किसकी मौत तांडव करेंगी।
लेकिन जब दो दिन तक कुछ भी न हुआ तो उन्हें लगने लगा शायद अब सब ठीक हो जाए। वहीं दूसरी ओर अशोक जी-जान से अब भी अपने शक की पुष्टि के सबूत ढूंढ रहा था।
अशोक और सुन्दर शाम होने के बाद गणेश और हरीश के घर के आस पास ही रहते। अपने परिवार के दो सदस्यों को खोने के बाद अब और कोई भी मौत वो नहीं देखना चाहते थे। लेकिन चाहने से होने वाली घटनाओं का क्या वास्ता! ज़ब जो तय है वो तो होकर ही रहेगा!!
और हुआ भी एक नए तरह का नजारा लोगों को देखने को मिला तो वहीं अशोक और सुन्दर को इस बात का अहसास तक नहीं था कि ये नया नजारा उन्ही के लिए था!!.....
जारी है......