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खूनी बरसात...8

14 दिसम्बर 2021

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पिछले भाग में आपने पड़ा गणेश के अंतिम संस्कार के बाद अशोक घर न जाकर गणेश के घर पर कुछ तलाश करता है फिर वहीं से वो जंगल की तरफ निकल जाता है वहाँ उसे एक गुफा में रैनकोट और कुछ कपड़े मिलते है, अपने चचेरे भाइयों से पूछने पर उसे पता चलता कि इन्ही कपड़ो में उसने सूरज को देखा था। 
उधर गंगा सिंह को कमु के बताने पर पता चलता है कि सोबन ने उस रात गंगा सिंह को खिड़की के रास्ते जाते हुए देख कर यही समझा कि उसकी पत्नि की मौत गंगा सिंह के कारण ही हुई है और गंगा सिंह भी ज्ञान सिंह का राजदार है। 
रात को अशोक और नरेश हरीश के कमरे के बाहर ही सो गए  रात को नींद खुलने पर अशोक को हरीश ऍबे कमरे में नजर नहीं आता, तब अशोक जंगल की तरफ जाता है। 
उधर जंगल में एक पेड़ पर किसी की लाश लटकी हुई थी। 

अब आगे....... 

करीब आधी रात का वक़्त,  डॉक्टर ने बाहर से आकर रैनकोट उतार कर एक तरफ टांक दिया। सामने की दीवार से सटी हुई एक अलमारी खोली। उसमें से कुछ सामान निकाला। कुछ देर इसी तरह से सामान निकालने के बाद डॉक्टर को चाय की तलब हुई, उसने गैस पर चाय चढ़ा दी और फोन पर कुछ खटर पटर करने लगा। 
चाय बन कर तैयार हुई तो डॉक्टर ने कप में चाय डाल दी तभी फोन भी बजने लगा।
'हैलो!..मैंने काम पूरा कर लिया है!' उधर से कुछ बोला गया, 'अशोक!नहीं उसे कुछ नहीं पता!' उधर से फिर कुछ बोला गया,  'मुझे पता है!...सारी डिटेल भेज दी है..ओके ' डॉक्टर ने फोन कट किया और चाय की चुस्की लेने लगा। 
डॉक्टर ने टाईम देखा रात के दो बज चुके थे वो सोने की तैयारी करने लगा, लाईट बंद करने के लिए स्विच की तरफ हाथ बढ़ाया ही था कि तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई। 
डॉक्टर दरवाज़े के पास गया, कुछ पल इंतजार किया। एक बार फिर से दरवाजा खटखटाया गया।दरवाजा खटखटाने का तरीका कुछ अजीब था ।ऐसा लगता था दो बार उंगलियों से और एक बार हाथ से थाप दी हो और दोनों ही बार उंगलियों और हथेली से खटखटाने का क्रम अलग था।
इस बार डॉक्टर ने अंदर से दरवाजा खटखटाया उसने हथेली की थाप दी और बाहर वाले ने फिर उसी तरीके से दरवाजा खटखटाया।डाक्टर ने दरवाजा खोल दिया,अंधेरा होने के कारण कुछ नहीं आता, बस एक काला साया दिखता है । डॉक्टर कुछ देर तक उससे बातें करता रहा फिर अलमारी से निकाल कर एक फ़ाइल थमा दी। डॉक्टर ने दरवाजा बंद किया, लाईट का स्विच ऑफ़ किया और सो गया। 

*******

कमु की आँख लगी ही थी ज़ब उसे दरवाजा खटखटाने की आवाज आई। उसने अपने मोबाइल में टाइम देखा रात के दो बज रहे थे। 
"इस वक़्त कौन होगा? " कमु अपने आप में बड़बड़ाया। 
उसने कमरे की लाईट ऑन की और दरवाज़े के पास आकर बोला, "कौन है?"
"मैं हुँ।" बाहर से फुसफुसाहट भरा स्वर सुनाई दिया, कमु ने पहचान लिया था उसने तुरंत ही दरवाजा खोल दिया। 
"चाचाजी आप! इस वक़्त!" कमु गंगा सिंह को देखते ही बोला। गंगा सिंह ने मुँह पर अंगुली लगाई और उसे अपने पीछे आने का इशारा किया। 
कमु ने लाईट ऑफ़ करके दरवाजा अच्छे से बंद किया और गंगा सिंह के पीछे चल दिया। 
कमु चुपचाप गंगा सिंह के पीछे चल रहा था। गंगा सिंह कमु को लेकर घर के पीछे की तरफ गया। पहाड़ो में खेत सीढ़ीदार  होते है। प्रत्येक खेत की ऊंचाई भी अलग अलग ही होती है। जहाँ गंगा सिंह का घर बना हुआ था उस से ऊपर वाले खेत की ऊंचाई करीब दस से बीस फ़ीट रही होगी। 
वहाँ पहुँच कर गंगा सिंह ने करीब एक फ़ीट की ऊंचाई पर उगी झाड़ी को एक अलग अंदाज से खिंचा और फिर घुमा दिया। कमु गंगा सिंह का ये करतब देखता ही रह गया।
गंगा सिंह ने एक नजर कमु की तरफ घुमाई लेकिन कमु के चेहरे पर उसे कुछ विशेष नजर नहीं आया हमेशा की तरह इस बार भी कमु ने अपने मन के भाव को चेहरे पर उजागर नहीं होने दिया था। 
"कोई गुफा नहीं है ये बस एक पुराना मकान है ,आओ अंदर..." गंगा सिंह उस झाड़ी वाली जगह से झाड़ी एक तरफ खिसका चुका था, वहाँ नजर आ रहा था एक खिड़की जैसा दरवाजा या शायद खिड़की ही थी। गंगा सिंह उस खिड़की के रास्ते अंदर कूद गया। कमु भी गंगा सिंह का अनुसरण करते हुए उसी रास्ते से अंदर कूद गया।जो खिड़की बाहर से एक ही फ़ीट की ऊंचाई पर थी वो अंदर कूदने पर ज्यादा ऊँची लगी  अंदर आकर गंगा सिंह दीवार टटोलने लगा और फिर खट की आवाज के साथ ही वहाँ रोशनी हो गई।  कमु ने इधर उधर नजर घुमाई, पूरा घर लकड़ी और पत्थर से बना हुआ था और काफ़ी पुराना भी लग रहा था कमु ने उस खिड़की पर नजर डाली। इस बार कमु के चेहरे पर हैरानी के भाव आ गए, असल में वो खिड़की थी ही नहीं, वो छत से लगी हुई जगह  थी जहाँ से शायद रास्ता बनाने के लिए एक-दो बड़े पत्थर निकाल लिए गए थे। असल में ये पूरा मकान एक खेत के नीचे दबा हुआ था। कमु ने अंदाजा लगाया कि शायद किसी आपदा के चलते ये पूरा मकान नीचे दब गया होगा। 

*******
अशोक एक पत्थर पर बैठा न जाने क्या सोच रहा था, जोरदार बारिश के बीच अचानक तेज रोशनी के साथ बिजली चमक उठी। अशोक ने सामने नजर उठाई, बिजली की रोशनी में पेड़ से उलटा लटका हरीश का बेजान शरीर बहुत ही भयानक लग रहा था लेकिन अशोक! वो बिलकुल निश्चिन्त बैठा था। उसके चेहरे से होते हुए बारिश की लहरे धरती पर जैसे कहर बरसा रही थी। अशोक कुछ देर हरीश की लाश को देखता रहा, "गलती की थी न! अब भुगत भी ली। अब... करूंगा तुम्हारा भी..... अंतिम संस्कार!..जैसे बाकि तीनो का किया। " अशोक चेहरे पर बरसती बारिश को साफ करने की नाकाम कोशिश करते हुए बोला। 

********

एक बड़ा सा हॉल, उसके ठीक बीच में लम्बी आयताकार टेबल। टेबल के लम्बाई वाली दोनों साइड सलीके से लगी कुर्सियां और उन्ही पर 'विराजमान' चार लोग, जिनके चेहरे पर काला कपड़ा है और हाथों को पीछे की तरफ बांध दिया गया है। वो चारों शायद इससे पहले बेहोश थे क्योंकि अभी अभी अचानक उनमें हलचल होने लगी थी। चारों ही इस कैद से छूटने के लिए छटपटा रहे थे।तभी एक शख्स ने वहाँ कदम रखा, उसकी जूतों की आवाज पर चारों के सर उसी दिशा में घूम गये। उस शख्स ने जो कि शरीर से दुबला पतला था, चारों पर एक नजर घुमाई फिर मुस्करा कर बोला," तुम्हारा गेम ओवर!!ज्ञान सिंह और उसके भाइयों....." उस शख्स की बात पूरी भी नहीं हुई थी ज़ब वहाँ रखा फोन बज उठा। उस शख्स ने फोन रिसीव किया, " यहीं मेरे ठीक सामने है...." उधर से कुछ बोला गया,  "ठीक है, मैं संभाल लूंगा। मेरी नजर तो हमेशा ही है इन पर" इसके बाद फोन कट गया। 
उधर काले कपड़े के नीचे वो चारों ही उस अनजान आवाज को पहचानने की कोशिश कर रहे थे। 

जारी......


Anita Singh

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